आखिरकार 7 साल बाद महिला शक्ति की जीत हुई चारों दरिंदों को फांसी
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*आखिर निर्भया को मिल ही गया इंसाफ,,,*
16 दिसंबर 2012 की रात को दिल्ली में ऐसा अनर्थ हुआ कि पूरा देश महिलाओं की सुरक्षा के
लिए सड़क पर आ गया। आज निर्भया केस को 7 वर्ष 3 महीने 4 दिन पूरा हो चुका है। आज देश का हर व्यक्ति दोषियों की फांसी हो जाने पर खुशी व आत्म सन्तोष महसूस कर रहा है। क्योंकि भारत का प्रत्येक व्यक्ति दोषियों की फांसी का इंतजार कर रहा था।
*आये जाने उस रात की पूरी घटना के बारे में।* निर्भया ने 29 दिसंबर 2012 को ली थी आख़िरी सांस । इसके दोषी मुकेश , विनय , अक्षय और पवन जिसको आज सुबह 5 बज के 30 मिनट पर फांसी दे दिया गया है। जब दिल्ली के मुनिरका में निर्भया के साथ दरिंदगी हुई थी। उस दिन पैरामेडिकल की छात्रा निर्भया अपने एक दोस्त के साथ साकेत स्थित सेलेक्ट सिटी मॉल में " लाइफ ऑफ पाई " मूवी देखने गई थी। जिसके बाद घर के लिए
उन्होंने ऑटो लिया । शायद दोनों
को इस बात का अंदाजा भी नही
होगा कि बुरा लम्हा उनका इंतजार कर रहा है। 16 दिसंबर की उस रात को काफी ठंड थी , जब निर्भया और उसके दोस्त ऑटो में सवार थे। उस समय रात के 8 बजे रहे थे। निर्भया के दोस्त ने एक न्यूज चैनल पर बताया था कि हमने पहले घर के लिए डायरेक्ट ऑटो से जाने का फैसला किया था। लेकिन ऑटो वाले माने नही । उन्होंने कहा इतनी दूर तक सवारी नही बैठाते
, हमारे घर जाने का समय हो गया है।
जिसके बाद हमनें ऑटो से कहा कि आप हमें मुनिरका तक छोड़ देना। क्योंकि रात काफी हो चुका था। ऐसे में हमने फैसला किया कि मुनिरका से घर के लिए दूसरा साधन देख लेंगे। दोनों मुनिरका के बस स्टैंड पर उतरे । उस समय रात के करीब 8 बज कर 30 मिनट हुआ था।
दोस्त ने बताया जब में और निर्भया बस स्टैंड पर उतरे थे तो एक सफेद रंग की बस पहले से वहाँ खड़ी थी। जिसमे एक लड़का बार- बार कह रहा था चलो कहा जाना है। दोस्त ने बताया कि बस में कुल 6 लोग मौजूद थे। और ऐसे दिखावा कर
रहे थे। जैसे काफी सवारी आने वाली हैं। एक छोटा लड़का पालम मोड़ और द्वारका के लिए
आवाज लगा रहा था। ऐसे में एक लड़का बार बार मैरी दोस्त निर्भया को बोल रहा था । " दीदी चलो कहा जाना है , हम छोड़ देंगे " जिसके बाद हम दोनों बस में बैठ गए।
उनका बस में बैठना क्या था काल के मुँह में जाना था वह ! इसके बाद आप लोग जानते ही है कि क्या हुआ । उन पापियों ने हैवानियत की सारी हदें ही पार कर दी थी । और निर्भया को तब
तक नोचते रहे । जब तक उनको
यह एहसास नही हो गया कि अब निर्भया मर चुकी हैं। उसको मरा समझ कर झाड़ियों में फेंक दिया था । साथ मे उसके दोस्त को भी फेकने के बाद उनको लगा कि गलती हो गई हैं उसके दोस्त को भी मरना चाहिए उनके
ऊपर बस चढ़ाने का भी प्रयास किया लेकिन तभी कुछ गाडिओ को आता देख कर भाग गए। वह
स्थान दिल्ली का महिपालपुर के नजदीक वसन्त बिहार का इलाका था।
इस घटना के बाद देशभर में आंदोलन की आग फैल गई । पूरा देश बलात्कारियों के लिये मृत्युदण्ड की मांग करने लगा । जगह जगह प्रदर्शन हो रहे थे। लखनऊ में तो मै भी आंदोलन का नेतृत्व कर रहा था। निर्भया को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। और 29 दिसंबर को निर्भया ने रात के करीब सवा दो बजे वहाँ दम तोड़ा दिया था।
मामला कोर्ट में चल रहा था पुलिस ने मामले में 80 लोगो को गवाह बनाया था । बड़ी अदालती जंग के बाद आज वह दिन आ ही गया जब चारो आरोपियों को फाँसी दे दी गई और दो आरोपियों की पहले ही मौत हो चुकी है जिसमे से तो एक जो बस चालक राम सिंह था उसने तो 11 मार्च 2013 को
तिहाड़ जेल में ही फाँसी लगा ली थी । एक लम्बी लड़ाई का आज अन्त हुआ । एक बार फिर बुराई
पर सच्चाई की जीत हुई।
*आखिर निर्भया को मिल ही गया इंसाफ,,,*
16 दिसंबर 2012 की रात को दिल्ली में ऐसा अनर्थ हुआ कि पूरा देश महिलाओं की सुरक्षा के
लिए सड़क पर आ गया। आज निर्भया केस को 7 वर्ष 3 महीने 4 दिन पूरा हो चुका है। आज देश का हर व्यक्ति दोषियों की फांसी हो जाने पर खुशी व आत्म सन्तोष महसूस कर रहा है। क्योंकि भारत का प्रत्येक व्यक्ति दोषियों की फांसी का इंतजार कर रहा था।
*आये जाने उस रात की पूरी घटना के बारे में।* निर्भया ने 29 दिसंबर 2012 को ली थी आख़िरी सांस । इसके दोषी मुकेश , विनय , अक्षय और पवन जिसको आज सुबह 5 बज के 30 मिनट पर फांसी दे दिया गया है। जब दिल्ली के मुनिरका में निर्भया के साथ दरिंदगी हुई थी। उस दिन पैरामेडिकल की छात्रा निर्भया अपने एक दोस्त के साथ साकेत स्थित सेलेक्ट सिटी मॉल में " लाइफ ऑफ पाई " मूवी देखने गई थी। जिसके बाद घर के लिए
उन्होंने ऑटो लिया । शायद दोनों
को इस बात का अंदाजा भी नही
होगा कि बुरा लम्हा उनका इंतजार कर रहा है। 16 दिसंबर की उस रात को काफी ठंड थी , जब निर्भया और उसके दोस्त ऑटो में सवार थे। उस समय रात के 8 बजे रहे थे। निर्भया के दोस्त ने एक न्यूज चैनल पर बताया था कि हमने पहले घर के लिए डायरेक्ट ऑटो से जाने का फैसला किया था। लेकिन ऑटो वाले माने नही । उन्होंने कहा इतनी दूर तक सवारी नही बैठाते
, हमारे घर जाने का समय हो गया है।
जिसके बाद हमनें ऑटो से कहा कि आप हमें मुनिरका तक छोड़ देना। क्योंकि रात काफी हो चुका था। ऐसे में हमने फैसला किया कि मुनिरका से घर के लिए दूसरा साधन देख लेंगे। दोनों मुनिरका के बस स्टैंड पर उतरे । उस समय रात के करीब 8 बज कर 30 मिनट हुआ था।
दोस्त ने बताया जब में और निर्भया बस स्टैंड पर उतरे थे तो एक सफेद रंग की बस पहले से वहाँ खड़ी थी। जिसमे एक लड़का बार- बार कह रहा था चलो कहा जाना है। दोस्त ने बताया कि बस में कुल 6 लोग मौजूद थे। और ऐसे दिखावा कर
रहे थे। जैसे काफी सवारी आने वाली हैं। एक छोटा लड़का पालम मोड़ और द्वारका के लिए
आवाज लगा रहा था। ऐसे में एक लड़का बार बार मैरी दोस्त निर्भया को बोल रहा था । " दीदी चलो कहा जाना है , हम छोड़ देंगे " जिसके बाद हम दोनों बस में बैठ गए।
उनका बस में बैठना क्या था काल के मुँह में जाना था वह ! इसके बाद आप लोग जानते ही है कि क्या हुआ । उन पापियों ने हैवानियत की सारी हदें ही पार कर दी थी । और निर्भया को तब
तक नोचते रहे । जब तक उनको
यह एहसास नही हो गया कि अब निर्भया मर चुकी हैं। उसको मरा समझ कर झाड़ियों में फेंक दिया था । साथ मे उसके दोस्त को भी फेकने के बाद उनको लगा कि गलती हो गई हैं उसके दोस्त को भी मरना चाहिए उनके
ऊपर बस चढ़ाने का भी प्रयास किया लेकिन तभी कुछ गाडिओ को आता देख कर भाग गए। वह
स्थान दिल्ली का महिपालपुर के नजदीक वसन्त बिहार का इलाका था।
इस घटना के बाद देशभर में आंदोलन की आग फैल गई । पूरा देश बलात्कारियों के लिये मृत्युदण्ड की मांग करने लगा । जगह जगह प्रदर्शन हो रहे थे। लखनऊ में तो मै भी आंदोलन का नेतृत्व कर रहा था। निर्भया को सिंगापुर के माउंट एलिजाबेथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। और 29 दिसंबर को निर्भया ने रात के करीब सवा दो बजे वहाँ दम तोड़ा दिया था।
मामला कोर्ट में चल रहा था पुलिस ने मामले में 80 लोगो को गवाह बनाया था । बड़ी अदालती जंग के बाद आज वह दिन आ ही गया जब चारो आरोपियों को फाँसी दे दी गई और दो आरोपियों की पहले ही मौत हो चुकी है जिसमे से तो एक जो बस चालक राम सिंह था उसने तो 11 मार्च 2013 को
तिहाड़ जेल में ही फाँसी लगा ली थी । एक लम्बी लड़ाई का आज अन्त हुआ । एक बार फिर बुराई
पर सच्चाई की जीत हुई।
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