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करोना ने हमारे राजनीतिक , सामाजिक एवं आर्थिक प्रयोगों को नयी दिशा प्रदान किया है ------- डॉ अलका सिंह

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प्रसन्नता , सृजनात्मकता पर चर्चा परिचर्चा एवं परिकल्पनाएं
एक्प्रेशन्स इन लैंग्वेजेज एंड आर्ट्स फॉउंडेशन, लखनऊ द्वारा  दिनांक १५ जून,2020 को हैप्पीनेस एंड क्रिएटिविटी : पान्डेमिक ! लॉक डाउन एंड डाइमेंशन्स विषय पर एक राष्ट्रीय इ सेमिनार का आयोजन किया गया।  कार्यक्रम में डॉ राम मनोहर लोहिया राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय लखनऊ की शिक्षिका डॉ अलका सिंह ने विषय परवर्तन करते हुए बीज  व्याख्यान दिया ,और दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज के मनोविज्ञान  विभाग की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ सबीन रिज़वी तथा नेशनल डिफेन्स अकादमी खडगवासला में  अंग्रेजी अंग्रेजी की असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ प्रज्ञा वाजपेयी ने प्लेनरी व्याख्यान दिए।  कश्मीर विश्वविद्यालय कश्मीर की अंग्रेजी विभागाध्यक्ष , और डीन , स्कूल ऑफ़ आर्ट्स लैंग्वेज एंड लिटरेचर प्रोफेसर लिली वांट,टाइम्स ऑफ़ इंडिया लखनऊ की असिस्टेंट न्यूज़ एडिटर सुश्री राशि लाल , तथा दुर्गा महाविद्यालय रायपुर की अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डॉ प्रोतिभा मुख़र्जी साहूकार ने विशिष्ट अतिथि के रूप में अपने विचार रखे।
अपने व्याख्यान में अलका सिंह ने बताया कि, “खुश रहना और उसके फलस्वरूप किसी रचना को आकार देना , ईश्वर या यूँ कहें की प्रकृति के रचनाकार की शक्ति और उसके आसपास होने का अहसास है। आज जहाँ सारा विश्व कोरोना महामारी का दंश झेल रहा है वहीँ इसके भयावह संक्रमण को नियंत्रित करने हेतु जो चरणबद्ध लॉक डाउन किये गए उससे मानवजीवन की स्थिति ,परिवेश और इक्कीसवीं शताब्दी में बंधे विभिन्न प्रवाहों को नए दर्शन की अनुभूति हुईहै। योग, दर्शन , भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों का संचार, प्रसार इत्यादि भारतीय संस्कृति एवं प्राचीन सभ्यताओं में निहित मानवीय गुणों , पर्यावरण चिंताओं एवं सस्टेनेबल डेवलपमेंट के अर्थ ने जीवन  को नये सिरे से परिभाषित करने का अवसर प्रदान किया है। कोरोना काल में घर की चारदीवारी में सिमट कर रह रहा  व्यक्ति  , महामारी की लपटों से बचाव हेतु जीवन जीने के नये आयाम तलाश रहा है।  कोरोना विवशता ने हमारे परिवारों , समाज और देश को संपूर्ण मानव जीवन के संरक्षण हेतु  नये प्रयोगों की रचना करना भी सिखाया है। इसने हमारे राजनीतिक , सामाजिक एवं आर्थिक प्रयोगों को नयी दिशा प्रदान किया है।  स्वयं परिवार, समाज एवं देश की सुरक्षा किस प्रकार एक दूसरे से सम्बद्ध हैं ,और अन्योन्याश्रयी इकाइयों की तरह किस तरह एक दुसरे को प्रभावित करती हैं , आज इस महामारी के दौरान भलीभांति परिलक्षित होती है।

 डॉ सबीन रिज़वी, जो दिल्ली विश्वविद्यालय के गार्गी कॉलेज में मनोविज्ञान की सहायक प्रोफेसर और सलाहकार मनोवैज्ञानिक हैं, ने " खुशी एक पहेली है” पर बात की। उन्होंने हार्वर्ड, येल और यूसीएलए जैसे विश्वविद्यालयों में चल रहे अनुसंधानों  के बारे में बात की और इन से हमारी समझ को अधिक उपयोगितावादी तरीके से आकार दिया है। अनुसंधान साक्ष्य से पता चला है कि पैसा एक निश्चित स्तर के बाद खुशी की गारंटी नहीं दे सकता है। करीबी और सार्थक रिश्ते, जीवन में उद्देश्य की भावना, अच्छी नींद, शारीरिक गतिविधि, माइंडफुलनेस, दयालुता के परोपकारी कार्य, स्वस्थ भोजन विकल्प कुछ ऐसे चर हैं जो यह तय करते हैं कि कोई व्यक्ति कितना खुश रह सकता है। डॉ.रिजवी ने डोपामाइन, सेरोटोनिन, एंडोर्फिन और ऑक्सीटोसिन जैसे न्यूरोट्रांसमीटर की भूमिका पर विस्तार से बताया और कैसे इनसे खुशहाल स्थिति पैदा होती है।  उन्होंने माइंडफुलनेस की प्रासंगिक भूमिका को दोहराया और इस तरह के चुनौतीपूर्ण समय के दौरान भी हम में से प्रत्येक पहेली के टुकड़ों को एक साथ रख सकते हैं, और खुश रह सकते हैं। इस बात को दर्शकों ने बहुत सराहा और वे कई पेचीदा सवालों के साथ सामने आए।

डॉ प्रज्ञा बाजपेयी का  "महामारी के दौरान अभिव्यक्ति: कला एवं कृति" विषयक व्याख्यान उनके ज्ञान, अनुभव, एवं शिक्षण पर और  विशेष रूप से महामारी के परिप्रेक्ष्य में ध्यानाकर्षण करता है। उनका व्याख्यान  यह भी दर्शाता है कि किस प्रकार से महामारी ने लोगों के चिन्तन/दर्शन को गहराई से प्रभावित किया, उन्हें चुनौती दी, एवं इस प्रक्रिया में उन्हें एक नई दिशा की खोज की ओर प्रेरित किया। उनका यह व्याख्यान आप लोगों को सामान्य रचना एवं रचनात्मक लेखन में भिन्नता का भी बोध कराएगा। जिस प्रकार रचनात्मकता किसी नूतन विचार को साक्षात रूप में अवतरित करके फिर उसको विभिन्न स्वरूपों में लाने का कार्य है, उसी प्रकार रचनात्मक लेखन एक  बौद्घिक विधा है जो लोगों के विचारों को शब्दों में बुनकर एक स्पष्ट स्वरूप देने के लिए प्रेरित करता है। वर्तमान महामारी ने लोगों को अपनी क्षमता को समझने और उसे रचनात्मक आयाम देने के कई अवसर प्रदान किए हैं जिसे लोगों ने अपने अपने सामर्थ्य के हिसाब से विभिन्न रूपों में प्रस्तुत किया है। लॉकडॉउन के विभिन्न चरणों में मिले कुछ फुरसत के पलों में लोगों ने उसका कारगर लाभ लेते हुए विभिन्न प्रकार से प्रयोगों द्वारा रचनात्मक कार्यों में उपयोग किया है । इसी क्रम में कुछ लोगों ने अपने विचारों एवं अनुभवों को शाब्दिक रूप देते हुए रचनात्मक लेखन के माध्यम से नई ऊंँचाइयों तक पहुंँचाया है। उसी के दृष्टिगत यह व्याख्यान आपको रचनात्मक लेखन को गहराई से समझने एवं उस मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हुए लाभान्वित करेगा।
फाउंडेशन के सचिव श्री कुलवंत सिंह ने फॉउंडेशन की ओर से  उपस्थित विद्वानों एवं डेलीगेट्स के  स्वागत  किया।   डॉ मुहम्मद तारिक़ इ सेमिनार के संयोजक रहे।  सह संयोजक तथा एक्सप्रेशंस इन लैंग्वेजेज एंड आर्ट्स फाउंडेशन के  टेक्निकल डायरेक्टर श्री वैदूर्य जैन ने बताया की कार्यक्रम में देश विदेश से लगभग 1500 लोगों ने रजिस्ट्रेशन  किया है , और यह कार्यक्रम विभिन्न सोशल मीडिया चैनलों तथा ज़ूम पर निर्बाध गति से चला। संचार अधिशाषी  सुमेधा द्विवेदी , संचार अधिशाषी  अनुकृति राज ,तथा रपोर्टियर श्री निलॉय मुख़र्जी तथा सुश्री भाव्या अरोरा ने  वक्ताओं एवं डेलीगेट्स को तकनीकी माध्यमों से संयोजित  किया। कार्यक्रम में अमेरिका , इंग्लैंड ,दक्षिण  अफ्रीका , इंडोनेशिया , मलेशिया  ,थाईलैंड , श्रीलंका इत्यादि  देशों तथा भारत के विभिन्न राज्यों से लोगों ने ऑनलाइन प्रतिभाग किया।
एक्सप्रेशंस इन लैंग्वेजेज एंड आर्ट्स फाउंडेशन के सेक्रेटरी  श्री कुलवंत सिंह ने ऐसे आयोजनों कि प्रासंगिकता पर बताया कि "आज के इस संकटपूर्ण समय मे मानव जाति विभिन्न प्रकार की समस्याओ का सामना कर रही है। ऐसे में हम लोगो का एक छोटा सा प्रयास ऐसे लोगो को काफी हद तक मानसिक राहत पहुँचा सकता है। यह प्रयास है अपने संसाधनों को अपनी यथाशक्ति अनुसार तन मन एवं धन से पीड़ित लोगों के साथ बाटना। यह एक ऐसा उपाय है जो केवल दुसरो को ही नही अपितु खुद भी सुख और संतुष्टि का एहसास कराता है। इस संकट के समय में हमारे ऐसे कुछ प्रयास हमारे साथी मनुष्यों एवं समाज मे सकारात्मकता एवं प्रसन्ता का माहौल बनाने में कारगर सिद्ध हो सकते हैं। आइये हम सब इस दिशा में कुछ कदम उठाएं।"

एस. एस. कॉलेज, शाहजहांपुर के अंग्रेजी के सहायक प्रोफेसर डॉ अरुण कुमार यादव ने इ सेमिनार के विषय में अपने अनुभव साझा करते हुए कहा  कि "रचनात्मकता आत्म-निरीक्षण का एक उत्कृष्ट माध्यम है, और खुशी के लिए सबसे अच्छा उपाय है। हमारे अनुभवों  को लिखने से हमें यादों के खजाने को बनाए रखने में मदद मिलती है, कि हम  आने वाले समय में इसे किस प्रकार संजोते हैं, रचनात्मक इच्छा मानव आत्मा की सबसे गहरी  खुशियों में से एक है।"वहीँ एक्सप्रेशंस इन लैंग्वेजेज एंड आर्ट्स फाउंडेशन के कार्यकारिणी से जुड़े , लखनऊ स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ़ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी में अंग्रेजी के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अर्पित कटियार ने विषय पर विचार साझा करते हुए कहा कि "जैसा कि हम सभी एक प्रसिद्ध कहावत से परिचित हैं कि "इस दुनिया में कुछ भी स्थायी नहीं है"। जीवन कभी भी फिर से एक जैसा नहीं होगा, और इस विचार में विश्वास करते हुए महामारी को संभालने के लिए प्रयोग चल रहे हैं कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है इसलिए इस दुनिया में हर कोई बदलते समय के साथ निर्माण, नवाचार और अद्यतन करने की पूरी कोशिश कर रहा है। हमारी फाउंडेशन एक्सप्रेशन इन लैंग्वेजेजस  एंड आर्ट्स फाउंडेशन  ने भी एक ऐसा मंच प्रदान किया है, जहाँ आप इस अवधि के दौरान आप अपने काम को बढ़ा सकते हैं, जैसे कि  नए कौशल और ज्ञान को सीखना। यह हम सबके लिए एक चरम, चुनौती से कम कुछ  कभी नहीं। हमारा कर्तव्य है कि हम अपने आप को मानसिक तौर पर शांत रखे ताकि भविष्य के लक्ष्य नकारात्मक विचारों और भावनाओं को ध्वस्त न कर सके। "इसी श्रृंखला में कानपुर विश्वविद्यालय से जुड़े एक महाविद्यालय से डॉ भास्कराचार्य ने प्रसन्नता एवं सृजन पर अपनी विस्तृत परिकल्पना साझा किया।
पावर पॉइंट प्रसेनटेशन के निर्माण  द्वारा सुश्री भव्य अरोरा ने कार्यक्रम की विस्तृत रूपरेखा एवं उद्देश्यों को स्पष्ट किया।  कोलकाता    से , एक्सप्रेशंस इन लैंग्वेजेज एंड आर्ट्स फॉउण्डेशन्स  की कार्यकारिणी से जुड़े  असिस्टेंट प्रोफेसर श्री   निलॉय मुख़र्जी ने सभी आये हुए अतिथियों एवं प्रतिभागियों को संस्था की ओर से धन्यवाद ज्ञापित किया। उन्होंने इस दौर में वेबिनार और इ सेमिनार कि प्रासंगिकता एवं इस से जोड़े विभिन्न आयामों को भी इंगित किया।

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