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काश आज अखिलेश दास जी होते


काश अखिलेश दास जी होते कुछ दिन पहले कोरोना की दूसरी लहर ने लखनऊ को अपनी चपेट में ले लिया और जबतक तमीज और तहज़ीब का मरकज लखनऊ समझता और सभलता कोरोना वायरस ने लखनऊ को सोग ,गम और मातम में डुबो दिया। चारो तरफ़ से अस्पताल, ऑक्सीजन, दवा और एंबुलेंस की आवाजे आने लगी। शमशान से उठते धुॅऐं और कब्रिस्तान में कब्र खोदते फावाड़े की आवाज़ों ने पूरे शहर को हिला दिया। इससे भी बुरा था वो वक्त जब लोग अपने अज़ीज़ अपने परिवारजन को अस्पताल ले जाने के लिए एम्बुलेंस को फोन कर रहे थे जो खुशनसीब थे उन्हें एंबुलेंस रुपए 10,000 से 15, 000 में मिल गई और वो अस्पताल पहुंच गए, उसके बाद जो हुआ वो उनका नसीब था। बहुत या ज्यादातर ऐसे थे जो एम्बुलेंस के इंतजार में फोन पर फोन करते रहे और पिता या माता या बेटा बिना एम्बुलेंस के इस लोक से उस लोक में चले गए लेकिन एम्बुलेंस न आई। इस बुरे वक्त में लखनऊ को अपना बेटा अखिलेश दास गुप्ता बहुत याद आया। उन्हें लखनऊ से इतना प्यार था कि उन्होंने लखनऊवासियो के लिए फ्री एंबुलेंस सेवा चलावायी थी। कोई भी किसी भी वक्त हेल्पलाइन को फोन करके एंबुलेंस मंगवा लेता था। शहर के बड़े बड़े चौराहों पर एंबुलेंस तैयार खड़ी रहती थी और एक फोन कॉल पर मरीज़ को अस्पताल पहुंचाने के लिए एंबुलेंस दौड़ पड़ती थी । इसका सारा खर्चा लखनऊ के बेटे अखिलेश दास गुप्ता जी अपने पिता बाबू बनारसी दास की याद में उठाते थे। जी हाॅ अगर आज डा अखिलेश दास गुप्ता जी जिन्दा होते तो लखनऊ में मौत का जो नंगा नाच हुआ वो इतना जम के न होता । इस कयामत के दिनों में उनकी द्वारा चलाई गई एंबुलेंस सेवा कई सुहाग बचा लेती, कई बच्चों को अनाथ होने से बचा लेती बहुत सारे लखनऊ वासियों को अकारण और अकाल मरने न देते। कुछ होता न होता लेकिन इतना तय है लखनऊवासी इस कोरोनाकाल में अपने को इतना कमज़ोर, असहाय और निशक्त न महसूस कर रहे होते। आह, डा अखिलेश दास गुप्ता, लखनवासियो का तुमको सलाम, भगवान आपकी आत्मा को शांति दे और अपने चरणों में स्थान दे विनम्र श्रद्धांंजली
 डा आगा परवेज़ मसीह असोसिएट प्रोफेसर शिया महाविधालय, लखनऊ

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