लखनऊ विश्वविद्यालय शताब्दी समारोह से कुछ भाव, संवाद प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह, लखनऊ विश्वविद्यालय के साथ
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प्रो रवीन्द्र प्रताप सिंह, लखनऊ विश्वविद्यालय
एक शताब्दी से लगातार समाज और संस्कृति को प्रभावित करने वाला लखनऊ विश्वविद्यालय ने न केवल अवध क्षेत्र में सृजन , समन्वय और संवाद की महान परंपरा को गति दी, अपितु पूरे विश्व में अपनी यश गाथा फैलाई है।
अवध के इस भूभाग पर 25 नवंबर 1920 को लखनऊ विश्वविद्यालय की स्थापना हुई। भारतीय संस्कृति , सामाजिक संरचना और शिक्षा व्यवस्था के उत्कृष्ट मानक गढ़ने वाले , वैश्विक स्तर पर एक विशेष स्थान रखने वाले लखनऊ विश्वविद्यालय का शताब्दी उत्सव न केवल यहाँ के छात्र छात्राओं , शिक्षक , कर्मचारी अपितु संपूर्ण राष्ट्र और विश्वपटल पर विभिन्न संस्थानों इकाइयों से जुड़े , इनके संचालन में समुचित योगदान कर रहे , यहाँ से निकले मानव संसाधन के लिए हर्ष उल्लास ,उत्साह एवं उमंग की न केवल एक तिथि या पर्व है अपितु यात्रा का वह पड़ाव है जहाँ से सही मायने में विश्वविद्यालय की गरिमा , उसकी परिभाषा , अकादमिक और शोध के स्वरुप को समझने का और प्रेरणा लेने का एक विशेष अवसर प्राप्त होता है।
यहां की अकादमिक परम्पराओं एवं शिक्षण व्यवस्था ने मानवता की वह स्वर्णिम समीक्षा की है जहाँ से विभिन्न परिवारों ,समुदायों , समाज तथा देश को समझने की कई कड़ियां जोड़ते हुए अन्तर्सम्बन्धों ,संगीत , नृत्य , कला , सामाजिक आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाओं में दीक्षित योगदान का स्वरूप मिलता है।
मानवीय संवेदना एवं साहित्य , सामाजिक व्यवस्था, आर्थिक, राजनैतिक, सांस्कृतिक गवेषणा , विधि , न्याय , विज्ञान, कला ,शिक्षा भाषाओँ के विकास , सतत विकास , पर्यावरण एवं पारिश्थितिकीय का सम्यक चितेरा यहाँ का मानवीय पर्यावरण ,एवं समाज तथा विश्व से सम्प्रेषण करता , संवाद स्थापित करता यहाँ का रिवाज़ अनूठा है। लखनऊ विश्ववद्यालय एक संवाद है। सृजन है। छात्रों, शिक्षकों, और यहां की दीवारों में बसा मल्हार है। वो गीत है जो समाज और देश के सम्मान में गुंजित हैं। शताब्दी वर्ष में यह मेरी कविताओं और मेरे नाटकों का पात्र है। पूरे विश्व विद्यालय परिवार को बधाई एवम शुभकामनाएं।
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