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क्यो नही करते मानव निसर्ग की कद्र

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लेखक---महेंद्र पाल 
जब से श्रुष्टि की रचना हुई है,तब से धरा एव निसर्ग का एक अलग ही बंधन है, मानव जाति को तो जैसे श्रुष्टि ने निसर्ग के रूप में एक वरदान ही दिया है। निसर्ग जिसमे पेड़,पौधे,वायु,अग्नि,जल सब का समावेश है,ये सभी मानव जाति के जीने के लिए अतिआवश्यक तो है ही, लेकिन इनसे इस पृथ्वी का समतोल भी जुड़ा हुआ है।
आज हम चर्चा करेंगे पेड़ पौधों की,इनसे मानव जाति के लाभ की।
तो सर्वप्रथम ये पेड़ पौधे हर स्वरूप में मानव जाति को लाभ देते है, इसके लिए महेंद्र कपूर द्वारा गाया एव चित्रगुप्त श्रीवास्तव द्वारा रचित गीत "जीते भी लकड़ी मरते भी लकड़ी,देख तमाशा लकड़ी का, क्या जीवन क्या मरण कबीरा,खेल रचाया लकड़ी का," याद आता है,इस गीत में मानव के पैदा होने से लेकर मृत्यु तक एक लकड़ी की अहमियत,उपयोगिता दर्शायी गयी है। 
अब हम सब अपना ध्यान वैशविक महाबीमारी कोविद 19 पर केंद्रित करते है,इस बीमारी में अधिकतर मौत जो हुई है वह प्राणवायु की अनुपलब्धता की वजह से हुई,लोग पैसे लेकर यह प्राणवायु उसके तय कीमत से बहुत अधिक में भी खरीदने को तैयार खड़े रहे,परन्तु उन्हें यह प्राणवायु उपलब्ध नही हो पाई, और दूसरी तरफ एक पूर्ण विकशित पेड़ हमे एक वर्ष में करीब 1 करोड़ कीमत के प्राणवायु मुफ्त में उपलब्ध कराते है, लेकिन कहा गया है ना "मुफ्त का कोई मोल नही होता", तो हम मानव भी इन पेड़ों को कीमत जानते हुए भी उसे नजरअंदाज करते है,हमसब प्रसिद्धि पाने के लिए,वृक्षारोपण करते है,एक पेड़ लगते है,और उसका प्रचार ऐसे करते है,की लाखों पेड़ लगाए गए हो, प्रसिद्धि की बात एक तरफ,वृक्षारोपण करना भी जरूरी है,पर उससे ज्यादा जरूरी है,जो पेड़ लगे है,जो विकशित हुए है,या जो पनप रहे है उनका संरक्षण करना।
भारत मे पेड़ संरक्षण कायदा भी है,पर लोगो को उसकी जानकारी नही,जिन्हें यह कायदा अमल में लाना चाहिए,वे लोग इसे अहमियत नही देते,जिससे इस कायदा का भंग करने वालो के हौसले बुलंद होते है, इस कायदे के अंतर्गत किसी भी पेड़ की टहनी,डाली या पूरा पेड़ काटने पर पाबंदी है,और ऐसा करने वालो पर हत्या का गुनाह दाखिल करने का प्रावधान है,पेड़ो पर किसी भी प्रकार का अद्वेर्टिसमेन्ट करना,उसपर बैनर,पोस्टर, लगाना,खिला ठोकना,स्टेपलर पिन चुभोना, पेड़ को किसी भी प्रकार के बंधन में जकड़ना,इत्यादि पर पाबंदी है,और ऐसा करने वालो पर हत्या का प्रयास करने का गुनाह एव आर्थिक दंड का प्रवधान है, पर प्रशाशन इस कायदे का उपयोग ही नही करती,और मानव भी जाने, अनजाने यह गुन्हा करते रहते है।
तो ऐसे में सभी को जागरूक होकर वृक्षारोपण तो करते रहना चाहिए, परन्तु उससे भी बढ़कर जो पेड़ लगे हुए है,जो पनप रहे है,और जो विकशित हो चुके है,उनका संरक्षण करना चाहिए 

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