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प्रजातंत्र में राजनैतिक दलों में बहुमत के आधार पर गठन की व्यवस्था एवं बदलते राजनैतिक परिदृश्य और कांग्रेस में चल रहे मान मनौव्वल पर विशेष

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✒सुप्रभात- सपादकीय ✒

 प्रजातंत्र में राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों का भी चुनाव लोकतांत्रिक तरीके से बहुमत के आधार पर किया जाता है और जिसे जो जिम्मेदारी सौंपी जाती है वह उसका निर्वाहन जिम्मेदारी के साथ करता है। यह बात अलग है कि आज के बदलते राजनीतिक परिदृश्य में कुछ राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों के चुनाव में लोकतांत्रिक तरीका नहीं बल्कि राजतंत्र जैसी व्यवस्था लागू की जा रही है और कुछ राजनीतिक दलों के पदाधिकारियों का चयन में परिवार एवं जातिवाद के आधार पर किया जाने लगा है। इस देश में सबसे पुराने राजनीतिक दल के रूप में कांग्रेस जानी जाती है जिसका गठन आजादी के पहले ही महात्मा गांधी की देखरेख में हो गया था। आजादी मिलने तक देश में  कांग्रेस एकमात्र राजनैतिक पार्टी थी लेकिन आजादी मिलने के बाद इसमें समय-समय पर शाखाएं फूटती गई और कांग्रेसी विचारधारा के विपरीत राजनीतिक दलों के गठन होने लगे। इसके बावजूद आज भी कांग्रेस को एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल के रूप में प्रतिष्ठा मिली हुई है और आजादी मिलने के बाद से अब तक सबसे अधिक समय तक उसने इस देश में शासन भी किया है। आजादी के बाद भारत को उच्च शिखर पर पहुंचाने में गांधी परिवार की अगुवाई में कांग्रेस की  महत्वपूर्ण भूमिका रही है और कांग्रेस के दौर में ही हम जमीन से चंद्रमा पर पहुंच कर  अन्य ग्रहों  की खोजबीन करने लगे थे।आजादी के बाद कांग्रेस के दौर में ही लोकतंत्र का वह काला समय भी आया जिसे हम आज भी इमरजेंसी शासन काल के रूप में याद करते हैं लेकिन इसके बावजूद इमरजेंसी समाप्त होने के कुछ दिनों बाद ही वह पुनः सत्ता में आ गई थी। अभी पिछले 2014 के लोकसभा के चुनाव तक इस देश में कांग्रेस का ही शासन चल रहा था। एक समय था जबकि कांग्रेस के विभिन्न प्रकोष्ठ एवं  उससे संबंद्ध सेवादल युवक कांग्रेस जैसी संगठन सक्रिय भूमिका अदाकर देश में उसकी अलग पहचान आमजन के मध्य बनाए हुए थे। एक समय था जबकि कांग्रेस की पहचान संगठन से होती थी और समाज में सभी वर्गों के लोगों का जुड़ाव इससे था किंतु समय के साथ साथ धीरे-धीरे संगठन ढीला होता गया जिसके फलस्वरूप वह वर्तमान समय में सत्ता से बाहर चल रही है। पिछले लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद से देश की दूसरी मुख्य राजनीतिक पार्टी कांग्रेस में हार-जीत को लेकर मंथन एवं घमासान मचा हुआ है और उसके अगुवा राहुल गांधी हार की जिम्मेदारी अपने सिर पर लेकर अपने पद से इस्तीफा देने की पेशकश कर रहे हैं और उन्हें मनाने का दौर चल रहा है। इसके बावजूद वह अपने फैसले पर अडिग हैं और बहुमत के बावजूद भी वह अपने पद से इस्तीफा देने के अपने फैसले पर अडिग हैं। उनकी जिद को देखते हुए कांग्रेस में नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की तलाश शुरू हो गई है और कई नामों की चर्चा राजनीतिक गलियारों में होने लगी है। यह सही है कि कांग्रेस में अधिकांश समय नेहरू गांधी परिवार का शासन रहा है लेकिन यह भी सही है कांग्रेस में ही समय समय पर तमाम अन्य गैर गांधी लोग राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं प्रधानमंत्री के रूप में रह चुके हैं। जिस तरह आज राहुल को मनाने की कोशिश देश के विभिन्न राज्यों के कार्यकर्ता विभिन्न रूपों में कर रहे हैं उसी तरह पिछले वर्षों उनकी मां सोनिया गांधी जी को प्रधानमंत्री बनाने के लिए किया गया था इसके बावजूद भी वह बहुमत को ठुकरा कर प्रधानमंत्री बनने को तैयार नहीं हुई थी और मजबूरी में मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया था लेकिन पार्टी की कमान सोनिया गांधी के ही हाथ थी।लोकसभा चुनाव परिणाम आने के बाद आज एक बार फिर गांधी परिवार पार्टी की लगाम खुद न संभाल कर पार्टी के किसी अन्य जिम्मेदार व्यक्ति को देने की बात कह रहा हैं। यह सही है कि कांग्रेस को सक्रिय करने में राहुल गांधी की अहम भूमिका रही है और जितना समय उन्होंने पार्टी के लिए दिया वह अविस्मरणीय रहेगा। जिस तरह उन्होंने पिछली सरकार में एक प्रमुख विपक्षी दल के नेता की भूमिका निभाई उसे नकारा नहीं जा सकता है साथ ही पिछले चुनाव में भी उन्होंने जिस जोशो खरोश से अगवाई की उसे भी भुलाया नहीं जा सकता है। राहुल गांधी ही थे जिन्होंने सरकार के लिए चुनाव के समय सिरदर्द पैदा कर दिया था। यह बात अलग है कि मतदाताओं ने उनके नकार दिया और भाजपा पर विश्वास व्यक्त किया।चुनाव में अकेले जूझ रहे राजनैतिक अपरिपक्व कहे जाने वाले राहुल गांधी को राजनीतिक सहारा देने के लिए अंततः गांधी परिवार के ट्रंप कार्ड के रूप में जानी जाने वाली उनकी बहन प्रियंका गांधी वाड्रा को पार्टी का सह कमांडर बना कर उतार दिया गया था। यह भी सही है कि दोनों भाई बहनों ने मिलकर चुनाव के दौरान पूरे देश में तहलका मचा दिया और सोई हुई कांग्रेस को जगा नहीं बल्कि दौड़ा दिया। यह बात अलग की है कि उन्हें चुनाव में बड़ी सफलता नहीं मिली और वह सरकार नहीं बना सके। गांधी परिवार के जितने कठिन परिश्रम लग्न निष्ठा के बावजूद लोकसभा चुनाव की हार की जिम्मेदारी अपने कंधे पर लेकर अपने पद से इस्तीफा देने की जिद करना राहुल गांधी की महानता ही कहा जायेगा क्योंकि उन्होंने पार्टी को क्षति नहीं बल्कि गति प्रदान की है।पद छोड़ने की जिद करने वाले करने वाले वाले कांग्रेस प्रमुख राहुल  गांधी को यह नहीं भूलना चाहिए कि पार्टी के अधिकांश लोग उन्हें राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में बने रहने के पक्षधर में हैं और इसके लिए यह लगातार आंदोलन कर रहे हैं। इसका मतलब साफ है कि पार्टी के लोग उन्हें अपना तथा पार्टी के अगुवा एवं भाग्य विधाता के रूप में देखना चाहते हैं इसलिए उनकी इच्छा के विपरीत इस्तीफा देने की जिद करना लोकतांत्रिक नहीं कहा जाएगा। सभी जानते हैं कि इस समय कांग्रेस पार्टी को ऐसे राष्ट्रीय नेता की आवश्यकता है जो पार्टी को पुनः एक बार बूथ स्तर पर पहले की तरह सक्रिय कर सके क्योंकि वह ऐसी राजनीतिक पार्टी से चुनाव हारी है जिसका संगठन बूथ स्तर तक सक्रिय है। उसका मुकाबला करने के लिए कांग्रेस को भी बूथ स्तर पर सक्रिय होने की आवश्यकता है।सोनिया गांधी के बाद उनके सुपुत्र राहुल गांधी को जिस तरह पार्टी द्वारा मनाया जा रहा है उससे लगता है कि गांधी परिवार ही कांग्रेस में एकता एकजुटता बनाये रख सकता है दूसरा जैसे कोई विकल्प नहीं है। जिस तरह महीनों से राहुल गांधी को मनाया जा रहा है उससे लगता है कि कांग्रेस में उनके प्रति कितनी आस्था एवं श्रद्धा है।राहुल गांधी अपने इस्तीफे की जिद्द के कारण ही मतगणना के बाद से बराबर सुर्खियों में बने हुये हैं और कांग्रेस चर्चा में बनी हुयी है और आमलोगों की निगाहें कांग्रेस में चल रहे मान मनौव्वल के परिणाम पर लगी है। लोग उत्सुकता से इस घटनाक्रम के परिणाम को जानने के लिए निगाहें लगाये हैं। वैसे किसी भी राजनीतिक दल को अपना नेता  चुनने का अधिकार है और यह उसका अंदरूनी मामला होता है जिसमें दखल देने का अधिकार किसी को भी नही है। हमारा भी मतलब किसी दल के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप करने से कतई नहीं है। धन्यवाद।। सुप्रभात/ वंदेमातरम्/ गुडमॉर्निंग/ नमस्कार/ आदाब/ शुभकामनाएं
भोलानाथ मिश्र
वरिष्ठ पत्रकार/समाजसेवी
रामसनेहीघाट, बाराबंकी यूपी

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