ऑनलाइन काव्य गोष्ठी गूगल मीट प्लेटफॉर्म के माध्यम से कवियीत्रीयों ने सुनाई मनमोहक कविताएं
दिनाँक 28/11/2020 को महिला काव्य मंच, लखनऊ इकाई, की ऑनलाइन काव्य गोष्ठी गूगल मीट प्लेटफॉर्म के माध्यम से सम्पन्न हुई। सर्वप्रथम गोष्ठी के प्रारंभ में मंच की सदस्या सुश्री आरती जायसवाल जी के द्वारा भी रामजी की वंदना एवं भजन को प्रस्तुत किया गया। तत्पश्चात डॉ रीना श्रीवास्तव, (अध्यक्ष, लखनऊ मध्य) जी के द्वारा गोष्ठी में शामिल सभी सम्मानीय सदस्यों एवं डॉ ऊषा चौधरी जी, महासचिव (महिला काव्य मंच, उत्तरप्रदेश, मध्य), डॉ राजेश कुमारी जी, (अध्यक्ष, महिला काव्य मंच, उत्तरप्रदेश, मध्य) जी का स्वागत उदबोधन प्रस्तुत किया। गोष्ठी में इसके पश्चात कविताओं का प्रस्तुतिकरण प्रारंभ हुआ। सर्वप्रथम अंजू जी के द्वारा लौट आते वो बचपन के दिन कविता को प्रस्तूत किया गया, जिसमें बचपन की अठखेलिया एवं शरारतों को बहुत ही सुंदर ढंग से बताया गया। इसके बाद गोष्ठी में नई सदस्या सुनैना जी के द्वारा एक महिला के विभिन्न रूपों का प्रस्तुतिकरण किया गया, उनकी कविता के शब्द थे- “तेरी आवाज़ को दबाया जाएगा। गोष्ठी के क्रम को आगे बढ़ाते हुए अध्यक्ष महोदया ने कालिंदी जी को आमंत्रित किया, जिन्होंने वर्तमान समय मे व्याप्त महामारी कोरोना के परिणामतः जो स्तिथि हमारे सम्मुख है, उसको अपनी कविता “सुनी है सड़कें” के माध्यम से प्रस्तुत किया। गोष्ठी में इसके पश्चात सुधा मिश्रा जी की रचना “सब्र कर इम्तिहान के दिन चार होते है” बड़ी ही सार्थक प्रतीत हुई, इसी क्रम में जूली जी ने अपनी कविता “जिंदगी अभी बाकी है” को प्रस्तुत किया। सुश्री दिव्यांशी शुक्ला के द्वारा “हर एक गलती एकबार करना चाहती हूँ” के माध्यम से अपने मन के भावों को प्रस्तुत किया गया। उसके बाद गोष्ठी में बीना श्रीवास्तव जी के द्वारा एक गज़ल “ख़ुद हम ही होगये तुमसे मुँह मोड़कर” प्रस्तुत की गयी, जिसकी प्रशंसा सभी सदस्यों ने की। तत्पश्चात गोष्ठी में मनीषा जी की रचना जिसके बोल “जा रहे हो तो जाओ” जो कि सैनिकों की भूमिका पर आधारित थी, को बेहद ही भावपूर्ण एवं मार्मिक ढंग से दर्शाया गया। इसके बाद गोष्ठी में आरती जी ने अपनी कविता पाठ जो कि बेटी नामक शीर्षक पर आधारित थी। गोष्ठी में समाँ तब बन गया, जब अर्चना जी ने अपनी कविता जिसके बोल थे “माँ तुझे जाना ख़ुद मैने एक माँ बनकर” के द्वारा माँ की जीवन मे महत्ता को बेहद खूबसूरती से दर्शाया।
गोष्ठी में सभी प्रतिभागियों ने अपनी स्वलिखित रचनाओं को प्रस्तुत किया। गोष्ठी का क्रम पुनः आगे बढ़ा और उसी क्रम में स्वधा जी ने अपनी कविता “फिर उकेरे गए शिल्प पाषाण पर” को प्रतिभागियों के समक्ष प्रस्तुत किया। डॉ अनुराधा जी ने “मन चंचल विस्मित चकित दृगों में” रचना को बहुत ही सुंदर ढंग से पिरोया गया। गोष्ठी में शोभा त्रिपाठी जी ने अत्यंत मनमोहक रचना जिसके बोल “प्रेम पावन ह्रदय की सरल भावना, हममें शामिल नहीं है तनिक वासना” सभी सदस्यों को बेहद पसंद आयी। इसी क्रम में डॉ गीता रानी जी ने अपनी रचना प्रस्तुत की जिसके बोल “मिलकर रोपें बीज ऐसा” थे। डॉ शोभा बाजपेई जी ने “एक अबोध कहाँ तक” कविता का पाठ किया। एक से बढ़कर एक कविताओं का सभी ने रसास्वादन लिया। इसी क्रम में डॉ रेखा गुप्ता जी ने “लगता है फुस्स लेकिन होता है धमाका” को जैसे ही प्रस्तुत किया सभी ने जोरदार तालियों से उनकी रचना का अभिवादन किया। डॉ कीर्ति जी ने अपनी कविता “मेरे बच्चें अब बड़े हो गए है” में माँ के मनोभावों का प्राचीन और वर्तमान समय के परिप्रेक्ष्य में तुलनात्मक चित्रण प्रस्तुत किया। तत्पश्चात ख्याति प्राप्त कवयित्री, साधना मिश्रा जी ने जहाँ 60 वर्ष की महिला की मनःस्थिति को रचना के माध्यम से दर्शाया, जिसकी सभी ने भूरि-भूरि प्रशंसा की, वहीं अन्य ख्याति प्राप्त कवयित्री डॉ ऊषा चौधरी जी ने भी एक गज़ल “मुझे दरिया में गिराने वाले को कहाँ मालूम था” सुनाकर सभी सदस्यों से खूब वाहवाही लूटी। इसप्रकार गोष्ठी में एक से बढ़कर एक रचनाओं का कविता पाठ किया गया।
गोष्ठी के अंतिम पड़ाव पर अध्यक्ष महोदया डॉ राजेश कुमारी जी ने भी अपनी कविता शीर्षक “आशा” के माध्यम से कविता पाठ किया जिसने सभी सदस्यों के मन मे एक नयी आशा का संचार किया। गोष्ठी में दीप्ति जी के द्वारा रचना जिसका शीर्षक “किन्नर” था को हाल ही में ख्याति प्राप्त पत्रिका “अपरिहार्य” में भी स्थान प्राप्त हुआ। कार्यक्रम के अंत में काव्य गोष्ठी की संचालिका डॉ रीना श्रीवास्तव जी के द्वारा भी एक कविता “आओ मिलकर दिया जलाएं” का प्रस्तुतिकरण किया गया, उनकी रचना मानो सदस्यों से कविता रूपी दिया जलाने का आवाहन कर रही थी। अंत मे रीना जी ने सभी सदस्यों को धन्यवाद ज्ञापित किया और शांति पाठ के साथ इस माह की काव्य गोष्ठी का समापन किया गया।
No comments