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प्यारे शहर वासियों

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मैं चला था अकेला,राह वीरान थी 
क्या हुआ कारवां ये किधर को चला 
सुनके आवाज कानो ने रोके कदम
और नज़रों ने पूछा बता दास्ताँ
इक नदी थी हमारे शहर बीच में
गोमती माँ ये कह सब बुलाते उसे
वक्त ऐसा है आया सुनो हे सखा
हाल इतना बिगाड़ा मैं क्या हूँ कहूँ 
आज उसकी दशा देख घायल है मन
बस उसी ओर बढ़ता है ये कारवां
मैं भी संग हो लिया मुझको साथी मिले
आस्था की किवाड़े मेरी खुल गईं
गर न नाराज हो तुम भी खोलो नयन
एक विनती मेरी मन लगा के सुनो
ये नदी है तो जल है भली जिंदगी 
जब नही होगी ये तो करोगे तुम क्या 
कैसे जीवन की प्यास बुझेगी यहाँ
गर सबक ले सको शहर के वासियों
कुछ कदम साथ मिलकर हमारे चलो
लक्ष्य है हम सभी का भरे गोमती 
जल हो निर्मल नदी का मिले ये खुशी 
अपने घर-द्वार तो साफ रखते सभी
माँ जो प्यारी नदी साफ उसको करो 
जागो चैतन्य हो आओ तट पर सभी
मिल "भगीरथ" का जैसा प्रयास करो 
गंगा मईया की बहन गोमती मईया की
अपने हाथों से मिलकर सफाई करो

संकल्प शर्मा (13 जनवरी 2019)
48 क्लेस्क्वायर, लखनऊ

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