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विश्व वेटलैंड्स दिवस विशेष -घटते वेटलैंड्स, बढ़ता पर्यावरण असंतुलन और संकट मेँ जीवन

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विश्व वेटलैंड्स दिवस विशेष  -घटते वेटलैंड्स, बढ़ता पर्यावरण असंतुलन और संकट मेँ जीवन




    आज दो फरवरी को विश्व आर्द्रभूमि दिवस (World Wetland Day) मनाया जाता है
.2 फरवरी 1971 को विश्व के विभिन्न देशों ने ईरान के रामसर में विश्व के वेटलैंड्स के संरक्षण हेतु एक संधि पर हस्ताक्षर किये थे, इसीलिये इस दिन विश्व वेटलैंड्स दिवस का आयोजन किया जाता है। इसका उद्देश्य ग्लोबल वार्मिंग का सामना करने में आर्द्रभूमि जैसे दलदल तथा मंग्रोव के महत्व के बारे में जागरूकता फैलाना है. इस वर्ष 2021 के लिये विश्व आर्द्रभूमि दिवस की थीम ‘आर्द्रभूमि और जल’ (Wetlands and Water)  रखा गया है

वेटलैंड्स क्या है ?

 पर्यावरणविद् सुशील द्विवेदी के अनुसार वैज्ञानिक भाषा में तालाबों, धारों, झीलों, नालों, नदियों, दलदलों  तथा मंग्रोव,और लगूनों या  आर्द्र या नम भूमि. जहां करीब 6 मीटर गहरा पानी हो और वह साल भर जमा रहे  को वेटलैंड्स कहा जाता है. वेटलैंड (आर्द्रभूमि) एक विशिष्ट प्रकार का पारिस्थितिकीय तंत्र है तथा जैव-विविधता का एक महत्त्वपूर्ण अंग है। जलीय एवं स्थलीय जैव-विविधताओं का मिलन स्थल होने के कारण यहाँ वन्य प्राणी प्रजातियों व वनस्पतियों की प्रचुरता होने से वेटलैंड समृ़द्ध पारिस्थतिकीय तंत्र होते है। वर्तमान में  पूरी दुनिया मेँ 2266 वेटलैंड्स को अंतरराष्ट्रीय महत्त्व का घोषित किया है. और इनका कुल क्षेत्रफल 2.1 मिलियन वर्ग किलोमीटर से भी अधिक है। इनमें 26 वेटलैंड्स भारत के हैं. इनमें वेम्बनाद झील देश का सबसे बड़ा वेटलैंड्स है, जो 3 लाख एकड़ से भी ज्यादा जगह में फैला हुआ है भारत मैं पश्चिम बंगाल का ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स, उत्तर प्रदेश का ऊपर गंगा, त्रिपुरा का रुद्रसागर, तमिलनाडु का प्वाइंट कैलिमेरे, राजस्थान के केवलादेव व सम्भर, पंजाब के हरिके, कांजली और रोपर, ओड़िशा के चिल्का व भतरकनिका, मणिपुर का लोकटक, केरल के अष्टमुडी, सस्थामकोट्टा मध्य प्रदेश का भोज, जम्मु-कश्मीर के वुलर, सो मोरारी, होकरसर, मनसर व सुरिनसर, हिमाचल प्रदेश के पोंगडैम, चंद्रताल व रेणुका, गुजरात का नमसरोवर बर्ड सेंचुरी, असम का दीपर बिल और आन्ध्र प्रदेश का कोल्लेरू अन्य प्रमुख वेटलैंड्स है। उत्तर प्रदेश में वेटलैंड्स पर सबसे बड़ा खतरा है. उत्तर प्रदेश की बात करें तो यहां पर कुल 23,890 वेटलैंड्स हैं, जो कुल भौगोलिक क्षेत्र का 5.16 प्रतिशत है. उत्तर प्रदेश में वेटलैंड्स पर मंडराते खतरे को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल यानी एनजीटी भी नाराजगी जाहिर कर चुकी है. वेटलैंड्स को बचाने के लिए सन 2010 में आर्द्र भूमि संरक्षण और प्रबन्धन अधिनियम (2010) बनाया था. इस कानून का उद्देश्य है वेटलैंड्स को सुरक्षित और संरक्षित करना. लेकिन कानून बन जाने के बावजूद भी वेटलैंड्स की सुरक्षा नहीं हो पा रही है. 


मानव सभ्यता के लिए क्यों जरूरी हैं वेटलैंड्स

  पर्यावरणविद् सुशील द्विवेदी के अनुसार    वेटलैंड्स को बायोलॉजिकल सुपर-मार्केट कहा जाता है,  क्योंकि ये विस्तृत भोज्य-जाल (food-webs) का निर्माण करते हैं। जिससे प्रचुर जैव विविधिता संरक्षित होती है दुनिया की तमाम बड़ी सभ्यताएँ जलीय स्रोतों के निकट ही बसती आई हैं और आज भी वेटलैंड्स विश्व में भोजन प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वेटलैंड्स के नज़दीक रहने वाले लोगों की जीविका बहुत हद तक प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इन पर निर्भर होती है ये एक अरब से ज्यादा लोगों को  भोजन, कच्चा माल और दवाएं प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप वेटलैंड्स से मिलती है वेटलैंड दुनिया के सभी वनों के मुकाबले दोगुनी मात्रा में कार्बन को अवशोषित करने की क्षमता रखते है.तथा चक्रवात, सुनामी, बाढ़ और सूखे को कम  करके  जलवायु संबंधी आपदाओं के विरुद्ध बफर के रूप में कार्य करती हैं।वेटलैंड्स जंतु ही नहीं बल्कि पादपों की दृष्टि से भी एक समृद्ध तंत्र है, जहाँ उपयोगी वनस्पतियाँ एवं औषधीय पौधे भी प्रचुर मात्रा में मिलते हैं इन्हें किडनीज ऑफ द लैंडस्केप’ (kidneys of the landscape) यानी ‘भू-दृश्य के गुर्दे’ भी कहा जाता है। जिस प्रकार से हमारे शरीर में जल को शुद्ध करने का कार्य किडनी द्वारा किया जाता है, ठीक उसी प्रकार वेटलैंड का तंत्र जल-चक्र द्वारा जल को शुद्ध करता है और प्रदूषण अवयवों को निकाल देता है। वेटलैंड्स से पृथ्वी पर मौजूद जीवन को 40 फीसदी ताजा पानी मुहैया होता हैं. वेटलैंड्स  बाढ़ के दौरान जल के आधिक्य का अवशोषण कर लेते
 
प्राकृतिक आपदा से बचना है तो बचाने होंगे वेटलैंड्स

   पर्यावरणविद् सुशील द्विवेदी ने बताया  कि   हम प्रत्येक वर्ष 2-3% की दर से आर्द्रभूमि खो रहे हैं। इस गिरावट के कारण कृषि, वनों की कटाई, प्रचलित प्रजातियों, जलवायु परिवर्तन, जल निकासी, भूमि अतिक्रमण और शहरी विकास से अधिक हैं उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ मेँ  स्थित मोती झील ,शौतल झील ,ईकाना प्रतिशत वेटलैंड वेटलैंड शहरी विकास के कारण सर्वाधिक प्रभावित हुए हैं जहां कभी जंगली बिल्ली, छोटे बंदर, ऊदबिलाव, सफेद गर्दन वाले किंगफिशर, तितलियां और पानी के सांपों की विशेष प्रजातियां होती थीं। पक्षियों के दल चहचहाते थे। तालाबों, दलदलों, पोखरों और छोटी झीलों के इर्द-गिर्द हरे-भरे पेड़ थे। लेकिन अब झील और तालाब पाटे जा रहे हैं। उन पर कालोनियाँ बनाई जा रही हैं। ज्यादातर मामलों में देखा जा रहा है कि आर्द्रभूमि को पाटकर उन पर कंक्रीट के जंगल उगाए जा रहे हैं। कुछ जगहों पर आर्द्रभूमि को डम्पिंग ग्राउंड में तब्दील कर दिया गया है। विशेषज्ञों के मुताबिक, आर्द्रभूमि का इसी तरह अतिक्रमण होता रहा, तो बाढ़ का खतरा बढ़ेगा क्योंकि आर्द्रभूमि बाढ़ के पानी को बसाहट वाले क्षेत्रों में जाने से रोकती है। आर्द्रभूमि में कई प्रकार के वन्य जीव पाये जाते हैं। इनका अस्तित्व आर्द्रभूमि के समाप्त होते ही खत्म हो जाएगा। यही नहीं, आर्द्रभूमि के खत्म होने से ग्राउंड वाटर का रिचार्ज बाधित होगा और मछलियों का उत्पादन भी घटेगा। इन सबके साथ ही आर्द्रभूमि के नहीं रहने पर वायु प्रदूषण बेतहाशा बढ़ जाएगा, क्योंकि आर्द्रभूमि कार्बन को सोखती भी है। साथ ही जलीय इलाकों में जंगलों के मुताबिक दो दोगुना ज्यादा कार्बन संचित है. जब ये इलाके सूखते हैं तो यही कार्बन वायुमंडल में घुल जाता है और वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन को और तेज करता है. जलवायु परिवर्तन पर शोध करने वाले वैज्ञानिक अब तक प्रदूषण, वन कटाई और आर्कटिक से रिसती मीथेन गैस को ही जलवायु परिवर्तन का जिम्मेदार ठहराते रहे हैं. अब भूमि पर मौजूद जलीय इलाकों के शोध ने ग्लोबल वॉर्मिंग को लेकर नया आयाम सामने रखा है. कुल मिलाकर दुनिया को आर्द्रभूमि के अतिक्रमण का फौरी लाभ भले ही मिल जाये, लेकिन दीर्घकाल में इससे नुकसान-ही-नुकसान होगा इसलिए अगर आप चाहते हैं कि धरती की उर्वरता बनी रहे, भू-गर्भ जल का स्तर पाताल न छुए, बाढ़ से कुछ हद तक ही सही, राहत मिले,जलवायु परिवर्तन से सांसें न थमें तो  आओ दोस्तो ‘वेटलैंड’ को संरक्षित करें.

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