साहित्य में समाहित सोलह कलाये ;प्रो हरिशंकर मिश्र
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लखनऊ 13जुलाई। अषाढ मास को पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रुप मे मनाया जाता है । इस अवसर पर कला, संगीत, साहित्य से जुडे शिष्यो ने अपने गुरुओ का सम्मान किया ।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद दक्षिण इकाई के सदस्यो ने अध्यक्ष डाक्टर नीतू शर्मा कोषाध्यक्ष सुरसरी तरंग मिश्र
मिडिया प्रभारी ज्योति किरन रतन ,.सदस्य धीरेन्द्र कौशल, संगीता पाल ,.अजय पाल, अश्वित रतन ने गुरुओ का तिलक लगाकर आशीर्वाद प्राप्त किया।
प्रो हरिशंकर मिश्र के आवास पर जाकर शाल -पटका उढाया अक्षत तिलक करके सम्मान किया। वही पखावज वादन की दीक्षा ले चुके अश्वित रतन ने डाक्टर राज खुशी राज जी का सम्मान किया और अपने कला गुरु का आशीर्वाद प्राप्त किया।
कार्यक्रम मे ज्योति रतन ने अखण्डमंडलाकारम गुरु वंदना प्रस्तुत किया संगीता पाल ने सद्गुरु तेरी कृपा हो जाये भजन प्रस्तुत किया। प्रो हरिशंकर मिश्र ने शिष्यो को आज गुरु दक्षिणा मे कहा की चाँद पर चौदह कलाओ से पूर्णता आती है। हमारे यहां सोलह कलाओ मे पूर्णता का वर्णन है साथ ही समस्त कलाओ मे साहित्य सर्वोपरी है । कलाओ को देखने पर चौसठ कलाये है। वास्तु , स्थापत्य मूर्ति चित्रकला संगीत नाटक नृत्य साहित्य को सबसे उपर रखा।क्योकि जो जितना स्थूल है वह उतना नीचे है । साहित्य मे ही समस्त सोलह कलाये समाहित है । डाक्टर राज खुशी राज ने शिष्यो से कहा वाद्य की ध्वनि जिसके ह्रदय मे बस जाती है वह वाद्य का हो जाता है। ऐसा सभी कलाओ मे होता है । युवाओ को कला से प्यार हो जाये तो वह कलाओ को विस्तार करके उत्कर्ष तक ले जा सकते है ।
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