आज आंशिक सूर्यग्रहण की खगोलीय घटना घटित होगी जो कि लखनऊ से आंशिक सूर्यग्रहण के रूप में ही देखी जा सकेगी
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इन्दिरा गांधी नक्षत्रशाला, लखनऊ : दिनांक 25.10.2022 को आंशिक सूर्यग्रहण की खगोलीय घटना घटित होगी जो कि लखनऊ से आंशिक सूर्यग्रहण के रूप में ही देखी जा सकेगी। लखनऊ में आंशिक सूर्यग्रहण अपराह्न 4ः36 बजे से प्रारम्भ होगा तथा सायंकाल 6ः26 बजे समाप्त होगा। परन्तु यहां पर सूर्यास्त का समय सायंकाल 5ः29 बजे है अतः लखनऊ में आंशिक सूर्यग्रहण सायंकाल 5ः29 तक ही दिखायी देगा। सायंकाल 5.26 बजे सूर्यग्रहण अपने अधिकतम पर होगा। इस समय सूर्य का लगभग 36.93 प्रतिशत भाग चन्द्रमा की छाया में ढका हुआ नजर आयेगा। लखनऊ में सूर्यग्रहण की अवधि अधिकतम 53 मिनट की होगी। अपराह्न 4ः36 बजे सूर्य, चन्द्रमा की मुख्य छाया के सम्पर्क में आना प्रारम्भ होगा। इसी प्रकार सूर्य चन्द्रमा की मुख्य छाया से सायंकाल 6ः26 बजे पूर्णतयः बाहर आ जायेगा। परिषद का एक मुख्य उद्देश्य विद्यार्थियों एवं जनसामान्य में वैज्ञानिक सोच उत्पन्न करना तथा विज्ञान के नव प्रयोगों से प्रदेश का आर्थिक एवं सामाजिक विकास किया जाना है जिसके अर्न्तगत इस प्रकार की खगोलीय घटनाओं के समय परिषद द्वारा जनसामान्य हेतु कार्यक्रमों का आयोजन किया जायेगा।
दिनांक 25.10.2022 को आंशिक सूर्यग्रहण की खगोलीय घटना के समय परिषद द्वारा जनसामान्य हेतु सूर्यग्रहण के अवलोकन से सम्बन्धित कार्यक्रम का आयोजन मरीन ड्राइव के नीचे की तरफ गोमती तट, गोमती नगर पर किया जायेगा। यह स्थल मरीन ड्राइव पर पुलिस क्षेत्राधिकारी के कार्यालय के पास है। इस अवसर पर 5 टेलीस्कोप रिवर फ्रंट/मरीन ड्राइव पर स्थापित किये जायेंगे जिन्हें इन्दिरा गांधी नक्षत्रशाला, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद, उ0प्र0 द्वारा संचालित यू0पी0 अम्च्योर एस्ट्रोनामर्स क्लब के सदस्यों के द्वारा संचालन किया जायेगा। इस सूर्यग्रहण के सम्बन्ध में यह भी अवगत कराना है कि सूर्यास्त के समय सूर्यग्रहण होने के दृष्टिगत सोलर फिल्टर से भी इसका अवलोकन किये जाने में कुछ कठिनाई हो सकती है।
सूर्यग्रहण के दौरान रखी जाने वाली सावधानियाँ एवं क्या करें तथा क्या न करें-
किसी भी प्रकार के सूर्यग्रहण को नंगी आँखों, टेलीस्कोप अथवा दूरबीन की सहायता से नहीं देखना चाहिए।
कभी भी सूर्य को साधारण फिल्टर अथवा धूप के चश्मों से नहीं देखा जाना चाहिए।
सूर्य का प्रतिबिम्ब पानी में अथवा रंगीन पानी में नहीं देखा जाना चाहिए।
सूर्यग्रहण का अवलोकन परावर्तित प्रतिबिम्ब अथवा प्रमाणित सोलर फिल्टर से ही किया जाना चाहिए।
एक्स-रे फिल्म, फ्लापी, धूप के चश्मों, फोटोफिल्म, वेल्डिंग ग्लास से सूर्यग्रहण नहीं देखा जाना चाहिए।
पिनहोल कैमरे के द्वारा सूर्य का प्रतिबिम्ब दीवार पर बनाया जा सकता है जिसका सुरक्षित अवलोकन किया जा सकता है।
सूर्य के प्रकाश में 52 प्रतिशत अवरक्त किरणें होती हैं जो कि आँखों को स्थायी रूप से क्षति पहुंचा सकती हैं।
आंशिक सूर्यग्रहण के सम्बन्ध में कुछ रोचक तथ्य-
लखनऊ में उपच्छायी सूर्यग्रहण अपराह्न 2ः28 बजे प्रारम्भ हो जायेगा, किन्तु यह उपच्छायी सूर्यग्रहण देखा नहीं जा सकेगा।
आंशिक सूर्यग्रहण अपराह्न 4ः36 बजे से प्रारम्भ होगा।
आंशिक सूर्यग्रहण लखनऊ में अपनी अधिकतम अवस्था सायंकाल 5ः26 बजे प्राप्त करेगा।
दिनांक 25.10.2022 को लखनऊ में सूर्यास्त का समय 5ः29 बजे है। इस प्रकार लखनऊ में सूर्यग्रहण अपराह्न 4ः36 बजे से सायंकाल 5ः29 बजे तक दिखायी देगा।
आंशिक सूर्यग्रहण की समाप्ति सायंकाल 6ः26 बजे होगी।
लखनऊ में आंशिक सूर्यग्रहण को 53 मिनट तक अवलोकित किया जा सकेगा।
दिनांक 25.10.2022 का आंशिक सूर्यग्रहण सम्पूर्ण भारत के कई हिस्सों से दिखेगा किन्तु सूर्यग्रहण का तीव्रता प्रत्येक जगह अलग-अलग होगी।
अगला सूर्यग्रहण दिनांक 20.04.2023 को घटित होगा, किन्तु यह भारतवर्ष से दिखायी नहीं देगा।
इस सूर्यग्रहण के उपरान्त वर्ष 2030 तक कोई सूर्यग्रहण भारतवर्ष से दिखायी नहीं देगा।
अगला आंशिक सूर्यग्रहण दिनांक 01.06.2030 को लखनऊ से दिखायी देगा।
सूर्यग्रहण के सम्बन्ध में कुछ रोचक तथ्य
ग्रहण एक खगोलीय घटना है, जब एक खगोलीय पिंड पर दूसरे पिंड की छाया पड़ती है, तब ग्रहण होता है।
ग्रहण दो प्रकार का होता हैः सूर्य ग्रहण और चंद्र ग्रहण।
जब चन्द्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच आता है तो सूर्य से पृथ्वी पर आने वाला प्रकाश प्रतिबंधित हो जाता है और सूर्य ग्रहण लगता है।
इसी तरह जब सूर्य और चन्द्रमा के बीच पृथ्वी आ जाती है तो सूर्य से चन्द्रमा पर पहुँचाने वाला प्रकाश स्रोत पृथ्वी के द्वारा प्रतिबंधित हो जाता है और चन्द्र ग्रहण की स्थिति बन जाती है।
चन्द्रमा के सूर्य एवं पृथ्वी के बीच आने पर सूर्यग्रहण पड़ता है। यद्यपि प्रत्येक माह की अमावस्या को चन्द्रमा, पृथ्वी और सूर्य के बीच आता है परन्तु प्रत्येक अमावस्या को सूर्यग्रहण नहीं होता। ऐसा चन्द्रमा के परिक्रमा पथ का पृथ्वी के परिक्रमा पथ से 5 डिग्री झुका होना है।
चन्द्रमा द्वारा सूर्य के बिम्ब के पूरे या कम भाग के ढ़के जाने की वजह से सूर्य ग्रहण तीन प्रकार के होते हैं जिन्हें पूर्ण सूर्य ग्रहण, आंशिक सूर्य ग्रहण व वलयाकार सूर्य ग्रहण कहते हैं।
पूर्ण सूर्य ग्रहण-पूर्ण सूर्य ग्रहण उस समय होता है जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफी पास रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है और चन्द्रमा पूरी तरह से पृ्थ्वी को अपने छाया क्षेत्र में लेने के फलस्वरूप सूर्य का प्रकाश पृ्थ्वी तक पहुँच नहीं पाता है और पृ्थ्वी पर अंधकार जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है तब पृथ्वी पर पूरा सूर्य दिखाई नहीं देता। इस प्रकार बनने वाला ग्रहण पूर्ण सूर्य ग्रहण कहलाता है।
आंशिक सूर्य ग्रहण-आंशिक सूर्यग्रहण में जब चन्द्रमा सूर्य व पृथ्वी के बीच में इस प्रकार आए कि सूर्य का कुछ ही भाग पृथ्वी से दिखाई नहीं देता है अर्थात चन्दमा सूर्य के केवल कुछ भाग को ही अपनी छाया में ले पाता है। इससे सूर्य का कुछ भाग ग्रहण ग्रास में तथा कुछ भाग ग्रहण से अप्रभावित रहता है तो पृथ्वी के उस भाग विशेष में लगा ग्रहण आंशिक सूर्य ग्रहण कहलाता है।
वलयाकार सूर्य ग्रहण-वलयाकार सूर्य ग्रहण में जब चन्द्रमा पृथ्वी के काफी दूर रहते हुए पृथ्वी और सूर्य के बीच में आ जाता है अर्थात चन्द्र सूर्य को इस प्रकार से ढकता है कि सूर्य का केवल मध्य भाग ही छाया क्षेत्र में आता है और पृथ्वी से देखने पर चन्द्रमा द्वारा सूर्य पूरी तरह ढका दिखाई नहीं देता बल्कि सूर्य के बाहर का क्षेत्र प्रकाशित होने के कारण कंगन या वलय के रूप में चमकता दिखाई देता है। वलय आकार में बने सूर्यग्रहण को ही वलयाकार सूर्य ग्रहण कहलाता है।
पूर्ण सूर्यग्रहण में पूर्णतः का समय अधिकतम 7 मिनट 31 सेकेण्ड हो सकता है।एक वर्ष में अधिकतम पांच सूर्यग्रहण हो सकते हैं। एक वर्ष में न्यूनतम दो सूर्यग्रहण हो सकते हैं।
लगभग एक शताब्दी में 238 सूर्यग्रहण होते हैं। इनमें से 28 प्रतिशत पूर्ण सूर्यग्रहण लगभग 34 प्रतिशत वलयाकार सूर्यग्रहण एवं शेष आंशिक सूर्यग्रहण होते हैं।
एक निश्चित स्थान पर पूर्ण सूर्यग्रहण लगभग 360 वर्षों में एक बार होता है।
पूर्ण सूर्यग्रहण की अधिकतम अवधि किसी निश्चित स्थान से 450 सेकेण्ड अथवा 7 मिनट 30 सेकेण्ड होती है।
यह तब होगा जब सूर्य हमारी पृथ्वी से सबसे ज्यादा दूर एवं चन्द्रमा हमारी पृथ्वी के सबसे ज्यादा करीब में हो।
भूूमध्य रेखा पर सूर्यग्रहण की छाया 1770 किलोमीटर प्रति घण्टे की चाल से चलती है तथा धु्रवों पर यह गति 8046 किलोमीटर प्रति घण्टा तक हो सकती है।
पूर्ण सूर्यग्रहण अथवा वलयाकार सूर्यग्रहण की पट्टी लगभग 80 किमी0 चौड़ी होती है।
वर्ष 1973 में वैज्ञानिकों ने विमान में बैठकर सौर उपकरणों के साथ इस ग्रहण पट्टी पर ग्रहण का 3000 किमी0 तक पीछा किया था और लगभग 72 मिनट तक ग्रहण का अध्ययन किया था।
प्राचीन यूनानी खगोलशास्त्रियों ने सबसे पहले ग्रहणों की सटीक भविष्यवाणी करना शुरू किया था।
इससे पूर्व लखनऊ में लम्बी अवधि का सूर्यग्रहण 22.07.2009 को घटित हुआ था जो कि 21 वीं सदी के सबसे लम्बा ग्रहण था।
वर्ष 2009 के सूर्यग्रहण के बराबर लम्बे पूर्ण सूर्यग्रहण के लिए हमें 13.06.2132 तक इन्तजार करना होगा।
वर्ष 2009 के सूर्यग्रहण की पूर्णतः की अवधि भारत में लगभग 4 मिनट की थी।
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