खेत में काम कर रहे किसान पर बाघ का हमला, नौ लोग घायल
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आदेश शर्मा जिला व्यूरो लखीमपुर खीरी
दुधवा टाइगर रिजर्व से सटे पडोसी जनपद
पीलीभीत के टाइगर रिजर्व के वन रेंज दियोरिया में टाइगर ने अपने खेत में काम कर रहे श्याम मोहन (21) निवासी ग्राम मटैना कोतवाली पूरनपुर पर हमला कर दिया। श्याम मोहन की चीख-पुकार सुनकर पास पड़ोस के खेत में काम करने वाले किसान भी उसे बचाने दौड़े इस पर टाइगर नेआक्रामक होकर उन सभी पर हमला कर दिया इस प्रकार श्याम मोहन सहित 9 किसान घायल हो गए हैं। श्याम मोहन की चीख-पुकार पर उसे बचाने पहुंचे बलवीर ,रामवृक्ष, रमेश, राधेश्याम, राम सरन, कमल सिंह ,दीपक और लक्ष्मण थे। पता चला कि श्याम मोहन जहां काम कर रहा था हमलावर टाइगर वहीं पास के खेत में छिपा था और उसने मौका पाकर श्याम मोहन पर हमला कर दिया ।घायलों में श्याम मोहन ,रामवृक्ष और बलवीर की हालत नाजुक बनी हुई है इन्हें जिला अस्पताल भेज दिया गया है। इस घटना पर रोष से भरे ग्रामीण भारी संख्या में इकट्ठे हो गए और ग्रामीणो ने हमलावर टाइगर को पीट पीट कर मरणा सन्न किया सूत्रो की माने तो ग्रामीणो के द्वारा की गयी पिटाई से टाइगर की मौत हो चुकी है
इस स्थिति को संभालने के लिए पीटीआर के डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल ,सीईओ पूरनपुर, उप जिलाधिकारी पूरनपुर भी वहाँ पहुंच गए थे जानकारी के अनुसार छेत्र के ग्रामीणो मे वन्य जीवो द्वारा लगातार निर्दोष नागरिको पर हमले होने से काफी उत्तेजना फैली हुयी है
सबाल उठरहे हैं कि क्या वन विभाग के पास टाइगर रिजर्व से सटे नागरिक इलाको मे रहने वाले निर्दोष नागरिको की जान वचाने की कोई कारगर योजना है ,वन विभाग के नीति निर्माताओ ने टाइगर ,हाथी जैसे वन्य जीवो को जंगल से बाहर नागरिक आबादी की तरफ जाने से रोकने की कोई योजना बनाई है क्या
लगता है कि वन विभाग की लगाम ऐसे किताबी रहनुमाओ के हाथ मे है जो सिर्फ किताबे पढ कर ऊंचे ऊंचे पदो पर बैठ कर दिल्ली लखनऊ के आलीशान बंगलो आफिसो मे एसी हालो मे मीटिंगे करके विना वन्यजीवो की आदतो से उनकी जीवन शैली से परिचित हुये मनमाने आदेश पारित करते रहते हैं या फिर उनके सामने टेवल पर वन कर्मियों द्वारा संपन्न किये गये वन्य जीवो की खाद्ध श्रंखला का अति महत्वपूर्ण विंदु ग्रास लैंड के डेवलपमेंट संबन्धी फर्जी आंकडे पडे रहते हैं जिसे देख कर अधिकारी यह मान लेते हैं कि इतना काम हो चुका है अब आगे का दूसरा चरण लागू किया जाये जब कि सच्चाई सच से कोसो दूर होती है
जिसके चलते जमीनी स्तर पर काम करने वाले छोटे वन कर्मियो की जान जाने का डर हमेशा वना रहता है
वहीं आम नागरिको का जीवन भी संकट मे पडा रहता है
सूत्रो की माने तो देश का सबसेअमीर विभाग है वन विभाग जहां अरबो खरबो कीमत के जंगल की रक्छा करने के लिये आज तक पंद्रहवी सदी के उपाय ही अपनाये जा रहे है जब कि भारत के पास स्वयं की सैटेलाइट टेक्नांलाजी है
सरकार यदि चाहे तो सैटेलाइट के सहयोग से वनो व वन्यजीवो पर आसमान से ही पूरी निगाह रखी जा सकती है जंगल से बाहर निकलकर मानव आवादी इलाके मे भृमण करने वाले वन्य जीवो को सेटेलाइट से लोकेशन चिन्हित कर वापस जंगल मे खदेडा जा सकता है
अवांछित तत्वो के जंगल प्रवेष को रोका जा सकता है जरूरत है कि वन विभाग को भी समय के साथ हाईटेक करने की
सूत्रो की माने तो देश विदेश के तमाम सरकारी गैर सरकारी संस्थानो ,पर्यावरण संस्थाओ से प्रतिवर्ष काफी मोटी रकमे वनो, वन्य जीवो, की सुरक्छा ,संबर्धन व बिकास के लिये वन विभाग के विभिन्न आनुषंगिक संगठनो यथा टाइगर प्रोजेक्ट, राइनो प्रोजेक्ट, एलीफैंट प्रोजेक्ट आदि के नाम पर दी जाती है पर वन विभाग मे व्याप्त भृष्टाचार के चलते उस रकम के काफी बडे हिस्से का निस्तारण कागजो मे सिर्फ सिग्नेचर पर सिग्नेचर करा कर इस आफिस से उस आफिस इस टेवल से उस टेवल तक फाइल दौडा कर बंदरबांट कर लिया जाता है
यहां तक कि टाइगर प्रोजेक्टो मे शाकाहारी वन्य जीवो के विकास व संबर्धन हेतु जंगलो मे घास के मैदान ग्रास लैंड वनाने के लिये जो हैवी अर्थ मूंविंग मशीने चेन टाइप डी4डी कैटरपिलर ट्रेक्टर वन विभाग को दिये गये थे वह वर्षो से कहीं किसी रेंज की नर्सरी मे तो कहीं किसी टाइगर प्रोजेक्ट की दर्शक दीर्घा के पर्यटन स्थल मे रंगे चुने खडे रहकर विभाग की शोभा बढा रहे हैं
सबाल यह उठता है कि जब यह मशीने वर्षो से एक ही स्थान पर खडी हैं तो फिर जंगलो मे मूंजे की झाडियां या वह लम्बी लम्बी घासे जिन्हे हिरन चीतल पाढा आदि शाका हारी वन्य जीव नहीं खाते और ऐसी घासो ने जंगलो के ग्रास लैंडो को लगभग निगल लिया है को वन विभाग कैसे तोड रहा है कैसे ग्रास लैंड की जुताई कर रहा है
इसी तरह उत्तरा खंड के जिम कार्बेट नेशनल पार्क का मामला है जहां लैंटिना नामकी झाडी जैसे पौधो ने लगभग पार्क के 70% जमीन पर कब्जा कर लिया है इस पौधे को कोई वन्यजीव नहीं खाता और तो और यह झाडी न जलाने से समाप्त होती है न जडे निकाल कर फेंकने से
यक्छ प्रश्न है कि जब वन विभाग ग्रासलैंडो की जुताई करने वाली मशीनो का उपयोग ही नहीं करता यह सक्छम मशीने चलाई ही नहीं जा रहीं है तो फिर ग्रास लैंडो के विकास का काम कैसे , किन मशीनो से हो रहा है
ग्रास लैंडो के विकास का पैसा कहां जा रहा है
कहां खर्च हो रहा है
वन विभाग मे व्याप्त भृष्टाचार की बात करें तो दो वर्षो पूर्व जनपद लखीमपुर खीरी मे ही महेश पुर रेंज के सीमावर्ती गांव सुंदरपुर मे घमहां घाट के पास एक किसान की खेत मे पानी लगाते समय टाइगर द्वारा किये गये हमले मे मौत के बाद मौके पर पहुंचे वन कर्मी रामप्रसाद के वयान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिसमे राम प्रसाद ने वन विभाग मे व्याप्त भृष्टाचार से पर्दा हटाते हुये अपनी व्यथा को उजागर किया था जिसकी वीडियो रेकार्डिंग उस समय मैने स्वयं की थी
राम प्रसाद ने हजारो लोगो की भीड के समक्छ स्वीकार किया था कि वन विभाग ने वनो की सुरक्छा के लिये 315 वोर राइफलें तो वन कर्मियो को दीं लेकिन पांच वर्षो से कारतूस नहीं दिये गये और बिना कारतूस राइफलो को सिर्फ डंडो की तरह प्रयोग करने का प्रशिक्छण भी वन विभाग ने नहीं दिया तो कैसे हो वनो की सुरक्छा ,कैसे बचाये जायें वन्यजीव और कैसे की जाये वनो के पास रहने वाले नागरिको की सुरक्छा और कैसे की जाये वनो के अंदर घुस कर मात्र एक कारतूस विहीन राइफल और मोटर सायकल पर पीछे बैठे छोटी कुल्हाडी जैसे हथियार धारी बाचर के साथ टाइगर जैसे हिंसक वन्य जीवो से भरे जंगल मे गश्त
सबाल अहम है क्या वास्तव मे वन विभाग का लखनऊ हेड आफिस कारतूसो की खरीद ही नहीं करता ?
या सिर्फ कागजो पर ही फर्जी विल वाउचर लगा कर कारतूस खरीद दर्शा कर रुपये बंदरबांट किये जाने की परंपरा वन गयी है
दूसरा सबसे अहम सबाल कि यदि बडे पैमाने पर वन विभाग द्वारा फर्जी खरीद की जाती रही है तो उन कारतूसो का आखिर होता क्या है
क्या ऐसे ही कारतूस कहीं देश मे मौजूद नक्सल वादियों अपराधियो के हाथ लग कर हमारे सुरक्छा वलो की हत्याओं का कारण तो नहीं बन रहे कुछ भी हो पर वन रक्छक रामप्रसाद द्वारा लगाये गये आरोप यदि सही है तो वास्तव मे कहीं कुछ बहुत ही गलत हो रहा है
क्यो कि वन विभाग द्वारा किया जा रहा भृष्टाचार अब निर्दोष ग्रामीण की जान जाने का सीधा कारण वनता जा रहा है
वन विभाग के आला अफसरो की गलती का खामियाजा अब सीधे निर्दोष नागरिको को जान देकर चुकाना पड रहा है आये दिन टाइगर रिजर्वो के जंगलो से निकल कर हिंसक वन्यजीव टाइगर, तेंदुये ,हाथी मानव आवादी के नजदीक देखे जा रहे है
मानव वन्य जीव संघर्ष के वास्तविक कारण क्या है इसको मनन करना होगा वास्तविकता को स्वीकार करना होगा तभी मानव वन्य जीव संघर्ष को रोका जा सकेगा
बार बार होने बाले हमलो के लेकर त्रस्त ग्रामीण अब आये दिन होने बाले टाइगरों के हमलो की अनदेखी करने के मूड मे नहीं दिखाई देते
जिसका परिणाम कहीं दुर्लभ वन्य जीवो की मौत या निर्दोष नागरिको की मौत के रूप मे सामने आता रहेगा
उत्तेजित ग्रामीणो ने टाइगर को भी घेर कर जम कर पीटा मरणासन्न किया
दुधवा टाइगर रिजर्व से सटे पडोसी जनपद
पीलीभीत के टाइगर रिजर्व के वन रेंज दियोरिया में टाइगर ने अपने खेत में काम कर रहे श्याम मोहन (21) निवासी ग्राम मटैना कोतवाली पूरनपुर पर हमला कर दिया। श्याम मोहन की चीख-पुकार सुनकर पास पड़ोस के खेत में काम करने वाले किसान भी उसे बचाने दौड़े इस पर टाइगर नेआक्रामक होकर उन सभी पर हमला कर दिया इस प्रकार श्याम मोहन सहित 9 किसान घायल हो गए हैं। श्याम मोहन की चीख-पुकार पर उसे बचाने पहुंचे बलवीर ,रामवृक्ष, रमेश, राधेश्याम, राम सरन, कमल सिंह ,दीपक और लक्ष्मण थे। पता चला कि श्याम मोहन जहां काम कर रहा था हमलावर टाइगर वहीं पास के खेत में छिपा था और उसने मौका पाकर श्याम मोहन पर हमला कर दिया ।घायलों में श्याम मोहन ,रामवृक्ष और बलवीर की हालत नाजुक बनी हुई है इन्हें जिला अस्पताल भेज दिया गया है। इस घटना पर रोष से भरे ग्रामीण भारी संख्या में इकट्ठे हो गए और ग्रामीणो ने हमलावर टाइगर को पीट पीट कर मरणा सन्न किया सूत्रो की माने तो ग्रामीणो के द्वारा की गयी पिटाई से टाइगर की मौत हो चुकी है
इस स्थिति को संभालने के लिए पीटीआर के डिप्टी डायरेक्टर नवीन खंडेलवाल ,सीईओ पूरनपुर, उप जिलाधिकारी पूरनपुर भी वहाँ पहुंच गए थे जानकारी के अनुसार छेत्र के ग्रामीणो मे वन्य जीवो द्वारा लगातार निर्दोष नागरिको पर हमले होने से काफी उत्तेजना फैली हुयी है
सबाल उठरहे हैं कि क्या वन विभाग के पास टाइगर रिजर्व से सटे नागरिक इलाको मे रहने वाले निर्दोष नागरिको की जान वचाने की कोई कारगर योजना है ,वन विभाग के नीति निर्माताओ ने टाइगर ,हाथी जैसे वन्य जीवो को जंगल से बाहर नागरिक आबादी की तरफ जाने से रोकने की कोई योजना बनाई है क्या
लगता है कि वन विभाग की लगाम ऐसे किताबी रहनुमाओ के हाथ मे है जो सिर्फ किताबे पढ कर ऊंचे ऊंचे पदो पर बैठ कर दिल्ली लखनऊ के आलीशान बंगलो आफिसो मे एसी हालो मे मीटिंगे करके विना वन्यजीवो की आदतो से उनकी जीवन शैली से परिचित हुये मनमाने आदेश पारित करते रहते हैं या फिर उनके सामने टेवल पर वन कर्मियों द्वारा संपन्न किये गये वन्य जीवो की खाद्ध श्रंखला का अति महत्वपूर्ण विंदु ग्रास लैंड के डेवलपमेंट संबन्धी फर्जी आंकडे पडे रहते हैं जिसे देख कर अधिकारी यह मान लेते हैं कि इतना काम हो चुका है अब आगे का दूसरा चरण लागू किया जाये जब कि सच्चाई सच से कोसो दूर होती है
जिसके चलते जमीनी स्तर पर काम करने वाले छोटे वन कर्मियो की जान जाने का डर हमेशा वना रहता है
वहीं आम नागरिको का जीवन भी संकट मे पडा रहता है
सूत्रो की माने तो देश का सबसेअमीर विभाग है वन विभाग जहां अरबो खरबो कीमत के जंगल की रक्छा करने के लिये आज तक पंद्रहवी सदी के उपाय ही अपनाये जा रहे है जब कि भारत के पास स्वयं की सैटेलाइट टेक्नांलाजी है
सरकार यदि चाहे तो सैटेलाइट के सहयोग से वनो व वन्यजीवो पर आसमान से ही पूरी निगाह रखी जा सकती है जंगल से बाहर निकलकर मानव आवादी इलाके मे भृमण करने वाले वन्य जीवो को सेटेलाइट से लोकेशन चिन्हित कर वापस जंगल मे खदेडा जा सकता है
अवांछित तत्वो के जंगल प्रवेष को रोका जा सकता है जरूरत है कि वन विभाग को भी समय के साथ हाईटेक करने की
सूत्रो की माने तो देश विदेश के तमाम सरकारी गैर सरकारी संस्थानो ,पर्यावरण संस्थाओ से प्रतिवर्ष काफी मोटी रकमे वनो, वन्य जीवो, की सुरक्छा ,संबर्धन व बिकास के लिये वन विभाग के विभिन्न आनुषंगिक संगठनो यथा टाइगर प्रोजेक्ट, राइनो प्रोजेक्ट, एलीफैंट प्रोजेक्ट आदि के नाम पर दी जाती है पर वन विभाग मे व्याप्त भृष्टाचार के चलते उस रकम के काफी बडे हिस्से का निस्तारण कागजो मे सिर्फ सिग्नेचर पर सिग्नेचर करा कर इस आफिस से उस आफिस इस टेवल से उस टेवल तक फाइल दौडा कर बंदरबांट कर लिया जाता है
यहां तक कि टाइगर प्रोजेक्टो मे शाकाहारी वन्य जीवो के विकास व संबर्धन हेतु जंगलो मे घास के मैदान ग्रास लैंड वनाने के लिये जो हैवी अर्थ मूंविंग मशीने चेन टाइप डी4डी कैटरपिलर ट्रेक्टर वन विभाग को दिये गये थे वह वर्षो से कहीं किसी रेंज की नर्सरी मे तो कहीं किसी टाइगर प्रोजेक्ट की दर्शक दीर्घा के पर्यटन स्थल मे रंगे चुने खडे रहकर विभाग की शोभा बढा रहे हैं
सबाल यह उठता है कि जब यह मशीने वर्षो से एक ही स्थान पर खडी हैं तो फिर जंगलो मे मूंजे की झाडियां या वह लम्बी लम्बी घासे जिन्हे हिरन चीतल पाढा आदि शाका हारी वन्य जीव नहीं खाते और ऐसी घासो ने जंगलो के ग्रास लैंडो को लगभग निगल लिया है को वन विभाग कैसे तोड रहा है कैसे ग्रास लैंड की जुताई कर रहा है
इसी तरह उत्तरा खंड के जिम कार्बेट नेशनल पार्क का मामला है जहां लैंटिना नामकी झाडी जैसे पौधो ने लगभग पार्क के 70% जमीन पर कब्जा कर लिया है इस पौधे को कोई वन्यजीव नहीं खाता और तो और यह झाडी न जलाने से समाप्त होती है न जडे निकाल कर फेंकने से
यक्छ प्रश्न है कि जब वन विभाग ग्रासलैंडो की जुताई करने वाली मशीनो का उपयोग ही नहीं करता यह सक्छम मशीने चलाई ही नहीं जा रहीं है तो फिर ग्रास लैंडो के विकास का काम कैसे , किन मशीनो से हो रहा है
ग्रास लैंडो के विकास का पैसा कहां जा रहा है
कहां खर्च हो रहा है
वन विभाग मे व्याप्त भृष्टाचार की बात करें तो दो वर्षो पूर्व जनपद लखीमपुर खीरी मे ही महेश पुर रेंज के सीमावर्ती गांव सुंदरपुर मे घमहां घाट के पास एक किसान की खेत मे पानी लगाते समय टाइगर द्वारा किये गये हमले मे मौत के बाद मौके पर पहुंचे वन कर्मी रामप्रसाद के वयान को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता जिसमे राम प्रसाद ने वन विभाग मे व्याप्त भृष्टाचार से पर्दा हटाते हुये अपनी व्यथा को उजागर किया था जिसकी वीडियो रेकार्डिंग उस समय मैने स्वयं की थी
राम प्रसाद ने हजारो लोगो की भीड के समक्छ स्वीकार किया था कि वन विभाग ने वनो की सुरक्छा के लिये 315 वोर राइफलें तो वन कर्मियो को दीं लेकिन पांच वर्षो से कारतूस नहीं दिये गये और बिना कारतूस राइफलो को सिर्फ डंडो की तरह प्रयोग करने का प्रशिक्छण भी वन विभाग ने नहीं दिया तो कैसे हो वनो की सुरक्छा ,कैसे बचाये जायें वन्यजीव और कैसे की जाये वनो के पास रहने वाले नागरिको की सुरक्छा और कैसे की जाये वनो के अंदर घुस कर मात्र एक कारतूस विहीन राइफल और मोटर सायकल पर पीछे बैठे छोटी कुल्हाडी जैसे हथियार धारी बाचर के साथ टाइगर जैसे हिंसक वन्य जीवो से भरे जंगल मे गश्त
सबाल अहम है क्या वास्तव मे वन विभाग का लखनऊ हेड आफिस कारतूसो की खरीद ही नहीं करता ?
या सिर्फ कागजो पर ही फर्जी विल वाउचर लगा कर कारतूस खरीद दर्शा कर रुपये बंदरबांट किये जाने की परंपरा वन गयी है
दूसरा सबसे अहम सबाल कि यदि बडे पैमाने पर वन विभाग द्वारा फर्जी खरीद की जाती रही है तो उन कारतूसो का आखिर होता क्या है
क्या ऐसे ही कारतूस कहीं देश मे मौजूद नक्सल वादियों अपराधियो के हाथ लग कर हमारे सुरक्छा वलो की हत्याओं का कारण तो नहीं बन रहे कुछ भी हो पर वन रक्छक रामप्रसाद द्वारा लगाये गये आरोप यदि सही है तो वास्तव मे कहीं कुछ बहुत ही गलत हो रहा है
क्यो कि वन विभाग द्वारा किया जा रहा भृष्टाचार अब निर्दोष ग्रामीण की जान जाने का सीधा कारण वनता जा रहा है
वन विभाग के आला अफसरो की गलती का खामियाजा अब सीधे निर्दोष नागरिको को जान देकर चुकाना पड रहा है आये दिन टाइगर रिजर्वो के जंगलो से निकल कर हिंसक वन्यजीव टाइगर, तेंदुये ,हाथी मानव आवादी के नजदीक देखे जा रहे है
मानव वन्य जीव संघर्ष के वास्तविक कारण क्या है इसको मनन करना होगा वास्तविकता को स्वीकार करना होगा तभी मानव वन्य जीव संघर्ष को रोका जा सकेगा
बार बार होने बाले हमलो के लेकर त्रस्त ग्रामीण अब आये दिन होने बाले टाइगरों के हमलो की अनदेखी करने के मूड मे नहीं दिखाई देते
जिसका परिणाम कहीं दुर्लभ वन्य जीवो की मौत या निर्दोष नागरिको की मौत के रूप मे सामने आता रहेगा
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