70 हजार कुत्तों और बेहिसाब सांड़ों ने जीना किया हराम
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जानवरों को पकडऩे में नाकाम नगर निगम की 8 गाडिय़ां और 40 कर्मचारी
लखनऊ। शहरवासियों को छुट्टा जानवरों से छुटकारा नहीं मिल रहा है। हर माह लाखों पए खर्च होने के बाद लोग सांडों के आंतक का शिकार हो रहे हैं। गांव हो या फिर शहर ऐसे जानवरों से राहगीरों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। अब तो हद हो गई है कि बेतादात कुत्ते होने की वजह से अक्सर घरों में भी दाखिल हो जो जाते हैं। इतना ही नहीं घनी आबादी वाले इलाकों में साड़ और गाय भी घरों के भीतर जाने लगे हैं।
वहीं नगर निगम का कैटिल कैचिंग विभाग सिर्फ कागजी कार्रवाई में ही जुटा है। ऐसे जानवरों को पकडऩे के लिए नगर निगम की आठ गाडिय़ां व 40 कर्मचारी लगाये गये हैं। इन पर हर माह लगभग चार लाख रुपये खर्च हो रहा है। गाडिय़ों के डीजल व मरम्मत पर दो लाख रुपये तथा कर्मचारियों के वेतन पर दो लाख रुपये का खर्च हो रहा है। कान्हा उपवन के संचालन में एक करोड़ रुपये का खर्च हो रहा है। लेकिन आवारा जानवरों की संख्या में कमी नहीं हो पा रही है। गत तीन दिनों के भ्रमण में नगर आयुक्त ने खुद हकीकत देखी। कूड़े के ढेर पर जानवर विचरण करते दिखे। हालांकि उन्होंने आवारा जानवरों को पकडऩे का निर्देश दिया लेकिन स्थिति जस की तस बनी हुई है। चाहे पुराना लखनऊ हाक या पालिटेक्निक चौराहा, तकरोही हो या इंदिरानगर, जानकीपुरम हो या ,गोमतीनगर, राजाजीपुमर हो या आलमबाग क्षेत्र। यह स्थिति लगभग पूरे शहर की है। पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ अरविंद कुमार राव का दावा है कि शहर में एक साड़ नहीं है। जो जानवर सड़क या कूड़े के ढेर पर दिख रहे हैं वह गायें हैं। उनको पकडऩे का लगातार अभियान चला रहा है। डेरियों के खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। जुमार्ना वसूला जा रहा है। पिछले नौ दिनों में छह लाख रुपये राजस्व जमा हुआ। तीन लाख रुपये वसूली और होनी है। पहली बार पकड़े जाने पर जानवर के कान में टैग लगाकर 3000 ररुपये जुमार्ना वसूला जा रहा है। दूसरी बार पर पांच हजार व तीसरी बार पकड़े जाने पर 10000 रुपये की क्षतिपूर्ति लगाई जा रही है। इसके बावजूद लोग मान नहीं रहे हैं। डेरियों से जानवर पकडऩे पर 10000 रुपये जुमार्ना लगाया जा रहा है। उन्होंने कहा कान्हा उपवन में 10500 जानवरों के रखने की क्षमता है। 10300 जानवर रखे जा चुके हैं। सिर्फ आवारा जानवर ही नहीं कुत्तों के आंतक से गली मोहल्लों के लोग परेशान हैं। कई इलाके तो ऐसे हैं जहां शाम ढलते ही निकलना जोखिम से कम नहीं है। पुराने लखनऊ के मुसाहिबगंज, मुफ्तीगंज, ठाकुरगंज जैसे इलाकों में कुत्तों की भरमार है। रात के अंधेरे में कुत्ते गाड़ी वालों पर दौड़ लेते हैं। कई को गंभीर चोटें तक आ चुकी हैं। यह हाल तब है कि जबकि नगर निगम और निजी संस्था मिलकर नसबंदी कर रही हैं इसके बाद कुत्तों की संख्या में कमी नहीं आई है। नगर निगम के आकड़ों के अनुसार शहर में करीब 70 हजार कुत्ते घूम रहे हैं।
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