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आपदा ने सिखाया जीने का तरीका

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इस धरा पर हर युग मे, कोई ना कोई आपदा आती ही रहती है।



लेखक ---महेंद्र पाल 
     ये आपदाएं सदैव मानव समाज को जीने का तरीका सीखा जाती है,ये आपदाएं विभिन्न स्वरूप में इस धरती पर आती है,फिर इन्हें मानव कोई एक नाम दे देते है जैसे हैजा,सुनामी,तूफान,प्रलय इत्यादि,हर आपदा के पश्च्यात मानव अपने जीने के तौर तरीके में बदलाव लाते है,निसर्ग से समझौता करते है और मानव समाज आगे बढ़ता है। जब कभी धरती पर मानव एव निसर्ग के बीच आधुनिकता के नाम पर तालमेल में अंतर होता है,तब तब निसर्ग एव पृथ्वी अपना समतोल बनाये रखने हेतु हलचल करते है,और मानव समाज इसे प्रलय का नाम दे देते है।
इस युग में सबसे बड़ा प्रलय कोविद 19 यह साबित हुआ है,इस महाबीमारी ने सिर्फ भारत ही नही बल्कि पूरे विश्व को एक कमरे में कैद कर दिया है, इसका असर हर व्यक्ति को,हर परिवार को,हर समाज को,हर देश को सहना पड़ा है।
इस वैश्विक महाबीमारी ने हर मानव को अपने जीने के तौर तरीके पर पुनःविचार, चिंतन करने को मजबूर कर दिया है। हम सबने देखा कि इस आपदा में हर कोई व्यक्तिगत विचार कर रहे थे,सबने अपने निजी जीवन को प्राथमिकता दी,उसमे सफल होने के पश्च्यात समाज का विचार हर एक के मन मे आया।इस आपदा में हमसब ने देखा कि भाई- भाई , यार- दोस्त, आस- पड़ोस सब के रिश्ते में एक दरार आ गयी,सब एकदूसरे से दूरी बनाते चले गए।
कुछ लोग जो पहले से ऐसी आपदा के लिए नियोजन कर रखे थे,वे ही अपनो के साथ अन्य के काम आए,इन्होंने अपना परिवार देखते हुए समाज की भी मदद की।
तो ऐसे में इस वैशविक बीमारी ने सभी को अनदेखी परिस्तिति, से निपटने के लिए पूर्व नियोजन करने की शिख दे दी है।इस आपदा के बाद हर व्यक्ति को अपने जीने के तरीके के साथ ही अपनी आमन्दनी अनुसार बचत करने की भी शिक्षा दे दी है,हर व्यक्ति को अब अपने जीवन मे अपनी आवक का एक भाग ऐसे अनदेखी,आपदा परिस्तिति के लिए बचाये रखना होगा,तभी ऐसी परिस्तिति में हमे किसी और के सहारे, किसी अन्य पर निर्भर रहने की आवश्यकता नही होगी

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