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पितृपक्ष कनागत में श्राद्ध करने की विधि

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जे पी द्विवेदी उप सम्पादक

श्राद्ध का आरम्भ हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा और आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से होता है। आश्विन मास की अमावस्या तक पितृपक्ष कहलाता है। इसे कनागत भी कहा जाता है। सोलह दिनों के इस पक्ष में मृत पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है।
श्राद्ध | पितृ पक्ष | कनागत से जुड़ी कुछ खास बातें
★श्राद्ध किसे कहते हैं?
बुजुर्गों की मृत्यु तिथि के दिन श्रद्धापूर्वक तर्पण और ब्राह्मण को भोजन कराना ही श्राद्ध है।
★श्राद्ध, कनागत या पितृ पक्ष कब शुरू होता है?
श्राद्ध का आरम्भ हिन्दू पंचांग के अनुसार भाद्रपद मास की पूर्णिमा और आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा से होता है। आश्विन मास की अमावस्या तक पितृपक्ष कहलाता है।
★पितृ पक्ष 2019 कब से शुरू है?
13 सितंबर 2019 से 28 सितंबर 2019 तक।
★श्राद्ध किसका किया जाता है?
 पितृ पक्ष में मृत पूर्वजों का श्राद्ध किया जाता है।
★श्राद्ध करने से क्या होता है?
पितरों को संतुष्टि और शांति मिलती है।
★श्राद्ध करने का अधिकार किसको है?
बड़े बेटे या नाती को।
★ पुरुष के श्राद्ध में किसे भोजन करते हैं?
ब्राह्मण को।
★ महिला के श्राद्ध में किसे भोजन कराना चाहिए?
 ब्राह्मणी को।
★श्राद्ध के भोजन में विशेष रूप से क्या होता है?
खीर और पूड़ी।
★श्राद्ध का तर्पण कैसे किया जाता है?
श्राद्ध का संकल्प बोलकर।
पितृपक्ष कनागत में श्राद्ध करने की विधि -
श्राद्ध करने का अधिकार ज्येष्ठ पुत्र अथवा नाती को होता है। पुरुष के श्राद्ध में ब्राह्मण को तथा महिला के श्राद्ध में ब्राह्मणी को भोजन कराते हैं। भोजन में खीर और पूरी विशेष रूप से होती है।
भोजन कराने के बाद दक्षिणा दी जाती है। पितृपक्ष में पितरों की मरने की तिथि को ही उनका श्राद्ध किया जाता है। गया जी में श्राद्ध करने का बड़ा महत्व माना गया है।
जानिए किस दिन कौन सा श्राद्ध है?
●13 सितंबर 2019 शुक्रवार पूर्णिमा का श्राद्ध
●14 सितंबर 2019 शनिवार प्रतिपदा का श्राद्ध
●15 सितंबर 2019 रविवार द्वितीया का श्राद्ध
●16 सितंबर 2019 सोमवार तृतीया का श्राद्ध
●17 सितंबर 2019 मंगलवार चतुर्थी का श्राद्ध
●18 सितंबर 2019 बुधवार पंचमी महा भरणी का श्राद्ध
●19 सितंबर 2019 बृहस्पतिवार षष्ठी का श्राद्ध
●20 सितंबर 2019 शुक्रवार सप्तमी का श्राद्ध
●21 सितंबर 2019 शनिवार अष्टमी का श्राद्ध
●22 सितंबर 2019 रविवार नवमी का श्राद्ध
●23 सितंबर 2019 सोमवार दशमी का श्राद्ध
●24 सितंबर 2019 मंगलवार एकादशी का श्राद्ध
●25 सितंबर 2019 बुधवार द्वादशी का श्राद्ध
●26 सितंबर 2019 बृहस्पतिवार त्रयोदशी, मघा श्राद्ध
●27 सितंबर 2019 शुक्रवार चतुर्दशी का श्राद्ध
●28 सितंबर 2019 शनिवार पितृ विसर्जन,सर्वपितृ अमावस्या
पितृपक्ष में देवताओं को जल देने के पश्चात्‌ मृतकों का नामोंच्चारण करके उन्हें भी जल देना चाहिए। बुजुर्गों की मृत्यु तिथि के दिन श्रद्धा पूर्वक तर्पण और ब्राह्मण को भोजन कराना ही श्राद्ध है।
श्राद्ध | तर्पण | की पूजा सामग्री
◆पान
◆ सुपारी
◆काले तिल
◆जौ
◆ गेहूं
◆ चंदन
◆ जनेऊ
◆तुलसी
◆पुष्प
◆दूब
◆कच्चा दूध
◆जल
तर्पण कैसे किया जाता है ?
तर्पण के लिए पान, सुपारी, काला तिल, जौ, गेहूँ, चंदन, जनेऊ, तुलसी, पुष्प, दूब, कच्चा दूध, जल आदि सामग्री तर्पण पूजा हेतु एकत्रित कर लेनी चाहिए।
तर्पण पूजा करने का स्थान गाय के गोबर से साफ कर लेना चाहिए। मृत पितृ के निमित्त और उनकी तिथि स्मरण करके नैवेद्य निकाल देना चाहिए। एक थाली में गाय का (पंच ग्रास) तथा एक थाली में ब्राह्मण भोजन निकाले।
श्राद्ध संकल्प कैसे करें ?
श्राद्ध संकल्प : आज मिमी………….. वार………….. मास………….. (कृष्ण पक्ष /शुक्ल पक्ष) पक्षे संयुक्त संवत्सरे (पितृ /मातृ या दादा /दादी) की पुण्य श्राद्ध तिथि पर उनके ब्रह्मलोक में स्वर्ग का आनंद एवं सुख की प्राप्ति हेतु धर्मराज की प्रसन्नता के लिए काक बलि, मार्ग देवता की प्रसन्नता के लिए खान (कुत्ता) बलि, वैतरणी नदी के पार कराने हेतु गौ ग्रास बलि, कीट पतंग की तृप्ति व अतिथि देवता हेतु पंच ग्रास बलि………… (अमुक) के निमित्त है। उनकी (माता- पिता, दादा-दादी) भूख प्यास का दोष शांत हो तथा उन्हें आनंद की प्राप्ति होवे। हमारे वंश व धन की वृद्धि होवे।
(ऐसा बोलते हुए हाथ में जल, जौ, तिल दक्षिणा रखे हुए पांचों ग्रास पर घुमाकर दक्षिण की ओर मुँह करके छोड़ दें) इसके अतिरिक्त ब्राह्मण भोजन के निमित्त जो थाली में प्रसाद रखा है उस पर घुमाकर जल छोड़े और कहें इससे हमारे………….. (माता-पिता, दादा-दादी) की तृप्ति होवे प्रसन्नता होवे।
पितृ विसर्जन अमावस्या-
इस दिन शाम को दीपक जलाने के बाद पूड़ी पकवान आदि खाद्य पदार्थ दरवाजे पर रखे जाते हैं। जिसका अर्थ यह है कि पितर जाते समय भूखे न रह जाए।
इसी तरह दीपक जलाने का आशय उनके मार्ग को प्रकाशमय करने का है। आश्विन अमावस्या पितृ अमावस्या के नाम से जानी जाती है।
इस दिन ब्राह्मण भोजन तथा दान आदि से पितर तृप्त हो जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि विसर्जन के समय वे अपने पुत्रों को आशीर्वाद देकर जाते हैं। इस दिन सवा किलो जौ के आटे के 16 पिण्ड बनाकर, आठ गाय को, चार कुत्ते को एवं कौओ को खिलाना चाहिए एवं उस दिन पितृ स्त्रोत का पाठ करना चाहिए।
पितृ स्त्रोत-
जो सबके द्वारा पूज्यनीय, अमूर्त, अत्यन्त तेजस्वी, ध्यानी तथा दिव्य दृष्टि से संपन्न हैं, मैं उन पितरों को सदा नमस्कार करता हूं। जो इन्द्र आदि देवताओं, दक्ष, मारीचादि सप्तर्षियों तथा दूसरों के भी नेता हैं, कामनाओं की पूर्ति करने वाले पितरों को मैं प्रणाम करता हूं।
जो मनु आदि राजर्षियों, मुनीश्वरो तथा सूर्य और चंद्रमा के भी नायक हैं, उन समस्त पितरों को मैं जल और समुद्र में भी नमस्कार करता हूं। नक्षत्रों, ग्रहों, वायु, अग्नि, आकाश और भूलोक तथा पृथ्वी के जो भी नेता हैं उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।
जो देव ऋषियों के जन्म दाता, समस्त लोकों द्वारा वंदित तथा सदा अक्षय फल के दाता हैं, उन पितरों को मैं हाथ जोड़कर प्रणाम करता हूं।
प्रजापति, कश्यप, सोम, वरुण, तथा, योगेश्वरों के रूप में स्थित सात पितृगणों को कोटि-कोटि प्रणाम। मैं योगदृष्टि संपन्न स्वयंभू ब्रह्मा जी को प्रणाम करता हूं। चंद्रमा के आधार पर प्रतिष्ठित तथा योगमूर्तिधारी पितृ गणों को मैं प्रणाम करता हूं।
साथ ही सम्पूर्ण जगत के पिता सोम को नमस्कार करता हूं तथा अग्नि स्वरूप अन्य पितरों को भी प्रणाम करता हूं क्योंकि यह सम्पूर्ण जगत अग्नि और सोममय है।
जो पितर में स्थित है, जो ये चंद्रमा, सूर्य और अग्नि के रूप में विद्यमान है। तथा जो जगत स्वरूप एवं ब्रह्म स्वरूप हैं, उन सम्पूर्ण योगी पितरों को मैं एकाग्रचित होकर प्रणाम करता हूं। मैं उन्हें बार-बार शत शत प्रणाम करता हूं। वे स्वधाभोजी पितर मुझ पर प्रसन्न हों।

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