समस्त शिव भक्तों को महाशिवरात्रि के पावन पर्व पर समाजसेवक जे पी दिवेदी ने दिया संवाद देशवासियों को हार्दिक बधाई
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देवों के देव भगवान् भोलेनाथ के भक्तों के लियें महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं। यह ध्यात्मिक महापर्व तीनों लोकों के मालिक भगवान् शिवजी का सबसे बड़ा त्योहार है, कहते हैं महाशिवरात्रि ऐसा दिन होता है जब भगवान् शंकरजी स्वयं माता पार्वतीजी के साथ पृथ्वी पर होते हैं, जहाँ उनके जितने शिवलिंग हैं।
देवों के देव भगवान् भोलेनाथ के भक्तों के लिये महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं, ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकरजी एवम् माँ पार्वतीजी का विवाह सम्पन्न हुआ था, और इसी दिन प्रथम शिवलिंग का प्राकट्य हुआ था, इसके अलावा ये भी मान्यता है की महाशिवरात्रि के दिन भगवान् शिवजी ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था, जो समुद्र मंथन के समय बाहर से निकला था।
इस महाशिवरात्रि के व्रत रखने से भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, उपवासक की मनोकामना पूरी करते हैं, इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा, वृ्द्धों के द्वारा किया जा सकता हैं, महाव्रत को विधिपूर्वक रखने पर और शिवपूजन, शिव कथा, शिव स्तोत्रों का पाठ व "उँ नम: शिवाय" का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं।
व्रत के दूसरे दिन यानी चतुर्दशी को यथाशक्ति वस्त्र-क्षीर सहित भोजन, दक्षिणादि प्रदान करके भगवान् शिवजी को संतुष्ट किया जाता हैं, इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो शिव-भक्त करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है, यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है, एवम् इस व्रत को लगातार चौदह वर्षो तक करने के बाद विधि-विधान के अनुसार इसका उद्धापन करना शुभ माना गया है।
पहला व्रत करते समय इस व्रत का संकल्प करना चाहियें, सम्वत, नाम, मास, पक्ष, तिथि-नक्षत्र, अपने नाम व गोत्रादि का उच्चारण करते हुए संकल्प के साथ महाशिवरात्रि का व्रत करना चाहिये, महाशिवरात्री के व्रत का संकल्प करने के लिये हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि सामग्री लेकर शिवलिंग पर छोड दी जाती है।
उपवास की पूजन सामग्री में पंचामृ्त (गंगाजल, दुध, दही, घी, शहद), सुगंधित फूल, शुद्ध वस्त्र, बिल्व पत्र, धूप, दीप, नैवेध, चंदन का लेप, ऋतुफल तथा नारियल का उपयोग करना चाहिये, महाशिवरात्री व्रत को रखने वालों को उपवास के पूरे दिन, भगवान भोले नाथ का ध्यान करना चाहियें, प्रात: स्नान करने के बाद भस्म का तिलक कर रुद्राक्ष की माला धारण की जाती है।
ईशान कोण दिशा की ओर मुख कर शिवजी का पूजन धूप, पुष्पादि व अन्य पूजन सामग्री से पूजन करना चाहियें, इस व्रत के रात्रि में चारों पहर में पूजन किया जाता है. प्रत्येक पहर की पूजा में "उँ नम: शिवाय" व " शिवाय नम:" का जाप करते रहना चाहियें, अगर शिव मंदिर में यह जाप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर बैठकर इस मंत्र का जाप किया जा सकता हैं।
चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जापों से विशेष पुन्य प्राप्त होता है, इसके अतिरिक्त उपावस की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते है, महाशिव रात्रि के दिन शिव अभिषेक करने के लिये सबसे पहले एक मिट्टी का बर्तन लेकर उसमें पानी भरकर, पानी में बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल डालकर शिवलिंग को अर्पित किये जाते है।
व्रत के दिन शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए और मन में असात्विक विचारों को आने से रोकना चाहियें, शिवरात्रि के अगले दिन यानी चतुर्दशी को सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है, महाशिवरात्री के दिन शिवभक्त का जमावडा शिव मंदिरों में विशेष रुप से देखने को मिलता है, भगवान् भोलेनाथ अत्यधिक प्रसन्न होते है।
जब उनका पूजन बेल- पत्र धतुरा का फल एवम् पंचामृत चढाते हुयें पूजन किया जाता है, व्रत करने और पूजन के साथ जब रात्रि जागरण भी किया जाये, तो यह व्रत और अधिक शुभ फल देता है. इस दिन भगवान् शिवजी की शादी हुयीं थी, इसलिये रात्रि में शिव की बारात निकाली जाती है, सभी वर्गों के लोग इस व्रत को कर पुन्य प्राप्त कर सकते हैं।
एक बार एक गाँव में कोई शिकारी रहता था, पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था, वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका, क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा. चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी. संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और उसे ऋणमुक्त कर दिया।
अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था, शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा, बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था, शिकारी को उसका पता न चला, पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं।
इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और रात्रि में एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची, शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची तब मृगी बोली- मैं गर्भिणी हूँ, शीघ्र ही प्रसव करूँगी, तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे जो ठीक नहीं है? मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना, शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गयी।
शिकार को खोकर उसका माथा ठनका, वह चिंता में पड़ गया. रात्रि का अगला पहर बीत रहा था, तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली, शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था, उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगायी, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली- हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी. इस समय मुझे मत मारो, शिकारी हँसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं।
इससे पहले भी मैं अपना शिकार खो चुका हूँ. मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे, उत्तर में मृगी ने फिर कहा, 'जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ, हे पारधी! मेरा विश्वास करो, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गयी और उसने उस मृगी को भी जाने दिया, शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था, पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया, शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा, शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला- हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों और छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो।
ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े, मैं उन मृगियों का पति हूँ, यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो, मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा, मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया, उसने सारी बातें उस मृग को सुना दी, तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी।
अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो, मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ, उपवास, रात्रि जागरण और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से, तथा जितनी बार बैल वृक्ष पर हिलने से जलपात्र से जल निकल कर शिवलिंग पर चढ़ने के कारण शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल और पवित्र हो गया, उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था, धनुष और बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गये।
भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया, वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा, थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई, उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गयीं।
उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया, देव लोक से समस्त देवता भी इस घटना को देख रहे थें, घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की, तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुयें।
जिस प्रकार शिकारी और मृग परिवार को मोक्ष देकर कल्याण किया, उसी प्रकार भगवान् भोलेनाथ आप सभी भाई-बहनों के ताप-संताप हर कर शिव-भक्तों का कल्याण करें, जो अमृत पीते हैं उन्हें देव कहते हैं, और जो विष को पीते हैं उन्हें देवों के देव महादेव कहते हैं, भगवान् भोलेनाथ आपकी सारी मनोकामनायें पूर्ण करें, महाशिवरात्री की आप समस्त सनातनीयों को बहुत बहुत बधाई एवम् ढेरों शुभकामनायें।
ओऊम् नमः शिवाय्!
हर हर महादेव!
जे पी दिवेदी समाज सेवक 172 विधानसभा लखनऊ उत्तर
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देवों के देव भगवान् भोलेनाथ के भक्तों के लियें महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं। यह ध्यात्मिक महापर्व तीनों लोकों के मालिक भगवान् शिवजी का सबसे बड़ा त्योहार है, कहते हैं महाशिवरात्रि ऐसा दिन होता है जब भगवान् शंकरजी स्वयं माता पार्वतीजी के साथ पृथ्वी पर होते हैं, जहाँ उनके जितने शिवलिंग हैं।
देवों के देव भगवान् भोलेनाथ के भक्तों के लिये महाशिवरात्रि का व्रत विशेष महत्व रखता हैं, ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान शंकरजी एवम् माँ पार्वतीजी का विवाह सम्पन्न हुआ था, और इसी दिन प्रथम शिवलिंग का प्राकट्य हुआ था, इसके अलावा ये भी मान्यता है की महाशिवरात्रि के दिन भगवान् शिवजी ने कालकूट नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था, जो समुद्र मंथन के समय बाहर से निकला था।
इस महाशिवरात्रि के व्रत रखने से भगवान भोले नाथ शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं, उपवासक की मनोकामना पूरी करते हैं, इस व्रत को सभी स्त्री-पुरुष, बच्चे, युवा, वृ्द्धों के द्वारा किया जा सकता हैं, महाव्रत को विधिपूर्वक रखने पर और शिवपूजन, शिव कथा, शिव स्तोत्रों का पाठ व "उँ नम: शिवाय" का पाठ करते हुए रात्रि जागरण करने से अश्वमेघ यज्ञ के समान फल प्राप्त होता हैं।
व्रत के दूसरे दिन यानी चतुर्दशी को यथाशक्ति वस्त्र-क्षीर सहित भोजन, दक्षिणादि प्रदान करके भगवान् शिवजी को संतुष्ट किया जाता हैं, इस व्रत के विषय में यह मान्यता है कि इस व्रत को जो शिव-भक्त करता है, उसे सभी भोगों की प्राप्ति के बाद, मोक्ष की प्राप्ति होती है, यह व्रत सभी पापों का क्षय करने वाला है, एवम् इस व्रत को लगातार चौदह वर्षो तक करने के बाद विधि-विधान के अनुसार इसका उद्धापन करना शुभ माना गया है।
पहला व्रत करते समय इस व्रत का संकल्प करना चाहियें, सम्वत, नाम, मास, पक्ष, तिथि-नक्षत्र, अपने नाम व गोत्रादि का उच्चारण करते हुए संकल्प के साथ महाशिवरात्रि का व्रत करना चाहिये, महाशिवरात्री के व्रत का संकल्प करने के लिये हाथ में जल, चावल, पुष्प आदि सामग्री लेकर शिवलिंग पर छोड दी जाती है।
उपवास की पूजन सामग्री में पंचामृ्त (गंगाजल, दुध, दही, घी, शहद), सुगंधित फूल, शुद्ध वस्त्र, बिल्व पत्र, धूप, दीप, नैवेध, चंदन का लेप, ऋतुफल तथा नारियल का उपयोग करना चाहिये, महाशिवरात्री व्रत को रखने वालों को उपवास के पूरे दिन, भगवान भोले नाथ का ध्यान करना चाहियें, प्रात: स्नान करने के बाद भस्म का तिलक कर रुद्राक्ष की माला धारण की जाती है।
ईशान कोण दिशा की ओर मुख कर शिवजी का पूजन धूप, पुष्पादि व अन्य पूजन सामग्री से पूजन करना चाहियें, इस व्रत के रात्रि में चारों पहर में पूजन किया जाता है. प्रत्येक पहर की पूजा में "उँ नम: शिवाय" व " शिवाय नम:" का जाप करते रहना चाहियें, अगर शिव मंदिर में यह जाप करना संभव न हों, तो घर की पूर्व दिशा में, किसी शान्त स्थान पर बैठकर इस मंत्र का जाप किया जा सकता हैं।
चारों पहर में किये जाने वाले इन मंत्र जापों से विशेष पुन्य प्राप्त होता है, इसके अतिरिक्त उपावस की अवधि में रुद्राभिषेक करने से भगवान शंकर अत्यन्त प्रसन्न होते है, महाशिव रात्रि के दिन शिव अभिषेक करने के लिये सबसे पहले एक मिट्टी का बर्तन लेकर उसमें पानी भरकर, पानी में बेलपत्र, आक धतूरे के पुष्प, चावल डालकर शिवलिंग को अर्पित किये जाते है।
व्रत के दिन शिवपुराण का पाठ सुनना चाहिए और मन में असात्विक विचारों को आने से रोकना चाहियें, शिवरात्रि के अगले दिन यानी चतुर्दशी को सवेरे जौ, तिल, खीर और बेलपत्र का हवन करके व्रत समाप्त किया जाता है, महाशिवरात्री के दिन शिवभक्त का जमावडा शिव मंदिरों में विशेष रुप से देखने को मिलता है, भगवान् भोलेनाथ अत्यधिक प्रसन्न होते है।
जब उनका पूजन बेल- पत्र धतुरा का फल एवम् पंचामृत चढाते हुयें पूजन किया जाता है, व्रत करने और पूजन के साथ जब रात्रि जागरण भी किया जाये, तो यह व्रत और अधिक शुभ फल देता है. इस दिन भगवान् शिवजी की शादी हुयीं थी, इसलिये रात्रि में शिव की बारात निकाली जाती है, सभी वर्गों के लोग इस व्रत को कर पुन्य प्राप्त कर सकते हैं।
एक बार एक गाँव में कोई शिकारी रहता था, पशुओं की हत्या करके वह अपने कुटुम्ब को पालता था, वह एक साहूकार का ऋणी था, लेकिन उसका ऋण समय पर न चुका सका, क्रोधवश साहूकार ने शिकारी को शिवमठ में बंदी बना लिया. संयोग से उस दिन शिवरात्रि थी शिकारी ध्यानमग्न होकर शिव संबंधी धार्मिक बातें सुनता रहा. चतुर्दशी को उसने शिवरात्रि की कथा भी सुनी. संध्या होते ही साहूकार ने उसे अपने पास बुलाया और उसे ऋणमुक्त कर दिया।
अपनी दिनचर्या की भाँति वह जंगल में शिकार के लिए निकला, लेकिन दिनभर बंदीगृह में रहने के कारण भूख-प्यास से व्याकुल था, शिकार करने के लिए वह एक तालाब के किनारे बेल वृक्ष पर पड़ाव बनाने लगा, बेल-वृक्ष के नीचे शिवलिंग था जो बिल्वपत्रों से ढँका हुआ था, शिकारी को उसका पता न चला, पड़ाव बनाते समय उसने जो टहनियाँ तोड़ीं, वे संयोग से शिवलिंग पर गिरीं।
इस प्रकार दिनभर भूखे-प्यासे शिकारी का व्रत भी हो गया और रात्रि में एक पहर रात्रि बीत जाने पर एक गर्भिणी मृगी तालाब पर पानी पीने पहुँची, शिकारी ने धनुष पर तीर चढ़ाकर ज्यों ही प्रत्यंचा खींची तब मृगी बोली- मैं गर्भिणी हूँ, शीघ्र ही प्रसव करूँगी, तुम एक साथ दो जीवों की हत्या करोगे जो ठीक नहीं है? मैं अपने बच्चे को जन्म देकर शीघ्र ही तुम्हारे सामने प्रस्तुत हो जाऊँगी, तब तुम मुझे मार लेना, शिकारी ने प्रत्यंचा ढीली कर दी और मृगी झाड़ियों में लुप्त हो गयी।
शिकार को खोकर उसका माथा ठनका, वह चिंता में पड़ गया. रात्रि का अगला पहर बीत रहा था, तभी एक अन्य मृगी अपने बच्चों के साथ उधर से निकली, शिकारी के लिए यह स्वर्णिम अवसर था, उसने धनुष पर तीर चढ़ाने में देर न लगायी, वह तीर छोड़ने ही वाला था कि मृगी बोली- हे पारधी! मैं इन बच्चों को पिता के हवाले करके लौट आऊँगी. इस समय मुझे मत मारो, शिकारी हँसा और बोला, सामने आए शिकार को छोड़ दूँ, मैं ऐसा मूर्ख नहीं।
इससे पहले भी मैं अपना शिकार खो चुका हूँ. मेरे बच्चे भूख-प्यास से तड़प रहे होंगे, उत्तर में मृगी ने फिर कहा, 'जैसे तुम्हें अपने बच्चों की ममता सता रही है, ठीक वैसे ही मुझे भी, इसलिए सिर्फ बच्चों के नाम पर मैं थोड़ी देर के लिए जीवनदान माँग रही हूँ, हे पारधी! मेरा विश्वास करो, मैं इन्हें इनके पिता के पास छोड़कर तुरंत लौटने की प्रतिज्ञा करती हूँ।
मृगी का दीन स्वर सुनकर शिकारी को उस पर दया आ गयी और उसने उस मृगी को भी जाने दिया, शिकार के आभाव में बेलवृक्ष पर बैठा शिकारी बेलपत्र तोड़-तोड़कर नीचे फेंकता जा रहा था, पौ फटने को हुई तो एक हष्ट-पुष्ट मृग उसी रास्ते पर आया, शिकारी ने सोच लिया कि इसका शिकार वह अवश्य करेगा, शिकारी की तनी प्रत्यंचा देखकर मृग विनीत स्वर में बोला- हे पारधी भाई! यदि तुमने मुझसे पूर्व आने वाली तीन मृगियों और छोटे-छोटे बच्चों को मार डाला है तो मुझे भी मारने में विलंब न करो।
ताकि उनके वियोग में मुझे एक क्षण भी दुःख न सहना पड़े, मैं उन मृगियों का पति हूँ, यदि तुमने उन्हें जीवनदान दिया है तो मुझे भी कुछ क्षण जीवनदान देने की कृपा करो, मैं उनसे मिलकर तुम्हारे सामने उपस्थित हो जाऊँगा, मृग की बात सुनते ही शिकारी के सामने पूरी रात का घटना-चक्र घूम गया, उसने सारी बातें उस मृग को सुना दी, तब मृग ने कहा, 'मेरी तीनों पत्नियाँ जिस प्रकार प्रतिज्ञाबद्ध होकर गई हैं, मेरी मृत्यु से अपने धर्म का पालन नहीं कर पाएँगी।
अतः जैसे तुमने उन्हें विश्वासपात्र मानकर छोड़ा है, वैसे ही मुझे भी जाने दो, मैं उन सबके साथ तुम्हारे सामने शीघ्र ही उपस्थित होता हूँ, उपवास, रात्रि जागरण और शिवलिंग पर बेलपत्र चढ़ाने से, तथा जितनी बार बैल वृक्ष पर हिलने से जलपात्र से जल निकल कर शिवलिंग पर चढ़ने के कारण शिकारी का हिंसक हृदय निर्मल और पवित्र हो गया, उसमें भगवद् शक्ति का वास हो गया था, धनुष और बाण उसके हाथ से सहज ही छूट गये।
भगवान शिव की अनुकम्पा से उसका हिंसक हृदय कारुणिक भावों से भर गया, वह अपने अतीत के कर्मों को याद करके पश्चाताप की ज्वाला में जलने लगा, थोड़ी ही देर बाद मृग सपरिवार शिकारी के समक्ष उपस्थित हो गया, ताकि वह उनका शिकार कर सके, किंतु जंगली पशुओं की ऐसी सत्यता, सात्विकता एवं सामूहिक प्रेमभावना देखकर शिकारी को बड़ी ग्लानि हुई, उसके नेत्रों से आँसुओं की झड़ी लग गयीं।
उस मृग परिवार को न मारकर शिकारी ने अपने कठोर हृदय को जीव हिंसा से हटा सदा के लिए कोमल एवं दयालु बना लिया, देव लोक से समस्त देवता भी इस घटना को देख रहे थें, घटना की परिणति होते ही देवी-देवताओं ने पुष्प वर्षा की, तब शिकारी तथा मृग परिवार मोक्ष को प्राप्त हुयें।
जिस प्रकार शिकारी और मृग परिवार को मोक्ष देकर कल्याण किया, उसी प्रकार भगवान् भोलेनाथ आप सभी भाई-बहनों के ताप-संताप हर कर शिव-भक्तों का कल्याण करें, जो अमृत पीते हैं उन्हें देव कहते हैं, और जो विष को पीते हैं उन्हें देवों के देव महादेव कहते हैं, भगवान् भोलेनाथ आपकी सारी मनोकामनायें पूर्ण करें, महाशिवरात्री की आप समस्त सनातनीयों को बहुत बहुत बधाई एवम् ढेरों शुभकामनायें।
ओऊम् नमः शिवाय्!
हर हर महादेव!
जे पी दिवेदी समाज सेवक 172 विधानसभा लखनऊ उत्तर
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