खामोशी से माया को जवाब देंगे अखिलेश
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बसपा से नहीं उलझना चाहते अखिलेश, संगठन मजबूत करने में जुटे
मोहम्मद शानू
बसपा से नहीं उलझना चाहते अखिलेश, संगठन मजबूत करने में जुटे
मोहम्मद शानू
लखनऊ। लोकसभा चुनाव में अपेक्षित परिणाम न आने के बाद सपा से गठबंधन तोड़कर बसपा प्रमुख मायावती, अखिलेश यादव पर आक्रामक हैं, वहीं सपा अध्यक्ष खामोशी अपनी पार्टी को मजबूत करके राज्य में होने वाले विधानसभा के उपचुनाव की रणनीति तैयार करने में जुटे हैं। मायावती के आरोपों के बावजूद अखिलेश यादव पूरी तरह से चुप्पी साधे हुए हैं। वजह है कि अखिलेश का लक्ष्य 2022 का विधानसभा चुनाव हैं। सपा अध्यक्ष मायावती आरोपों-प्रत्यारोपों में उलझना नहीं चाहते हैं। मायावती द्वारा गठबंधन से अलग होने के बाद सपा ने विधानसभा चुनाव अकेले लडऩे की तैयारी शुरु कर दी है।
सपा सूत्रों का मानना है कि विधानसभा चुनाव में उसकी लड़ाई भाजपा से होनी है, सपा अपनी आगे की रणनीति भाजपा को केन्द्र में रखकर बनाएगी। पार्टी का मानना है कि भले ही गठबंधन टूट गया हो लेकिन बसपा के साथ मिलकर चुनाव लडऩे के बाद उससे तकरार या आरोप-प्रत्यारोप का संदेश ठीक नहीं होगा। लोकसभा चुनाव के बाद अखिलेश ने इस बार चुनाव की समीक्षा एक साथ करने के बजाय पार्टी नेताओं से लोकसभावार टुकड़ों में मुलाकात की। नेताओं ने अखिलेश से हार के कारण साझा किए। लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन करके 37 सीटों पर मैदान में उतरने के बाद भी सपा को महज पांच सीटों पर जीत हासिल हुई। जबकि 38 सीटों पर मैदान में उतरी बसपा को 10 सीटें मिली। गठबंधन की असफलता को लेकर तरह-तरह के कयासों के बीच दिल्ली में पार्टी बसपा की समीक्षा बैठक में मायावती ने उपचुनाव अकेले लडऩे का ऐलान करते हुए गठबंधन तोडऩे के संकेत दिए थे। हालांकि तब उन्होंने गठबंधन की हार का ठीकरा सपा के यादव वोटों पर फोड़ा था। लेकिन अब दूसरी बार बसपा संगठन की बैठक में हार का ठीकरा अखिलेश पर फोड़ते हुए भविष्य में अकेले चुनाव लडऩे का निर्णण लिया है। मायावती के बयानों पर अखिलेश यादव पूरी तरह चुप हैं। गठबंधन से मायावती के फैसले का अखिलेश ने स्वागत करते हुए अकेले उपचुनाव लडऩे के लिए बधाई दी थी। सपा भी विधानसभा चुनाव अकेले लडऩा चाहती है। पार्टी बड़े दल से गठबंधन का हिस्से में ज्यादा सीटें देने के बजाय रालोद जैसे छोटे दलों को साथ लेने की रणनीति पर काम कर रही है।
अखिलेश का चरित्र धोखा देने वाला नहीं:चौधरीलोकसभा चुनाव में हुए गठबंधन टूटने के बाद से एक तरफ जहां बसपा अध्यक्ष मायावती, अखिलेश यादव पर हमलावर हैं, वही समाजवादी पार्टी ने बेहद सधी प्रतिक्रिया दी है। राष्टï्रीय सचिव एवं प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने बसपा सुप्रीमो मायावती के आरोपों का पूरी तरह से खंडन किया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का चरित्र किसी को धोखा देने वाला नहीं है। उन्होंने कहा है कि सपा संविधान का सम्मान करने वाली, धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी विचारधारा पर चलने वाली पार्टी है। अखिलेश यादव ने कभी भी किसी पर कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की। सपा ने हमेशा बेहतर काम करने और सभी को साथ लेकर चलने का काम किया है। समाजवादी पार्टी ने बसपा के साथ गठबंधन धर्म पूरी ईमानदारी से निभाया। इसलिए धोखेबाजी का आरोप पूरी तरह से निराधार है। चौधरी के साथ ही सपा राष्टï्रीय महासचिव एवं रामपुर से लोकसभा सदस्य आजम खां ने मीडिया के द्वारा पूछे जाने पर कहा कि बसपा अध्यक्ष मायावती बहुत हल्की बातें कर रही हैं। बसपा प्रमुख को इतनी हल्की बातें नहीं करनी चाहिए। आजम ने कहा कि जब समझौता हुआ था तो दोनों की राय से हुआ था। नफा-नुकसान सोच कर, बातचीत करके हुआ था। वैसे भी सियासत में कभी नफा तो कभी नुकसान होता रहता है। आजम खां ने कहा कि अब अगर वो अकेले चुनाव लडऩे की बात कर रही हैं तो हम क्या कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव में हुए सपा से गठबंधन तोडऩे के बाद पार्टी की बैठक में बसपा प्रमुख मायावती ने अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए कहा था कि अखिलेश नहीं चाहते थे कि लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों को अधिक टिकट दिए जाएं। उन्हें डर था कि इससे वोटों का धु्रवीकरण होगा। यहीं नहीं मायावती ने यह भी कहा कि चुनाव परिणाम के बाद अखिलेश ने उन्हें फोन भी नहीं किया।
सपा सूत्रों का मानना है कि विधानसभा चुनाव में उसकी लड़ाई भाजपा से होनी है, सपा अपनी आगे की रणनीति भाजपा को केन्द्र में रखकर बनाएगी। पार्टी का मानना है कि भले ही गठबंधन टूट गया हो लेकिन बसपा के साथ मिलकर चुनाव लडऩे के बाद उससे तकरार या आरोप-प्रत्यारोप का संदेश ठीक नहीं होगा। लोकसभा चुनाव के बाद अखिलेश ने इस बार चुनाव की समीक्षा एक साथ करने के बजाय पार्टी नेताओं से लोकसभावार टुकड़ों में मुलाकात की। नेताओं ने अखिलेश से हार के कारण साझा किए। लोकसभा चुनाव में बसपा के साथ गठबंधन करके 37 सीटों पर मैदान में उतरने के बाद भी सपा को महज पांच सीटों पर जीत हासिल हुई। जबकि 38 सीटों पर मैदान में उतरी बसपा को 10 सीटें मिली। गठबंधन की असफलता को लेकर तरह-तरह के कयासों के बीच दिल्ली में पार्टी बसपा की समीक्षा बैठक में मायावती ने उपचुनाव अकेले लडऩे का ऐलान करते हुए गठबंधन तोडऩे के संकेत दिए थे। हालांकि तब उन्होंने गठबंधन की हार का ठीकरा सपा के यादव वोटों पर फोड़ा था। लेकिन अब दूसरी बार बसपा संगठन की बैठक में हार का ठीकरा अखिलेश पर फोड़ते हुए भविष्य में अकेले चुनाव लडऩे का निर्णण लिया है। मायावती के बयानों पर अखिलेश यादव पूरी तरह चुप हैं। गठबंधन से मायावती के फैसले का अखिलेश ने स्वागत करते हुए अकेले उपचुनाव लडऩे के लिए बधाई दी थी। सपा भी विधानसभा चुनाव अकेले लडऩा चाहती है। पार्टी बड़े दल से गठबंधन का हिस्से में ज्यादा सीटें देने के बजाय रालोद जैसे छोटे दलों को साथ लेने की रणनीति पर काम कर रही है।
अखिलेश का चरित्र धोखा देने वाला नहीं:चौधरीलोकसभा चुनाव में हुए गठबंधन टूटने के बाद से एक तरफ जहां बसपा अध्यक्ष मायावती, अखिलेश यादव पर हमलावर हैं, वही समाजवादी पार्टी ने बेहद सधी प्रतिक्रिया दी है। राष्टï्रीय सचिव एवं प्रवक्ता राजेन्द्र चौधरी ने बसपा सुप्रीमो मायावती के आरोपों का पूरी तरह से खंडन किया है। सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव का चरित्र किसी को धोखा देने वाला नहीं है। उन्होंने कहा है कि सपा संविधान का सम्मान करने वाली, धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी विचारधारा पर चलने वाली पार्टी है। अखिलेश यादव ने कभी भी किसी पर कोई व्यक्तिगत टिप्पणी नहीं की। सपा ने हमेशा बेहतर काम करने और सभी को साथ लेकर चलने का काम किया है। समाजवादी पार्टी ने बसपा के साथ गठबंधन धर्म पूरी ईमानदारी से निभाया। इसलिए धोखेबाजी का आरोप पूरी तरह से निराधार है। चौधरी के साथ ही सपा राष्टï्रीय महासचिव एवं रामपुर से लोकसभा सदस्य आजम खां ने मीडिया के द्वारा पूछे जाने पर कहा कि बसपा अध्यक्ष मायावती बहुत हल्की बातें कर रही हैं। बसपा प्रमुख को इतनी हल्की बातें नहीं करनी चाहिए। आजम ने कहा कि जब समझौता हुआ था तो दोनों की राय से हुआ था। नफा-नुकसान सोच कर, बातचीत करके हुआ था। वैसे भी सियासत में कभी नफा तो कभी नुकसान होता रहता है। आजम खां ने कहा कि अब अगर वो अकेले चुनाव लडऩे की बात कर रही हैं तो हम क्या कर सकते हैं। उल्लेखनीय है कि लोकसभा चुनाव में हुए सपा से गठबंधन तोडऩे के बाद पार्टी की बैठक में बसपा प्रमुख मायावती ने अखिलेश यादव पर हमला बोलते हुए कहा था कि अखिलेश नहीं चाहते थे कि लोकसभा चुनाव में मुस्लिमों को अधिक टिकट दिए जाएं। उन्हें डर था कि इससे वोटों का धु्रवीकरण होगा। यहीं नहीं मायावती ने यह भी कहा कि चुनाव परिणाम के बाद अखिलेश ने उन्हें फोन भी नहीं किया।
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