मौन का अर्थ कमजोर नही
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मौन का अर्थ कमजोर नही
लेखक ---महेंद्र पाल
किसी विषय पर जब कोई मौन धारण कर लेता है,तो सभी के जेहन में जो सबसे पहली बात या विचार आता है,वह यह है कि लोग यह तर्क लगा लेते है, की इसमे मौनधारण किये व्यक्ति की गलती है,या इसे इस विषय पर कोई जानकारी नही है,या फिर लोग धारणा बना लेते है कि मौनधारक कमजोर है।
किसी किसी पर यह बात लागू भी होती है,और सच भी होती है,परन्तु हर किसी को तराजू के एकही पलड़े में रखकर नही देखना चाहिए।
आप ने यह कहावत भी सुनी होगी, "छोट नदी झट उतराए" इसका अर्थ यही होता है,की जब कभी बरसात होती है,तो तनिक से पानी बरसने पर, नदी सोचती है कि अब मेरे जैसा पानी किसी मे नही,और में ही इस संसार को पानी उपलब्ध करा सकता हूँ, और वह अपने अंदर का पानी अपने किनारों के बाहर फेकना सुरु कर देते है, और तबाही का कारण बनते है,वही सागर अपने भीतर इन नदियों से कही गुना अधिक पानी लिए होते हुए भी शांत रहते है,जैसे उसमे पानी की कमी है,पर जब सागर रुद्र रूप धारण करता है,तब पूरे के पूरे सहर नष्ट हो जाते है।
वैसे ही एक और मुहावरा है " अर्ध जल गगरी छलकत चली जाए"
इसका अर्थ होता है,की जब कभी पनघट से महिलाएं अपने घर की और पानी से भरी गगरी लेकर चलती है,तो जो गगरी पूर्ण रूप से भरी होती है उसमे से महिला के चाल से पानी कभी नही छलकत,परन्तु जो गगरी कम भरी होती है,उसमे से पानी महिला के चाल के अनुसार गगरी में से पानी छलकता रहता है,और अपने मुकाम तक पहुचते पहुचते या तो गगरी में से पानी बहुत कम हो जाता है।
फिर एक कहावत है "तूफान से पूर्व की शांतता" इसका अर्थ होता है कि जब कभी तूफान आने वाला होता है,तब निसर्ग कुछ समय पूर्व में एकदम शांत हो जाता है,पेड़ पौधे,सब एकदम स्थिर हो जाते है,और लोग असावधान होकर बैठ जाते है,लेकिन फिर कुछ पल बाद ही जब तूफान आता है, तो तबाही कर जाता है।
इसीलिए समाज के विदवान, बुद्धजीवी हर बात पर उत्तर नही देते,बेवजह चर्चा नही करते,इसका अर्थ यह नही की वे कमजोर है,या उस विषय पर उनको ज्ञान नही है,या वे उस विषय पर उत्तर नही दे सकते,पर बुद्धजीवी व्यक्ति ऐसा कर अपना समय,ज्ञान व्यवय नही करना चाहते,वे इस समय एव ज्ञान का सदुपयोग करते है, और मानव समाज के भलाई के लिए इस समय का इस्तमाल करते है, पर कुछ लोग इसे उनकी कमजोरी मान बैठते है,और फिर वही अर्नगल कार्य सुरु कर देते है।
लेकिन यही व्यक्ति, यानी कि बुद्धजीवी जब बोलना, फिर चाहे वह अपनी जुबान से हो,अपने कार्यो से हो सुरु करते है,तो समस्त मानव समाज को उनकी ताकत का एहसास हो जाता है।
इसीलिए कहा गया है कि किसी शांत व्यक्ति को जो अपना कार्य शांति पूर्वक बिना किसी को नुकसान पहुचाये कर रहा है,तो उसे उसका कार्य करने देना चाहिए,क्योकि उसे छेड़ने पर जब वह प्रतिघात करता है,तो बहुत से लोगो का नुकसान होता है।
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