तीन बार रंग बदलते हैंं स्वयंभू शिवलिंग
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ग्येनेश पाल व नीलम की रिपोर्ट
सीतापुर / सिधौली सीतापुर क्षेत्र के नीलगांव के पश्चिम में एक शिव मंदिर स्थित है ऐसी मान्यता है कि यह शिवलिंग दिन में तीन बार अपना रंग बदलता है इस शिवलिंग के दर्शन के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु यहां पहुंचते हैं इस शिवलिंग का उल्लेख शिव महापुराण सहित कई अन्य ग्रंथों में मिलता है शिवलिंग के विषय में नील गांव के निवासी पंडित कृष्ण बिहारी अवस्थी ने अपनी पुस्तक बड़वा पच्चीसी में पुराणों के आधार पर काव्य के रूप में विस्तार एक पूर्वक व्याख्यान किया है
कहते हैं कि महाभारत काल में जब पांडव वनवास के दौरान धौम्य में ऋषिकेश आश्रम (वर्तमान समय में बाराबंकी और सीतापुर बॉर्डर पर बसे नील गांव के पूर्व जंगल के बीच स्थित मनमोहक विशाल सरोवर के पास) पहुंचे तो वहां सभी ने कई माह बिताए इस दौरान धौम्य ऋषि ने युधिष्ठिर अर्जुन सहित सभी पांडव से कहा कि आप सभी यहां से कुछ मील दूर पश्चिम दिशा में जाएं वहां आपको भगवान शिव के दर्शन होंगे तब पांडव जिस स्थान पर पहुंचे जहां उन्हें एक बुजुर्ग शख्स मिले इसके बाद सभी पांडव ऋषि के पास लौट आए उन्होंने धौम्य ऋषि से बताया की उन्हें वहां पर एक बुजुर्ग शख्स मिले थे धौम्य अपने साथ पांच पांडवों को लेकर उसी स्थान पर पुनः पहुंचे तब पांडवों ने देखा कि वह बुरे से व्यक्त एक शिवलिंग के रूप में परिवर्तित हो रहे हैं सभी पांडवों ने भगवान शिव की पूजा अर्चना की और आशीर्वाद प्राप्त किया जापानीज से ही इस शिवलिंग को बूढ़े बाबा के नाम से जाना जाता हैं
तीन बार रंग बदलता है स्वयंभू शिवलिंग
इस शिवलिंग की विशेषता यह है कि या दिन में तीन बार अपना स्वरूप रंग बदलता है सुबह शिवलिंग का रंग स्वयं कपूर की भांति दोपहर में काले रंग में परिवर्तित होता है और शाम के समय पीले रंग में बदल जाता है
नहीं मिला शिवलिंग का अंत
जानकार बताते हैं संन 1835 मैं नील गांव के राजा भावानीदीन सिंह हुए इस दौरान उन्होंने यहां पर एक छोटा सा मंदिर बनाया काफी समय बाद 1901 में ठाकुर लालता बक्स सिंह नीलगांव की गद्दी पर बैठे और उन्होंने यहां पर एक भव्य शिव मंदिर का निर्माण कराया बताते हैं कि मंदिर की चोटी पर लगे कलश और त्रिशूल 20 किलो सोने से निर्मित हैं उसकी सुनहरी छटा 120 वर्ष बाद भी दूर से ही लोगों को अपनी और आकर्षित करती है इस मंदिर के निर्माण के बाद राजा लालता बक्स सिंह इस शिवलिंग को मंदिर के गर्भ ग्रह में स्थापित कराना चाहते थे शिवलिंग को निकालने के लिए उसे जितना खुदा जा रहा था उतना ही शिवलिंग नीचे की ओर बढ़ता जा रहा था पानी की सतह तक खुदाई की गई लेकिन शिवलिंग का अंत नहीं मिला इसी बीच राजा को एक रात सपना आया कि जहां शिवलिंग है उसे वहीं रहने दे इसके बाद राजा ने शिवलिंग के आसपास खुदाई गई मिट्टी को पटवा दिया
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