Lucknow : बादलों के बीच सूर्य ग्रहण के दीदार पर संशय, “ एरीज “ एवं नासा ट्रैकर करेगा लाइव टेलिकास्ट
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जहाँ देश व दुनिया में लोगों, वैज्ञानिकों, शिक्षकों, बच्चो खगोल शास्त्रियों, और ज्योतिषों की निगाहें इस ग्रहण की ओर लगी हुईं हैं वहीं मानसून के कारण उत्तरप्रदेश के साथ साथ भारत के कई हिस्सों मैं सुबह से ही बादल छाए होने एवं कहीं कहीं बारिश के कारण सूर्यग्रहण का दीदार नहीं होने की संभावना है विज्ञान संचारक और स्टेट कोऑर्डिनेटर विद्यार्थी विज्ञान मंथन डॉ सुशील द्विवेदी के अनुसार खगोल घटनाओं मैं रुचि रखने वाले निराश न हों क्योंकि भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान (एआरआईईएस या एरीज), आगामी सूर्य ग्रहण का सोशल मीडिया पर लाइव टेलिकास्ट करेगा।इसके आलावा नासा ट्रैकर खगोलीय घटनाओं को लाइव टेलिकास्ट करने वाले Slooh और Vitual Telescope समेत कई यूट्यूब चैनल्स पर भी इसे देख सकते हैं
सबसे खास बात तो यही है कि 21 जून को लगने वाला यह सूर्य ग्रहण एक पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा राजस्थान के सूरतगढ़ और अनूपगढ़, हरियाणा के सिरसा, रतिया और कुरुक्षेत्र, उत्तराखंड के देहरादून, चंबा, चमोली और जोशीमठ जैसी जगहों पर सूर्य ग्रहण के दौरान विज्ञान में दिलचस्पी रखने वाले लोग 'रिंग ऑफ़ फ़ायर' या 'आग के छल्ले' का दीदार एक मिनट के लिए कर सकेंगे देश के कुछ हिस्सों में ये वलयाकार दिखेगा, देश के ज़्यादातर हिस्सों में सूर्य ग्रहण आंशिक ही दिखेगा.
विज्ञान संचारक सुशील द्विवेदी के अनुसार लखनऊ मैं सूर्यग्रहण सुबह 10.26 मिनट से शुरू हो कर दोपहर 1.50 समाप्त होगा
आकाश मैं सूर्य ग्रहण को सीधे कोरी आंखों से न देखें
विज्ञान संचारक सुशील द्विवेदी के सूर्यग्रहण भले ही यादगार पल होते हैं लेकिन उन्हें कभी खुली आंखों से नहीं देखना चाहिए. चांद आंशिक रूप से सूरज को ढक ले, तब भी सूरज बहुत चमकीला होता है. दरअसल, सूर्य ग्रहण के दौरान सोलर रेडिएशन से आंखों के नाजुक टिशू डैमेज हो सकते हैं. ऐसा करने से आखों में विजन - इशू यानी आँख का पर्दा ख़राब होने से देखने में दिक्कत हो सकती है. इसे रेटिनल सनबर्न भी कहते हैं. ये परेशानी कुछ वक्त या फिर हमेशा के लिए भी हो सकती है. इसलिए विशेष प्रकार के सूर्य ग्रहण देखने वाले विशेष चश्मों सोलर व्यइंग ग्लासेज ,पर्सनल सोलर फ़िल्टर या आइक्लिप्स ग्लासेज से सूर्यग्रहण को देखना चाहिए पिन होल कैमरे या टेलीस्कोप या दूरबीन से परदे पर ग्रहण का प्रतिबिंबित देख सकते हैं। ग्रहण को एक्स-रे फिल्म या साधारण चश्मे से भी नहीं देखना चाहिए। होममेड फिल्टर्स या साधारण सनग्लासेज पेंट किए हुए शीशे अर्थात डार्क सनग्लास से भी ग्रहण को देखना सुरक्षित नहीं है।
वैज्ञानिकों के लिए उत्सव क्यों है सूर्य ग्रहण
विज्ञान संचारक सुशील द्विवेदी के अनुसार सूर्य ग्रहण विज्ञान के लिए किसी उत्सव से कम नहीं है. सूर्य ग्रहण ही वह समय होता है जब ब्राह्मंड में अनेकों विलक्षण एवं अद्भुत घटनाएं घटित होतीं हैं जिससे वैज्ञानिकों को नये तथ्यों को समझने का अवसर मिलता है. सूर्य ग्रहण के दौरान वैज्ञानिक सूर्य से निकलने वाली किरणों के बारे में अध्ययन करते हैं . उदाहरण के लिए 1968 में वैज्ञानिक लार्कयर नें सूर्य ग्रहण पर वर्ण मंडल में हीलियम गैस की उपस्थिति का पता लगाया. आईन्स्टीन की गुरुत्वाकर्षण खोज में सूर्य ग्रहण का खास योगदान था. वहीं जीव वैज्ञानिक ग्रहण के दौरान पशु पक्षियों के व्यवहार का अध्ययन करते हैं . क्योंकि अचानक सूरज के ग़ायब होने और पृथ्वी पर अंधेरा छा जाने के कारण जानवरों की जैविक घड़ी अर्थात बायोलॉजिकल क्लॉक गड़बड़ा जाती है. इसके अलावा वैज्ञानिक सूर्य से निकलने वाली गामा किरणों, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं. कहा जाता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान धरती पर गुरुत्वाकर्षण कम हो जाता है.
जहाँ देश व दुनिया में लोगों, वैज्ञानिकों, शिक्षकों, बच्चो खगोल शास्त्रियों, और ज्योतिषों की निगाहें इस ग्रहण की ओर लगी हुईं हैं वहीं मानसून के कारण उत्तरप्रदेश के साथ साथ भारत के कई हिस्सों मैं सुबह से ही बादल छाए होने एवं कहीं कहीं बारिश के कारण सूर्यग्रहण का दीदार नहीं होने की संभावना है विज्ञान संचारक और स्टेट कोऑर्डिनेटर विद्यार्थी विज्ञान मंथन डॉ सुशील द्विवेदी के अनुसार खगोल घटनाओं मैं रुचि रखने वाले निराश न हों क्योंकि भारत सरकार के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग (डीएसटी) के स्वायत्त संस्थान आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञान एवं शोध संस्थान (एआरआईईएस या एरीज), आगामी सूर्य ग्रहण का सोशल मीडिया पर लाइव टेलिकास्ट करेगा।इसके आलावा नासा ट्रैकर खगोलीय घटनाओं को लाइव टेलिकास्ट करने वाले Slooh और Vitual Telescope समेत कई यूट्यूब चैनल्स पर भी इसे देख सकते हैं
सबसे खास बात तो यही है कि 21 जून को लगने वाला यह सूर्य ग्रहण एक पूर्ण सूर्य ग्रहण होगा राजस्थान के सूरतगढ़ और अनूपगढ़, हरियाणा के सिरसा, रतिया और कुरुक्षेत्र, उत्तराखंड के देहरादून, चंबा, चमोली और जोशीमठ जैसी जगहों पर सूर्य ग्रहण के दौरान विज्ञान में दिलचस्पी रखने वाले लोग 'रिंग ऑफ़ फ़ायर' या 'आग के छल्ले' का दीदार एक मिनट के लिए कर सकेंगे देश के कुछ हिस्सों में ये वलयाकार दिखेगा, देश के ज़्यादातर हिस्सों में सूर्य ग्रहण आंशिक ही दिखेगा.
विज्ञान संचारक सुशील द्विवेदी के अनुसार लखनऊ मैं सूर्यग्रहण सुबह 10.26 मिनट से शुरू हो कर दोपहर 1.50 समाप्त होगा
आकाश मैं सूर्य ग्रहण को सीधे कोरी आंखों से न देखें
विज्ञान संचारक सुशील द्विवेदी के सूर्यग्रहण भले ही यादगार पल होते हैं लेकिन उन्हें कभी खुली आंखों से नहीं देखना चाहिए. चांद आंशिक रूप से सूरज को ढक ले, तब भी सूरज बहुत चमकीला होता है. दरअसल, सूर्य ग्रहण के दौरान सोलर रेडिएशन से आंखों के नाजुक टिशू डैमेज हो सकते हैं. ऐसा करने से आखों में विजन - इशू यानी आँख का पर्दा ख़राब होने से देखने में दिक्कत हो सकती है. इसे रेटिनल सनबर्न भी कहते हैं. ये परेशानी कुछ वक्त या फिर हमेशा के लिए भी हो सकती है. इसलिए विशेष प्रकार के सूर्य ग्रहण देखने वाले विशेष चश्मों सोलर व्यइंग ग्लासेज ,पर्सनल सोलर फ़िल्टर या आइक्लिप्स ग्लासेज से सूर्यग्रहण को देखना चाहिए पिन होल कैमरे या टेलीस्कोप या दूरबीन से परदे पर ग्रहण का प्रतिबिंबित देख सकते हैं। ग्रहण को एक्स-रे फिल्म या साधारण चश्मे से भी नहीं देखना चाहिए। होममेड फिल्टर्स या साधारण सनग्लासेज पेंट किए हुए शीशे अर्थात डार्क सनग्लास से भी ग्रहण को देखना सुरक्षित नहीं है।
वैज्ञानिकों के लिए उत्सव क्यों है सूर्य ग्रहण
विज्ञान संचारक सुशील द्विवेदी के अनुसार सूर्य ग्रहण विज्ञान के लिए किसी उत्सव से कम नहीं है. सूर्य ग्रहण ही वह समय होता है जब ब्राह्मंड में अनेकों विलक्षण एवं अद्भुत घटनाएं घटित होतीं हैं जिससे वैज्ञानिकों को नये तथ्यों को समझने का अवसर मिलता है. सूर्य ग्रहण के दौरान वैज्ञानिक सूर्य से निकलने वाली किरणों के बारे में अध्ययन करते हैं . उदाहरण के लिए 1968 में वैज्ञानिक लार्कयर नें सूर्य ग्रहण पर वर्ण मंडल में हीलियम गैस की उपस्थिति का पता लगाया. आईन्स्टीन की गुरुत्वाकर्षण खोज में सूर्य ग्रहण का खास योगदान था. वहीं जीव वैज्ञानिक ग्रहण के दौरान पशु पक्षियों के व्यवहार का अध्ययन करते हैं . क्योंकि अचानक सूरज के ग़ायब होने और पृथ्वी पर अंधेरा छा जाने के कारण जानवरों की जैविक घड़ी अर्थात बायोलॉजिकल क्लॉक गड़बड़ा जाती है. इसके अलावा वैज्ञानिक सूर्य से निकलने वाली गामा किरणों, पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में जानकारी इकट्ठा कर रहे हैं. कहा जाता है कि सूर्य ग्रहण के दौरान धरती पर गुरुत्वाकर्षण कम हो जाता है.
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