होलिका दहन का शुभ मुहूर्त
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होली का त्यौहार अच्छाई पर बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष होलिका 20 और 21 मार्च को मनाई जाएगी। 20 मार्च बुधवार को होलिका दहन किया जाएगा और 21 मार्च गुरुवार के दिन रंगों की होली खेली आएगी। शास्त्रों के अनुसार होली का फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होली मनाई जाती है। और अगले दिन अबीर-गुलाल से होली खेलने की परंपरा है।
हिंदू धर्म के लोगों के लिए होली का पर्व बहुत ज्यादा मायने रखता है। इस दिन रंगो के आगे द्वेष और बैर की भावना फीकी पड़ जाती है और लोग एक दूसरे को प्यार से रंग लगाकर इस त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं।
पूजा का शुभ मुहूर्त
ज्योतिष शास्त्र पंचांग के अनुसार इस पार इस बार होली का दहन भद्रा दशा में होने की वजह से इसका शुभ मुहूर्त रात 9:01 से मध्य रात्रि 12:20 तक रहेगा। पूर्णिमा तिथि का आरंभ 20 मार्च की सुबह 10:44 पर हो जाएगा और पूर्णिमा तिथि के अगले दिन यानी 21 मार्च को 7:10 तक रहेगा। होलिका दहन के दिन हर साल भद्रा लगती है और इस वजह से होलिका दहन की स्थिति भी बन जाती है। भद्रा को विघ्न कारक माना जाता है और इस समय होलिका दहन करने से हानि और अशुभ फलों की प्राप्ति होती। इसलिए भद्राकाल को छोड़कर ही होलिका दहन किया जाता है। विशेष परिस्थिति में आप भद्रा पूंंछ के दौरान भी होलिका दहन कर सकते हैं।
इस वर्ष की होलिका दहन में सबसे अच्छी बात यह है कि भद्रा रात के दूसरे प्रहर में ही समाप्त हो रहा है। जिससे दोष रहित काल में होलिका दहन किया जा सकता है।
होलिका पूजन और महत्व
होलिका दहन की पूजा के दौरान होलिका पर हल्दी का टीका जरूर लगाएं। इससे घर में सुख समृद्धि आती है। होलिका के चारों ओर अबीर गुलाल से रंगोली बनाएं और उसमें पांच फल और मिठाई चढ़ा देंं। होलिका की सात बार परिक्रमा करके जल अर्पित करें। यह पर्व पौराणिक घटना से जुड़ा हुआ है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को इस दिन होलिका की अग्नि जला नहीं पाई थी।
होली की राख का महत्व
शास्त्रों के अनुसार होलिका की राख बहुत ही पवित्र मानी जाती है। होली की आग में गेहूं की नई वाली और हरे गन्ने को भुनना बहुत ही शुभ होता है। उत्तर भारत के कुछ स्थानों पर गेहूं की बाली भूनकर सगे संबंधियों और दोस्तों को बाटने की परंपरा है। इसे लोग सुख समृद्धि की कामना के तौर पर देखते हैं। लोघ ईश्वर से नई फसल की खुशहाली के लिए प्रार्थना करते हैं।
होलिका की अग्नि से भविष्य का अनुमान भी लगाया जाता है। कि आपका आने वाला वर्ष आपके लिए कैसा रहेगा। दरअसल पंचाग के अनुसार यह साल का अंतिम पर्व है
होली का त्यौहार अच्छाई पर बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न के रूप में मनाया जाता है। इस वर्ष होलिका 20 और 21 मार्च को मनाई जाएगी। 20 मार्च बुधवार को होलिका दहन किया जाएगा और 21 मार्च गुरुवार के दिन रंगों की होली खेली आएगी। शास्त्रों के अनुसार होली का फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होली मनाई जाती है। और अगले दिन अबीर-गुलाल से होली खेलने की परंपरा है।
हिंदू धर्म के लोगों के लिए होली का पर्व बहुत ज्यादा मायने रखता है। इस दिन रंगो के आगे द्वेष और बैर की भावना फीकी पड़ जाती है और लोग एक दूसरे को प्यार से रंग लगाकर इस त्यौहार को धूमधाम से मनाते हैं।
पूजा का शुभ मुहूर्त
ज्योतिष शास्त्र पंचांग के अनुसार इस पार इस बार होली का दहन भद्रा दशा में होने की वजह से इसका शुभ मुहूर्त रात 9:01 से मध्य रात्रि 12:20 तक रहेगा। पूर्णिमा तिथि का आरंभ 20 मार्च की सुबह 10:44 पर हो जाएगा और पूर्णिमा तिथि के अगले दिन यानी 21 मार्च को 7:10 तक रहेगा। होलिका दहन के दिन हर साल भद्रा लगती है और इस वजह से होलिका दहन की स्थिति भी बन जाती है। भद्रा को विघ्न कारक माना जाता है और इस समय होलिका दहन करने से हानि और अशुभ फलों की प्राप्ति होती। इसलिए भद्राकाल को छोड़कर ही होलिका दहन किया जाता है। विशेष परिस्थिति में आप भद्रा पूंंछ के दौरान भी होलिका दहन कर सकते हैं।
इस वर्ष की होलिका दहन में सबसे अच्छी बात यह है कि भद्रा रात के दूसरे प्रहर में ही समाप्त हो रहा है। जिससे दोष रहित काल में होलिका दहन किया जा सकता है।
होलिका पूजन और महत्व
होलिका दहन की पूजा के दौरान होलिका पर हल्दी का टीका जरूर लगाएं। इससे घर में सुख समृद्धि आती है। होलिका के चारों ओर अबीर गुलाल से रंगोली बनाएं और उसमें पांच फल और मिठाई चढ़ा देंं। होलिका की सात बार परिक्रमा करके जल अर्पित करें। यह पर्व पौराणिक घटना से जुड़ा हुआ है। इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाया जाता है। भगवान विष्णु के भक्त प्रहलाद को इस दिन होलिका की अग्नि जला नहीं पाई थी।
होली की राख का महत्व
शास्त्रों के अनुसार होलिका की राख बहुत ही पवित्र मानी जाती है। होली की आग में गेहूं की नई वाली और हरे गन्ने को भुनना बहुत ही शुभ होता है। उत्तर भारत के कुछ स्थानों पर गेहूं की बाली भूनकर सगे संबंधियों और दोस्तों को बाटने की परंपरा है। इसे लोग सुख समृद्धि की कामना के तौर पर देखते हैं। लोघ ईश्वर से नई फसल की खुशहाली के लिए प्रार्थना करते हैं।
होलिका की अग्नि से भविष्य का अनुमान भी लगाया जाता है। कि आपका आने वाला वर्ष आपके लिए कैसा रहेगा। दरअसल पंचाग के अनुसार यह साल का अंतिम पर्व है
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