29 सितम्बर आज के दिन ही भारत की 1936 बर्लिन ओलंपिक भारतीय हाँकी टीम की बम्बई बन्दर गाह पर स्वर्णिम कदम के साथ स्वदेश वापसी
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1936 भारतीय हाँकी टीम की स्वदेश वापसी की 29सितम्बर को 85वी वर्षगांठ
15 अगस्त 1936 को भारतीय हाँकी टीम और कप्तान ध्यानचंद की टीम ने बर्लिन ओलंपिक मे भारत के लिये तीसरा ओलंपिक स्वर्ण पदक जीतकर इस तारीख को अमर बना दिया और 15 अगस्त 1947 को देश की स्वंत्रतता की मुहर लगने से यह तारीख अपनी अमरता के साथ भारतीय इतिहास की हर भारतीय को गर्व करने की तारीख बन गई और इसके साथ ही भारतीय हाँकी टीम खिलाडियो ने शान से अपने गले मे भारत के लिये जीते तीसरे स्वर्ण पदक विजेता होने के गौरव के साथ 16 अगस्त 1936 को देर रात फ़्रंकफ़र्ट के लिये ट्रेन पकड़ने के साथ ही बर्लिन को अलविदा कहा और भारतीय हाँकी टीम 17अगस्त 1936 को फ़्रंकफ़र्ट पहुची जहा उसे जर्मन हाँकी एसोसिएशन के persident जॉर्ज एवेर्स का वह संदेश मिलता है जो बर्लिन ओल्म्पिक मे भारतीय हाँकी टीम के उत्कर्षट खेल को रेखांकित करता है वे अपने संदेश मे लिखते है *You and your boys have done wonderfully to foster the game of hockey in our country I hope you will return to India with good impression and with the same feeling of fri endship to the german hockey players as we feel towards you Tell them how much we all admired the skill and the artful performance of the perfect hockey you have shown us* इन पंक्तियो को पढ्ने के बाद आप भारतीय हाँकी टीम और कप्तान ध्यानचंद जी द्वारा खेली गयी जादू भरी उस कलात्मक हाँकी के प्रदर्शन का अंदाजा स्वयं ही लगा सकते हैं।
भारतीय हाँकी टीम ने 17 अगस्त से 17सितम्बर तक युरोप के विभिन्न शहरों का दौरा करते हुए लगभग 14 मैच खेले जिसमे भारतीय हाँकी टीम ने सभी मैच जीतते हुए विरोधी टीमों पर 81 गोल जडे ।जिस शहर मे मैच होता वहा दर्शक हजारो की संख्या मे मैदानों पर उमड़ पड़ते थे।
भारतीय हाँकी टीम लंदन से 17 सितम्बर 1936 को स्वदेश के लिए P &O स्टीमर Strathmore से रवाना होती है और उस जहाज मे भारत की कई नामी गिरामी हस्तिया भी भारतीय हाँकी टीम के साथ यात्रा कर रही होती है जिसमे नावब ऑफ़ पटौदी,महराज कुमार ऑफ़ विजयनगरम,महाराजा ऑफ़ मैसूर, और भारतीय क्रिकेट टीम के सदस्य शामिल थे ।12 दिनो की समुद्री यात्रा करते हुए भारतीय हाँकी टीम अपने स्वर्णिम कदम आज के ही दिन 29सितम्बर 1936 कोभारत की धरती बम्बई तट पर रखती है जहा बम्म्बई कोर्पोरेशन के मेयर इस टीम के नगर आगमन पर नागरिको से स्वागत की अपील जारी करते है (जो आप हिंदुस्तान मे प्रकाशित समाचार मे पढ सकते है) ।देश को गुलामी के उस दौर मे ओलंपिक मे सवर्ण पदक जीतकर भारतीय हाँकी टीम भारतीयो को गौर्ंंवीत होने के सुनहरे पलों की अनुभूति कराती है आज उसी महान भारतीय हाँकी टीम की स्वदेश वापसी की 85 वी वर्षगांठ है जिसे याद कर हर भारतीय अपने भारतीय होने के गर्व को महसूस कर सकते हैं जिसे मेजर ध्यानचंद और भारतीय हाँकी टीम ने देश को गुरबत और गुलामी मे अपनी मेहनत से खुन पसीना एक कर उप्लब्ध कराए ।
तो आइये याद करे उस महान भारतीय हाँकी टीम खिलाडियो को मेजर ध्यानचंद की उस जादू भरी कलात्मक हाँकी को जो उन्होने अपने भाई कैप्टन रुप सिंह, रिचर्ड एलेन ,मो हुसैन ,एम एन मसूद,कर्नल दारा,अहमद शेर खान, मो जाफर, गुरु चरण सिंह,रिचर्ड कार, एहसा न मो खान,पीटर पाल फर्नदिज ,जोए गल्ल्बेर्दी ,बाबू निमल जैसे महान खिलाडियों के साथ मिलकर खेलते हुए दुनिया को दिखायी और भारत का नाम दुनिया मे रोशन कर दिया। स्वयं जादूगर की संज्ञा पाकर मैदान मे चांद की भांती रोशनी बिखेरकरआसमान के ध्यान सिंह से ध्यानचंद बन गए।
1936 बर्लिन ओलंपिक सभी भारतीय हाँकी टीम खिलाडियो को शत शत नमन है।
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