कृषि सुधार बिल एवं किसानों के हित के मध्य साम्य होना बहुत जरूरी------- डॉ सत्येंद्र कुमार सिंह
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राजकिशोर शुक्ला ब्यूरो
पिछले कुछ दिनों से सिंधु बॉर्डर पर पंजाब हरियाणा और पश्चिम उत्तर प्रदेश के किसान एवं किसान संगठन काफी संख्या में जमे हुए हैं ये सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में किए गए नवीन सुधारों का विरोध कर रहे हैं कृषि सुधार कानून को लेकर देशभर के किसानों में कुछ आशंकाएं हैं जिनका निराकरण होना चाहिए और उसके एक बात यह है कि क्या नवीन कृषि कानून को किसान समझ पाए हैं वर्तमान समय किसानों का जो प्रदर्शन चल रहा है उसकी प्रकृति क्या है । इसी वर्ष सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र में सुधार हेतु तीन महत्वपूर्ण बिल पेश किए गए प्रथम बिल फसल उत्पादन तथा आय संवर्धन से संबंधित था वहीं द्वितीय बिल ठेकेदारी कृषि प्रणाली के विनियमीकरण से संबंधित था एवं तृतीय बिल आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन से संबंधित था। इन तीनों बिलों का संबंध सरकार की महत्वकांक्षी योजना 2022 में किसानों की आय को दोगुना करना है। लेकिन बिल के पास होने के साथ ही कुछ चिंताएं किसानों के मन में घर कर गई। पहला क्या सरकार एमएसपी को समाप्त करने जा रही है दूसरा प्रश्न यह है कि क्या एपीएमसी एक्ट के अधीन स्थापित की गई मंडियों की अब उपज खरीद में अब कोई भूमिका नहीं होगी वहीं तीसरा कृषि क्षेत्र में ठेके प्रणाली से संबंधित है।
सरकार द्वारा एमएसपी के संबंध में जो चिंता किसानों ने व्यक्त की है उसे बहुत हद तक दूर कर दिया गया है रबी सीजन की फसलों के लिए सरकार द्वारा एमएसपी जारी कर दी गई है और यह प्रयास भी किया गया है कि स्वामीनाथन कमीशन की अनुशंसाओं को बहुत हद तक लागू कर दिया जाए वही एपीएमसी एक्ट के द्वारा स्थापित मंडियों के संदर्भ में जो बिल लाया गया है उसमें यह बात साफ तौर पर कही गई है कि किसानों के पास अब यह विकल्प होगा कि वे अपनी फसलें मंडियों में बेचने के साथ ही अन्य व्यक्ति संस्था या कंपनियों को भी फसल बेच सकते हैं उनके ऊपर किसी तरह का निरबंधन लागू नहीं होगा वही कृषि क्षेत्र में संविदा कृषि का विनियमीकरण बहुत आवश्यक था ताकि प्राइवेट क्षेत्र की बड़ी कंपनियों के साथ किसानों के हितो का संरक्षण किया जा सके ताकि उनका अनुचित शोषण ना हो अब प्रश्न यह उठता है कि किसानों द्वारा इसका विरोध क्यों किया जा रहा है यहां एक बात समझने की जरूरत है कि भारत में कृषि क्षेत्र वर्तमान समय एक बड़े संकट से जूझ रहा है पंजाब और हरियाणा तथा पश्चिमी उत्तर प्रदेश उन क्षेत्रों में से थे जिन्होंने हरित क्रांति का समुचित लाभ उठाया और वहां के किसानों ने संपन्नता भी हासिल की यदि उसकी तुलना देश के अन्य राज्यों से करें तो आपको जमीन आसमान का फर्क नजर आएगा पंजाब तथा हरियाणा में ज्यादातर बड़े किसान है, जिन्होंने कृषि क्षेत्र में व्यापक निवेश किया है किंतु उस अनुरूप उन्हें प्रतिफल नहीं मिला है नवीन कृषि कानूनों को लेकर जो भ्रम फैलाया गया है उस कारण इनका चिंतित होना लाजमी था , सरकार को यह चाहिए कि किसान संगठन एवं किसानों की चिंताओं को सुनकर उनके समुचित निराकरण करने का प्रयास करें इस संदर्भ में कुछ प्रमुख उपाय सरकार द्वारा अपनाए जा सकते हैं जैसे कि सरकार अब लघु एवं सीमांत किसानों को प्रत्यक्ष आए सहायता देने पर विचार कर सकती है वही दूसरा कदम अब ये होना चाहिए कि सरकार एमएसपी की गारंटी लेने का कार्य करें हाल ही में धान क्रय केंद्रों पर जो अव्यवस्था हुई थी उससे किसानों को बचाने के लिए एमएसपी की गारंटी सरकार द्वारा देना महत्वपूर्ण कदम साबित होगा, एक अन्य उपाय यह भी हो सकता है कि कृषि क्षेत्र के संबंध में विधि कानून एवं अन्य संबंधित विकास कार्यों को राज्यों के हिस्से में सौंप देना चाहिए ऐसा मैं इसलिए कह रहा हूं क्योंकि भारत में कृषि क्षेत्र में बहुत विविधता है फसल प्रतिरूप हो चाहे जोत का आकार हो किसानों की निवेश क्षमता हो राज्यों की स्थिति की बात हो अतः अब केंद्र को कृषि क्षेत्र के संबंध में राज्यों को अधिक स्वायत्तता प्रदान करनी चाहिए, किसानों को प्रत्यक्ष आए का लाभ देने के संदर्भ में रायतुबंधु योजना मध्य प्रदेश की भावांतर भरपाई योजना और छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा किसानों को दी जाने वाली आए सहायता योजनाओं का अनुकरण कर केंद्रीय स्तर पर एक योजना को लागू करने पर विचार करना चाहिए।इस सरकार की एक महत्वकांक्षी योजना जिसका हम ऊपर भी जिक्र कर चुके हैं 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करना है लेकिन वर्तमान समय कृषि कानून को लेकर जो विवाद होता है वह सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती है, इसका समुचित निराकरण करने के साथ साथी कृषि क्षेत्र में सुधार तथा विनियमीकरण के प्रगतिशील स्वरूप को प्रभाव में लाना चाहिए ताकि किसानों के हित संवर्धन के साथ ही कृषि क्षेत्र का स्वरूप भी बना रह सके।
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