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एल आई सी पॉलिसीधारकों के लिए कोई चिंता की बात नहीं।

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सरकार द्वारा LIC का  IPO लाने की घोषणा कुछ टीवी चैनलों द्वारा एक बड़ी समस्या के रूप में  दिखाई जा रही है, जिन्होंने इसे नहीं समझा है और इसी कारण वे कहते हैं कि "LIC का निजीकरण होने जा रहा है"।

सरकारी कंपनियों के साथ-साथ बैंकों को सूचीबद्ध करने की यह प्रक्रिया वर्ष 1994 में ही शुरू हुई थी। वास्तव में  SBI जो कि भारत का एक  ट्रेजरी बैंक है, स्टॉक एक्सचेंज में भी सूचीबद्ध है। सरकार के पास एसबीआई शेयरों का सिर्फ 58% हिस्सा है। उसी तरह, स्टॉक एक्सचेंज में हिंदुस्तान पेट्रोलियम, आईडीबीआई बैंक, कई अन्य राष्ट्रीयकृत बैंक सूचीबद्ध हैं। इसका मतलब यह नहीं के वे निजी हाथों में हैं, ऐसा करना उन सब का निजीकरण करना नहीं है ।
वे केवल भारत सरकार के नियंत्रण में हैं और सरकारी संस्थानों के रूप में जाने जाते हैं व कार्य भी कर रहे हैं।

हमारे वित्त मंत्री ने एल आई सी में सरकारी हिस्सेदारी के एक बहुत छोटे प्रतिशत को, सामान्य जनता को ,इस IPO के माध्यम से  देने का संकेत दिया है।
इसका निजीकरण से कोई लेना-देना नहीं है।
इस माध्यम से सरकार के अपने लाभ का एक छोटा सा प्रतिशत सभी के साथ साझा कर रही है। 
इस संदेश के साथ "द हिंदू" पेपर में हमारे वित्त मंत्री का साक्षात्कार संलग्न है , जहां यह उल्लेख किया गया है कि *"एलआईसी पॉलिसी अपनी संप्रभु गारंटी को बरकरार रखेगी"* जिसका अर्थ है कि भारत सरकार  आई सी द्वारा जारी सभी  पॉलिसियों पर  एलआईसी अधिनियम, 1956 की  धारा 37 के अनुसार नगद गारंटी देना जारी रखेगी।

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