पुरानी पेंशन बहाली अभी नहीं तो कभी नहीं
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पुरानी पेंशन बहाली राज्य का विषय है सिद्ध करती राजस्थान सरकार।
लगभग अठारह वर्षों से पुरानी पेंशन की लड़ाई लड़ रहे कर्मचारियों को रेगिस्तान से मिला आस रूपी एक बूंद का सहारा। वहीं हिमाचल प्रदेश विधानसभा में भी जोरदार बहस।
जैसा की सर्वविदित है 1अप्रैल 2004 में तत्कालीन केंद्र सरकार ने उस वर्ष से और उसके बाद भर्ती कर्मचारियों के लिए नई पेंशन योजना बिना कर्मचारी संगठनों से चर्चा किये लागू की थी। इस नई पेंशन योजना में सरकार पुरानी पेंशन की तरह स्वयं योगदान न करके कर्मचारियों के वेतन से पैसा काटती है और उसमें अपना हिस्सा मिलाकर शेयर बाजार में निवेश करती है।उससे प्राप्त ब्याज की राशि से कर्मचारी की पेंशन बनती है। कर्मचारियों के जीवन भर की बचत की कमाई जुए में उड़ाई यही कहा जाएगा।
चूंकि नई पेंशन योजना में कर्मचारियों और सरकार के अंशदान को शेयर बाजार में निवेश किया जाता है, इसलिए इसके जोखिम भी बाजार के उतार चढ़ाव पर निर्भर हो जाते हैं। घाटा हुआ तो वो भी कर्मचारी के हिस्से जाता है। ऐसे में इस बात की कोई गारंटी नही होती कि अमुक कर्मचारी सेवानिवृत्त होने के पश्चात कितनी रकम पायेगा।
हम सब ने उत्तर प्रदेश के बिजली विभाग में हुए कर्मचारियों की पेंशन के पैसे के निवेश घोटाले को देख लिया वहां जिस कंपनी में कर्मचारियों का पैसा निवेश किया गया था वह दिवालिया घोषित हो गई। और बुढ़ापे की टूटती हुई लाठी को देखता कर्मचारी विवश और लाचार है।
लंबे समय से चले आ रहे कर्मचारी शिक्षक और अधिकारियों के संगठनों ने आंदोलन प्रदर्शन के माध्यम से अपना विरोध दर्ज कराया। परिणाम स्वरूप बड़ी राजनीतिक पार्टियों ने अपने घोषणा पत्र में पुरानी पेंशन बहाली को चुनावी मुद्दे के तौर पर रखा।
कुछ शिक्षक ,कर्मचारी और अधिकारी असमंजस में थे वे समझ नहीं पा रहे थे, और पार्टी के घोषणा पत्र में उल्लेखित पुरानी पेंशन को चुनावी स्टंट मान रहे हैं वो ये जान लें कि पुरानी पेंशन बहाल करना कोई मुश्किल काम नही है। राज्य सरकार पुरानी पेंशन को अपने स्तर से लागू कर सकती है, अतः केंद्र सरकार की मंजूरी की भी कोई आवश्यकता नही है। राजस्थान में गहलोत सरकार ने कर दिखा भी दिया। वहां के कर्मचारी वित्तीय वर्ष 2022-23 से पुरानी पेंशन का लाभ लेंगे।
कर्मचारी संगठनों ने लगभग सभी राजनीतिक दलों को अपनी इस मांग के सम्बंध में पत्र लिखा था लेकिन सिर्फ दो ने ही इसे अपने घोषणा पत्र में शामिल किया है।
कर्मचारियों की सामाजिक, आर्थिक और सामाजिक सुरक्षा पुरानी पेंशन बहाली से ही संभव है।सभी कर्मचारियों को एकजुट होकर अपने परिवार के हित में ही नहीं पूरे समाज के हित में उस सही नियम का साथ देना चाहिए जो आने वाली पीढ़ियों को सरकारी नौकरी में सुरक्षित बुढ़ापे की ओर अग्रसर करेगी।
उत्तर प्रदेश में पुरानी पेंशन बहाली के चुनावी मुद्दा बनने के बाद राजस्थान में पुरानी पेन्शन की बहाली और छत्तीसगढ़, झारखंड में हलचल बढ़ गई है। हिमाचल प्रदेश की विधानसभा में 24 फरवरी को नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने पुरानी पेंशन का मामला जोरदार ढंग से उठाया और कहा कि देश की सभी सरकारों को इसे लागू करना ही पड़ेगा। कर्मचारियों के आंदोलनों को कुचला नहीं जा सकता।
आज विभिन्न राज्यों सहित घर-घर में पुरानी पेंशन बहाली चर्चा का विषय बना हुआ है। बस आज जरूरी है पुरानी पेंशन पा रहे और पुरानी पेंशन की आस में खड़े कर्मचारियों की एकजुटता की।
निश्चित रूप से सभी कर्मचारी संगठन जो पुरानी पेंशन बहाली की लड़ाई में अपना योगदान दे रहे हैं वह सभी बहुत बधाई के पात्र हैं यह उनकी ही मेहनत और एक दृष्टि का नतीजा है। आशा की एक किरण में कर्मचारी अधिकारी और शिक्षक सोशल मीडिया के कई वीडियो मे अपनी खुशी का इजहार करते नजर आए। पूरी उम्मीद ही नहीं अब पूर्ण विश्वास है कि 2024 के चुनाव के पहले केंद्र सरकार को भी केंद्र में आने के लिए पुरानी पेंशन बहाली को चुनावी मुद्दा बनाना ही होगा।
बधाई हो सभी राजनीतिक पार्टियों को जिन्होंने शिक्षक सम्मान की चिंता करते हुए अपने घोषणापत्र में पुरानी पेंशन बहाली का मुद्दा लिखने में शर्म महसूस नहीं की।
सरकारें तो आती-जाती रहेंगी परंतु पुरानी पेंशन की बहाली अभी नहीं तो कभी नही....... सरकारी कर्मचारी, शिक्षक और अधिकारी का ही नहीं बल्कि समाज के हर उस प्रबुद्ध वर्ग का दायित्व है जो परिवर्तन चाहते हैं, अपने हक और अधिकार, गरिमा पूर्ण जीवन की कद्र करते हैं। जो इमानदारी से सरकार का सहयोग करना चाहते हैं क्योंकि यदि कर्मचारी मानसिक रूप से अपने बुढ़ापे की सुरक्षा के प्रति आशान्वित होगा तभी वह अपने पूरे नौकरी की अवधि में अपना पूर्ण योगदान स्वतंत्रता पूर्वक कर सकता है।
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