Breaking News

मानवीयता विहीन मानहीन मानव के, लाजहीन नयनों में नीर चाहिए---संदीप मिश्र सरस

                               HTN Live


                   संवाददाता ज्ञानेश पाल

बिसवाँ(सीतापुर) :-साहित्यिक सामाजिक सांस्कृतिक सरोकारों को समर्पित अखिल भारतीय संस्था साहित्य सृजन संस्थान बिसवाँ सीतापुर के तत्वावधान में कबीर जयंती की पूर्व संध्या पर साहित्यिक समारोह सृजन सरोकार भाग-24 का आयोजन संस्थाध्यक्ष संदीप मिश्र सरस की अध्यक्षता में किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में वरिष्ठ कवि डॉ शैलेष गुप्त वीर एवं विशिष्ट अतिथि के रूप में डॉ विद्यासागर मिश्र सागर उपस्थित रहे।
डॉ शैलेष गुप्त वीर ने सुनाया, “इधर-उधर भटका बहुत, बाक़ी बचा न धीर। जब मन मुट्ठी में धरा, जग ने कहा कबीर।। छल-प्रपंच से जो परे, करे झूठ पर चोट। जग में वही कबीर है, मन में तनिक न खोट।।
साहित्यकार संदीप मिश्र सरस ने आह्वान किया, “मानवीयता विहीन मानहीन मानव के, लाजहीन नयनों में नीर चाहिए हमें। जाति पन्थ के विरुद्ध अलख जगाने वाला, भारत में फिर से कबीर चाहिए हमे।
डॉ विद्यासागर मिश्र सागर ने पढ़ा, “कबिरा के दोहे हो गये प्रसिद्ध जगती में, मिलती कहीं न ऐसे दोहों की नजीर है। ऐसे सन्त कवियों का गुणगान हम करें, मस्त मौला फक्कड़ स्वभाव के कबीर हैं।
सुकवि रामकुमार सुरत ने अपने शानदार काव्य पाठ में पढ़ा, “जन जन को है राह दिखाई, संत कबीरा ने, बिगड़ों को  फटकार लगाई संत कबीरा ने।
युवा कवि एवं कार्यक्रम सह प्रभारी संदीप यादव सरल ने पढ़ा, ” नीरू नीमा घर पले, कहें जुलाहा लोग। उन्हें मोहब्बत राम से अद्भुत अजब संजोग।
कलमकार आनन्द खत्री आनन्द ने सुनाया, “प्रेम का आखर‌ ढाई पढे़ उसे ज्ञानी बताती कबीर की बानी। गोविन्द से गुरु नाम बड़ा, यह सत्य सुनाती कबीर की बानी।
कवयित्री दीप्ति गुप्ता ने पढ़ा, छाप दिलों पे छोड़ी ऐसी, जिसे मिटा कोई ना पाया है। सूफी संत कबीर के जैसा, ना फिर धरती पे आया है।।
शिवानंद दीक्षित प्रेमी ने पढ़ा, “जो आदि अंत से रहा परे। जिससे खुद शाहंशाह डरे। दुर्गुण भक्षक जन का शिक्षक, सब का रखवाला कहां गया। गंगा के घाट पूछते हैं इकतारा वाला कहां गया।”
मुकेश पांडेय ने पढ़ा, “दर्द दिल का किसी को बताते नहीं। ग़म अगर कोई हो तो जताते नहीं। वार पर वार दुनिया है करती मगर- बेवजह हम किसी को सताते नहीं।”
कवि बैकुण्ठ सागर ने गुनगुनाया, “संत कबीरा ने कहीं सुंदर बात सटीक। अंतर में अल्लाह है मजहब पीटे लीक। पूजा और नमाज़ से मिला न जो आनंद। कर्म करो निष्काम यदि मिले परम आनंद।।
मृतुन्जय बाजपेयी ने सुनाया, “नही चाहिए बंगला कोठी नही कोई प्रासाद चाहिए। धर्म कर्म और नीति प्रीति से हटकर नही  विवाद चाहिए।
कार्यक्रम का सफल संचालन दीप्ति गुप्ता ने किया और वाणी वन्दना आनन्द खत्री आनन्द के द्वारा प्रस्तुत की गई।
कार्यक्रम में हरिश्चंद्र गुप्त, जी एल गाँधी, धर्मेंद्र धवल, सहित कई लोग उपस्थित रहे। कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम प्रभारी रामकुमार सुरत ने आए हुए अतिथियों एवं कलमकारों को धन्यवाद दिया।

No comments