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राष्ट्रीय काव्यधारा से होती है हिन्दी साहित्य की शुरुआत :उदय प्रताप सिंह

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श्याम नारायण, सुभद्रा कुमारी और माखन लाल चतुर्वेदी की स्मृति में संगोष्ठी 

लखनऊ (सं)। श्याम नारायण पाण्डेय, सुभद्रा कुमारी चौहान, माखन लाल चतुर्वेदी एवं बालकृष्ण शर्मा नवीन की स्मृति में संगोष्ठी का आयोजन हिन्दी संस्थान में शनिवार को किया गया। 
गोष्ठी का आरम्भ करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय की डॉ. श्रुति ने कहा कि बुन्देले हरबोलो के मुंह हमने सुनी कहानी थी खूब लड़ी मर्दानी वह तो झासी वाली रानी थी, 'झाँसी वाली रानीÓ उनकी रचना वीर रस की कालजयी कविता के माध्यम से हम उन्हें जानते हैं। इनकी तुलना माखनलाल चतुर्वेदी से की जा सकती है जिनकी रचनाएं राष्ट्रीयता से ओतप्रोत हैं। सुभद्रा जी ने अपनी काव्य रचना से भारतीयों के बीच स्वंत्रता की अलख जगायी। मुख्य अतिथि के रूप में पधारे वरिष्ठï साहित्यकार डॉ. उदय प्रताप सिंह ने कहा कि हिन्दी साहित्य की शुरुआत राष्ट्रीय काव्यधारा से होती है। हिन्दी साहित्य का आदिकाल राष्ट्रीय काव्यधारा से भरा हुआ है। साहित्य की धारा कभी सूखती नहीं है। उन्होंने कहा कि मुझे लगता है कि राष्ट्रीय काव्यधारा की उपेक्षा हुई है। अध्यक्षीय सम्बोधन में डॉ. सदानन्दप्रसाद गुप्त ने कहा कि स्वतंत्रता संघर्ष के बाद राष्ट्रीय काव्यधारा क्षीण होती गयी। प्रगतिवादी साहित्य में राष्ट्रीय काव्यधारा को संकीर्ण मानसिकता से देखा गया। डॉ. सदानन्दप्रसाद गुप्त ने अज्ञेय, माखन लाल चतुर्वेदी तथा भारतेन्दु हरिश्चन्द्र द्वारा राष्ट्रीय चेतना पर लिखे गये साहित्य की चर्चा करते हुए कहा इन साहित्यकारों ने देश की राष्ट्रीयता के लिए महत्वपूर्ण साहित्य की रचना की। डॉ. इन्दुशेखर तत्पुरुष ने कहा कि माखन लाल चतुर्वेदी के काव्य में देश भक्तिपरक तत्वों का समावेश है। वे साहित्य के अपराजेय योद्धा थे। डॉ. कन्हैया सिंह ने कहा कि सौम्य स्वभाव बाल कृष्ण शर्मा 'नवीनÓ सरीखे कवि सिर अपनी हथेली पर रखकर चलने वाले कवि थे। रामकठिन सिंह ने भी श्याम नारायण पाण्डेय पर अपने विचार व्यक्त किये। 

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