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रणनीतिक और राजनीतिक तरीके से करवाई गई ईवीएम टैम्परिंग: गौहर रजा सात सेकेण्ड की जगह तीन मिनट की पर्ची का डिस्प्ले बिना टैम्परिंग के नहीं हो सकता

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अथाह पैसे, मीडिया, छद्म राष्ट्रवादी उन्माद, कारपोरेट के समर्थन, साम्प्रदायिकता के साथ रणनीतिक कुशलता के साथ चुनिंदा तरीके से ईवीएम टैम्परिंग से भाजपा ने जीता 2019 का चुनाव: गौहर रजा


लखनऊ। 2019 के चुनाव परिणाम ने सबको स्तब्ध किया है। चुनाव परिणाम अचम्भित करने वाले हैं और उन सब लोगों के लिये गम्भीर धक्का है जो संविधान, जनतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और जनवादी मूल्यों पर भरोसा करते है। इस चुनाव परिणाम के साथ संकीर्ण साम्प्रदायिकता और फासावादी रूझान वाली भाजपा की बढ़त के चलते दाँव पर एक आध चुनाव, एक दो सरकारें नही, दाँव पर है देश का संविधान, लोकतन्त्र, सभ्य समाज और सबसे ऊपर भारत की मौलिक अवधारणा। ये बातें प्रसिद्ध वैज्ञानिक, कवि, फिल्मकार और सामाजिक कार्यकर्ता गौहर रजा ने कैफी आजमी एकेडमी सभागार में आयोजित अर्जुन प्रसाद स्मृति परिसंवाद में कहीं। उन्होने कहा कि अथाह पैसे, मीडिया, छद्म राष्ट्रवादी उन्माद, कारपोरेट के समर्थन, साम्प्रदायिकता के साथ रणनीतिक कुशलता के साथ चुनिंदा तरीके से ईवीएम टैम्परिंग से भाजपा ने 2019 का चुनाव जीता।

श्री गौहर रजा ने कहा कि पिछले पांच साल में इतनी असफल और जनविरोधी सरकार के प्रति लोगों में बेहद गुस्सा था। देश का आर्थिक ढांचा भयंकर क्राइसिस के दौर से गुजर रहा है। झूठ के आधार पर आठ से सात प्वाइंट कही जाने वाली अर्थव्यवस्था अब सही मायने में 4.5 प्रतिशत तक ही है। 36 करोड़ लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं। पिछले डेढ साल में हमारे देश में 40 से अधिक बड़े किसान आंदोलन हुए। इस वक्त स्वास्थ्य पर खर्च काफी कम किये जा रहे हैं। आयुष्मान योजना में मरीज से अधिक बीमा कंपनियों के हित ज्यादा देखे गये हैं। प्राइमरी शिक्षा में छात्रों के दाखिले घटे हैं। दलित और मुसलमान हासिये पर पर हैं। देश में बेरोजगारी का आलम यह है कि नौजवान पढ़-लिखकर भी बेकार बैठने को मजबूर है। मजदूरों और मजदूर संघों को मिटाने की तैयारी है, इसी कारण आज तक उनके बारे में सरकार ने सोचना तक जरूरी नहीं समझा है, लेकिन इन असफलताओं के बाद भी देश के बड़े पूँजीपति वर्ग ने अपने व्यापार प्रबन्धन की जिम्मेदारी फिर मोदी को सौंपने का निर्णय लिया। 2019 के नतीजो से बड़ा धक्का लगा है इस देश के नागरिकों को। विपक्ष हताश हुआ है और जनता मे भी इस जीत पर 2014 की तरह जश्न जैसा माहौल नहीं था। एक्जिट पोल प्री प्लान था जो कि इस जीत का माहौल बनाने के लिए किया गया था। जहां तक ईवीएम का सवाल है तो दुनिया की कोई ऐसी मशीन नहीं है, जिसे मनुष्य ने बनाया है, टेम्पर नहीं किया जा सकता है। आज जब तकनीकी इतनी बढ़ गई है, विज्ञान इतनी तरक्की कर चुका है तो यह कहना कि ईवीएम को टेम्पर नहीं किया जा सकता है, बेमानी लगती है। ईवीएम घोटाला अभी का नहीं है, बल्कि यह सिलसिलेवार ढंग से किया जा रहा है। इसका पहला प्रयोग गुजरात के विधानसभा चुनाव में किया गया, जिसको पुरजोर तरीके से भाजपा नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने उठाया था, जो अब खामोश है। इसका प्रयोग 2014 के चुनावों में भी किया गया, लेकिन उत्तर प्रदेश के चुनाव में यह बड़े पैमाने पर किया गया और 2019 का चुनाव इसी के बूते ही जीता गया। रही बात कुछ स्टेट में चुनाव हारने की तो उसकी राजनीतिक वजह रही है। 

पूंजीपतियों की अकूत दौलत, मीडिया, सोशल मीडिया ने मोदी की जीत का नैरेटिव गढ़ने का काम किया, जिसमें मुस्लिम विरोध, पाकिस्तान विरोध के आधार पर, पुलवामा और बालाकोट के आधार पर छद्म राष्ट्रवाद के भावनात्मक उन्माद ने बड़ी भूमिका अदा की लेकिन यह भी उतना ही सच है कि इस सब के बावजूद भाजपा की 303 सीट आने की कोई स्थिति नही थी। इस बढ़त के लिये अन्य कारणों के साथ ईवीएम टैम्परिंग का खेल भी खेला गया। इलेक्शन कमीशन जो बात अब तक कहता आया कि ईवीएम टैम्पर नही की जा सकती क्योंकि उसमें लगने वाली चिप केवल एक बार प्रोग्राम की जा सकती है जबकि अभी आरटीआई के जवाब के बाद यह स्पष्ट हो गया कि चिप एक बार प्रोग्राम करने वाली नही है जिससे चुनाव आयोग गलत साबित हुआ है। चुनाव के दौरान बड़ पैमाने पर ईवीएम इधन उधर पायी गई। 20 लाख से अधिक ईवीएम गायब है और तमाम मीडिया रिपोर्ट के आधार पर यह स्पष्ट है कि 370 से ज्यादा लोकसभा सीट के ऊपर डाले गये वोट और गिने गये वोट का मिलान नही हो पा रहा है। इन तथ्यों के आधार पर अगर हम देखें तो यह स्पष्ट उभरकर आता है कि अन्य कारणों के साथ-साथ ईवीएम टैम्परिंग भी एक बड़ा कारण है जिसने मोदी सरकार की जीत की नींव रखी। अगर हम ईवीएम के सवाल को छोड़ देगें तो हम एक बहुत बड़ी गलती करेंगे क्यांेकि ईवीएम टैम्परिंग से अलग परिणाम प्राप्त किये जा सकते हैं, विरोधियों का मनोबल तोड़ा जा सकता है, और संयुक्त संघर्ष की रणनीतियों को प्रभावित किया जा सकता है, इसलिये ईवीएम का सवाल अब तकनीकी सवाल नही है, यह राजनीतिक सवाल है। आज जरूरत है कि मजदूरो, छात्रों, दलितो और महिलाओं के सवाल के अलावा ईवीएम की लड़ाई भी लड़ने की। स्वतन्त्र और निष्पक्ष चुनाव के लिये तमाम राजनीतिक ताकतों पर दबाव बनाने का काम हम सबको करना होगा, जिसके लिये सिविल सोसाइटी के लोगों की, जनवादी आंदोलन के लोगों की और तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं की जिम्मेदारी है कि वो जनता के बीच जाकर ईवीएम के खिलाफ जनमत तैयार करें जिससे देश के संविधान और लोकतन्त्र को बचाया जा सके।
अर्जुन प्रसाद स्मृति समारोह समिति द्वारा प्रत्येक वर्ष कामरेड अर्जुन प्रसाद की याद में समसामयिक विषयों पर गोष्ठी आदि का आयोजन किया जाता है। कार्यक्रम की शुरूआत में प्रसिद्ध लेखक व आलोचक श्री वीरेन्द्र यादव ने अर्जुन प्रसाद के राजनीतिक जीवन पर प्रकाश डाला। वहाँ मौजूद सभी लोगों ने अर्जुन प्रसाद को पुष्पांजति अर्पित करते हुये उनके संघर्षो को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। परिसंवाद का संचालन कामरेड अर्जुन प्रसाद स्मृति समारोह समित के संयोजक डाॅ. प्रदीप शर्मा ने किया। कार्यक्रम में इप्टा महासचिव राकेश, किसान सभा के जिला सचिव छोटे लाल रावत, कलम से ऋषि, जनवादी लेखक संघ से नलिन रंजन सिंह, सीटू अध्यक्ष आर एस बाजपेई, बेफी से छोटेलाल पाल, जनवादी महिला समिति से सीमा राणा, डॉ मनीष हिन्दवी, डॉ शोभा बाजपेई, डॉ असद मिर्जा, राम सागर जगत, चबूतरा थियेटर से महेश चंद्र देवा, राज्य कर्मचारी की ओर से अफीफ सिद्दिकी, यूपीएमएसआरए से राहुल मिश्र आदि उपस्थित थे।
इसकी जानकारी डाॅ0 प्रदीप शर्मा संयोजक,
अर्जुन प्रसाद स्मृति समारोह समिति ने दिया ।

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