इतिहास के पन्नों में दर्ज लखनऊ का पक्का पुल कूड़े के ढेर पर नवाब आसिफुद्दौला के दौर में यह था शाही पुल
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कई फिल्मों ने भी दर्शायी पुल की खूबसूरती
मोहम्मद शानू
लखनऊ। नवाबों के शहर लखनऊ की इमारतों की चर्चा दुनिया के कोने-कोने में है। वहीं यहां के पक्का पुल को भी कई नाम से जाना जाता है। कोई लाल पुल तो कोई पक्का पुल जैसे नामों से जानता है। इस पुल का बड़ा इतिहास रहा है। पिछली अखिलेश सरकार में भी इस पुल को खूबसूरती देने के लिए काम किया गया। खास कर रात में यह पुल जगामग रोशनी से इलाके की पहचान बन गया था। मगर मौजूदा समय की बात करें तो यहां पुल और नीचे बहती गोमती का बुरा हाज है। पुल का इतिहास खुद पर बेबसी के आंसू बहा रहा है। बीते साल जिस जगमगाते पुल को लोग दूर दराज से खास रात में देखने आते थे। आज यहां कूड़ का अम्बार लगा हुआ है।
बताते चले कि अवध के नवाब आसिफुद्दौला के समय के पुराने शाही पुल को 1911 में कमजोर करार देकर तोड़े जाने के बाद अंग्रेज अधिकारियों ने 10 जनवरी 1914 बनाकर लखनऊ की जनता को सौंपा था। लोग इस अनोखी और उस समय केसबसे विशाल माने जाने वाली कृति से बलखाती गोमती नदी का दीदार आराम से कर सकें इसके लिए भी लार्ड हडिंग ने इंतजाम किये थे। अधिकारियों और इंजीनियरों ने यहां पुल के दोनों ओर 6-6 नक्काशीदार बालकनी भी बनवाई।
पुल के दोनों ओर लगभग 10 मीटर ऊंचाई के भारी भरकम कलात्मक स्तंभ भी बनवाये।
हुसैनाबाद इलाके के एक नवाब ने बताया कि अंग्रेजों की ये कृति इस मायने में भी खास है कि आज भी इसकी बनावट बेजोड़ है। ये कलात्मक रूप से मजबूत है और आज के पुलों को देखें तो बुनियादी तौर पर तो मजबूत है ही।
उन्होंने बताया कि पक्के पुल की जगह पहले पत्थर का बना पुल था। जिसे शाही पुल कहा जाता था। शाही पुल इसलिए कि इसकी उतराई टोलटैक्स नवाब आसिफुद्दौला की बेगम शमशुन निशां लेती थीं। 1857 के गदर के बाद जब अंग्रेजों ने अवध संभाला तो उन्होंने पुल को कमजोर करार दे दिया, क्योंकि उनका मानना था कि सेना, तोपों के आने-जाने के बाद से ये कमजोर हो गया है।
तब अंग्रेजों ने इसे तोडऩे का फैसला किया। पुराना पुल 1911 में तोड़ा गया और उसी केसाथ नये पुल की आधारशिला रखी गई। लार्ड हडिंग ने इसका 10 जनवरी 1914 को उद्घाटन किया। इसे चूंकि लालरंग से रंगा पोता गया था, इसलिए इसे लाल पुल या पक्का पुल के नाम से भी जाना जाता है।
अवध के नवाब वजीर आसिफुद्दौला के समय में बनाये गये पुराने शाही पुल के स्थान पर बनाये गये इस पुल को बनाया गया। जो कि यहां से 50 डाउन स्ट्रीम पर मौजूद था। शहर की शूट होने वाली फिल्मों में पक्का पुल खूब दिखता है। सनी देओल की गदर एक प्रेम कथा में तो बकायदा एक चेज सीन तक इस पर फिल्माया गया, जिसे देखने को शहरी खूब उमड़े।
इसके अलावा हाल ही में शहर में शूट हुई यशराज बैनर की फिल्म दावत-ए-इश्क में भी कई सीन इसके आसपास फिल्माये गये। कई फिल्मों और टीवी धारावाहिकों में लखनऊ की पहचान दिखाते स्थलों में रूमी दरवाजे, घंटाघर के बाद यही पुल बाजी मारता है। मगर अफसोस इस बात की है कि जहां यह पुल इतिहास के पन्नों में अपनी खास पहचान बना चुका मगर इन दिनों कूड़े के ढेर पर बसा हुआ महसमस हो रहा है। ऐसे में जिम्मेदार लोग भी खूब निगाहें फेरे हुए हैं।
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