इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके 71 साथियों की शहादत और दी गई कुर्बानी की याद में पूरी दुनिया में मोहर्रम मनाया जाता है : नवाबजादा सैयद मासूम रज़ा, एडवोकेट
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अजीत सिंह बागी ब्यूरो चीफ उत्तर प्रदेश
लखनऊ : इस्लामिक कैलेंडर का पहला महीना मोहर्रम होता है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके 71 साथियों की शहादत और दी गई कुर्बानी की याद में पूरी दुनिया में मोहर्रम मनाया जाता है। सल्तनत मंजिल, हामिद रोड, निकट सिटी स्टेशन, लखनऊ के रहने वाले रॉयल फैमिली के नवाबजादा सैयद मासूम रज़ा, एडवोकेट ने आगे कहा की यह सच है की मोहर्रम कोई त्योहार नहीं बल्कि गम व शोक मनाने का दिन है। पूरी दुनिया में शिया सुन्नी समुदाय के अलावा दूसरे मजहब के लोग भी मोहर्रम मनाते हैं और इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम और उनके 71 साथियों की दी गई कुर्बानी को याद कर गम व शोक में डूब जाते हैं। मोहर्रम के चांद का ऐलान सुनते ही आजादार इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम के गम में डूब जाते हैं। औरतें अपने सुहाग की निशानी चूड़ियां इमामबाड़े व आजाखाने में बढ़ा देती हैं और चांद रात से ही मातम वा मजलिस का दौर शुरू हो जाता है। सदाये हुसैन से पुराना शहर लखनऊ गूंजने लगता है। ताजिया अपने अपने अजाखने में आजादारे इमाम हुसैन सजा देते हैं। हर तरफ मजलिसे मातम का दौर शुरू हो जाता है। इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम अल्लाह के रसूल पैगंबर मोहम्मद साहेब के नवासे थें। नवाबजादा सैयद मासूम रज़ा, एडवोकेट ने आगे कहा की मोहर्रम बहुत ही पवित्र महीना होता है। आजादारों द्वारा अपने अपने अजाखाने व इमामबाड़े की रंगाई व पुताई के बाद उसे अलम व ताजिया से सजा दिया जाता है। मोहर्रम की पहली तारीख से मजलिस वा मातम का दौर शुरू हो जाता है। इसमें कोई संदेह नहीं कि हजरत इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम ने अपने और अपने साथियों की शहादत देकर दुनिया से जुल्म, दहशतगर्दी और बद उनवानी का खात्मा किया साथ ही साथ समाज में अमन और भाई चारे का पैग़ाम भी दिया। उस दौर का हाकिम यजीद इस्लामी कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए लोगों में दहशत फैला कर तरह तरह की बुराइयों में लिप्त था। अगर इमाम हुसैन अलैहिस्सलाम यजीद को अपनी हिमायत दे देते तो वोह पूरी दुनिया को बर्बाद कर देता। नवाबजादा सैय्यद मासूम रज़ा ने आजादरों से अपील की के वोह मोहर्रम मनाएं मगर साथ ही साथ सरकारी कोविड प्रोटोकॉल का पालन जरूर करें।
मोबाइल : 9450657131
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